किसी पार्टी का चुनाव चिन्ह महज एक सिंबल ही नहीं होता बल्कि उस पार्टी की विचारधारा को भी दिखाता है. चाहे बीजेपी का चुनाव चिन्ह कमल हो, कांग्रेस का चिन्ह हाथ का पंजा हो, सपा की साइकिल हो, बसपा का हाथी हो या राजद का लालटेन हो सबके चुनाव चिन्ह से पार्टी के विचारधारा की झलक मिलती है. इन सबको सिंबल मिलने के पीछे एक दिलचस्प कहानी भी छुपी हुई है. आज बात बीएसपी के चुनाव चिन्ह हाथी की. आखिर कांशीराम ने पार्टी के सिंबल के रूप में हाथी को ही क्यों चुना था, आइए जानते हैं.
1984 चुनाव में चिड़िया चिन्ह पर लड़ी थी बसपा
मायावती की पार्टी बीएसपी का चुनाव चिन्ह हमेशा से हाथी नहीं रहा है. शुरुआती दौर में पार्टी का चुनाव चिन्ह चिड़िया था लेकिन बाद में हाथी हुआ. बता दें कि 1984 में कांशीराम ने बहुजन समाज पार्टी का गठन किया था लेकिन चुनाव आयोग ने पार्टी को मान्यता नहीं दी थी. इसलिए 1984 के चुनाव में पार्टी के सारे उम्मीदवार निर्दलीय ही चुनाव लड़े थे. चुनाव आयोग ने कुछ उम्मीदवार को चिड़िया और कुछ को हाथी चिन्ह दिया था. लेकिन पार्टी चुनाव जीत नहीं पाई थी.
1989 में मिली जीत
1984 में मिली हार के बाद 1985 के उपचुनाव में मायावती ने फिर भाग्य आजमाया लेकिन इस बार भी सफलता नहीं मिली. हालांकि वोट प्रतिशत बढ़ गया. पहली बार 1989 के लोकसभा चुनाव में मायावती को जीत मिली. इस चुनाव में मायावती ने बिजनौर और हरिद्वार से चुनाव लड़ा था लेकिन जीत बिजनौर से मिली.
कांशीराम ने की थी हाथी सिंबल की डिमांड
मायावती ने 1989 के चुनाव में जीत दर्ज की और इसी साल कांशीराम ने चुनाव आयोग से हाथी सिंबल की डिमांड की. उस समय हाथी किसी के पास था नहीं इसलिए बसपा को दे दिया गया. लेकिन कांशीराम ने हाथी ही क्यों मांगा इसके पीछे की बड़ी वजह भीमराव आंबेडकर थे. उनकी पार्टी ऑल इंडिया शेड्युल्ड कास्ट फेडरेशन ने देश के पहले आम चुनाव में हिस्सा लिया था. हालांकि चुनाव जीत नहीं पाए थे. 1956 में बीआर अंबेडकर ने खुद ऑल इंडिया शेड्युल्ड कास्ट फेडरेशन को भंग कर दिया. कांशीराम आंबेडकर की तरह राजनीति के लिए जाने जाते थे. इसलिए उस राजनीति को आगे बढ़ाने के लिए ही कांशीराम ने हाथी चुनाव चिन्ह की डिमांड की थी. इसके अलावा कांशीराम बहुजन समाज को हाथी की तरह विशालकाय और बेहद मजबूत मानते थे. ये भी कारण रहा हाथी चुनाव चिन्ह मांगने का.
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