
एक बार फिर विमान में खराबी के चलते रूट को डायवर्ट किया गया है. इस बार एयर इंडिया के दुबई-कोच्चि फ्लाइट को मुंबई डायवर्ट किया गया है. पिछले कुछ दिनों से लगातार विमानों में खराबी आने के मामले बढ़ रहे हैं. इससे पहले दिल्ली से गुवाहाटी के लिए गो फर्स्ट फ्लाइट को जयपुर डायवर्ट करना पड़ा था. क्योंकि विमान की विंडशील्ड हवा में ही टूट गई थी. इसके अलावा गो फर्स्ट की मुंबई-लेह और श्रीनगर-दिल्ली फ्लाइट के इंजन में खराबी आई थी. 17 जुलाई को भी एक फ्लाइट में दिक्कत आई थी. इंडिगो की शारजाह-हैदराबाद उड़ान को कराची में डायवर्ट किया गया था. आखिर विमानों में खराबी के मामले इतने क्यों बढ़ रहे हैं. जबकि विमान उड़ने से पहले उसकी चेकिंग की जाती है. चलिए आपको बताते हैं कि उड़ान भरने से पहले विमान की जांच कौन करता है और कैसे की जाती है.
लगातार आ रही दिक्कतों ने विमानों के रख-रखाव पर सवाल उठा दिया है. जबकि सबसे ज्यादा ध्यान विमान की मेंटनेंस पर ही होता है. उड़ान भरने से पहले विमान की बारीकी से जांच होती है, ताकि कोई गड़बड़ी ना छूट जाए. उड़ान भरने से पहले ये सुनिश्चित किया जाता है कि विमान में कोई गड़बड़ी नहीं है. इसके बाद ही उड़ान भरने की इजाजत मिलती है. विमान की बेसिक जांच रोज होती है. विमान की जांच की कैटेगरी ए से लेकर डी तक है.
विमान उड़ान भरने के काबिल है या नहीं, इसको ओके करने की जिम्मेदारी पायलट की होती है. इसमें फ्लाइट क्रू और मेंटनेंस क्रू मदद करते हैं. उड़ान भरने से पहले विमान को चेक करने की जिम्मेदारी पायलट और को-पायलट होती है. जबकि मेंटनेंस टीम की जिम्मेदारी विमान के रख-रखाव का प्रबंधन और उसकी जानकारी फ्लाइट क्रू को देने की होती है.
उड़ान भरने से पहले चेकिंग-
उड़ान भरने से पहले विमान की जांच होती है. इसमें पायलट के साथ फील्ड स्टाफ वर्कर्स केबिन में जांच करते हैं. इसके बाद फील्ड स्टाफ वर्कर्स विमान से नीचे उतर जाते हैं और उसके बाद विमान उड़ान भरता है. इसमें क्या-क्या चेक किया जाता है, जानिए लीजिए.
बेसिक जांच-
उड़ान भरने से पहले जांच के अलावा भी विमान की जांच रेगुलर बेसिस पर होती है. इस जांच की जिम्मेदारी मेंटनेंस स्टाफ की होती है. इसमें जांच को चार कैटेगरी में बांटा जाता है. जिसमें विमान के टायरों की हवा से लेकर पूरे विमान की जांच होती है.
A चेक-
इसमें विमानों की जांच 500 घंटे के उड़ान के बाद होती है. इसमें 5 से 6 घंटे लगते हैं. इसमें समाज के पूरे सिस्टम को चेक किया जाता है. अगर कोई गड़बड़ी मिलती है तो फौरन उसे ठीक किया जाता है.
B चेक-
इसमें जांच हर 6 से 8 महीने के बीच होता है. इस जांच में एक से तीन दिन लगते हैं. इसमें विमान के सारे पुर्जों, उपकरणों और सिस्टम की कंप्यूटर की मदद से जांच की जाती है.
C चेक-
इसमें हर दो साल के बाद जांच करना होता है. इसमें विमान की सघन जांच होती है. जरूरत पड़ने पर पुर्जों और उपकरणों को बदला जाता है. इसकी जांच में दो हफ्ते लगते हैं.
D चेक-
ये जांच हर 6 साल में होता है. ये जांच बहुत ही खर्चीला है. एयरलाइंस कंपनियां इस जांच को कराने से बेहतर विमान को रिटायर करना ज्यादा मुनासिब समझती हैं. इसमें विमान के आधे से ज्यादा पार्ट्स बदलने पड़ते हैं.
इन जांचों के अलावा मेंटनेंस स्टाफ को जहाज के सभी उपकरणों की जानकारी भी रखनी होती है. अगर फ्लाइट क्रू को कोई खराबी मिलती है तो उसे मेंटनेंस स्टाफ को सूचित करना होता है. वो तय करते हैं कि विमान को ठीक करने के लिए ऑफलाइन ले जाना है या स्थगित करना है.
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