
दिल्ली विधानसभा चुनाव (Delhi Election Result 2025) के नतीजे आ गए हैं. 27 साल बाद दिल्ली की सत्ता में बीजेपी (Delhi BJP) की वापसी हुई है. चुनाव में भाजपा (BJP) ने 48 सीटें हासिल कीं. वहीं आप (AAP) सिर्फ 22 सीटों पर सिमट गई.
2013 में आम आदमी पार्टी पहली दिल्ली की सत्ता में आई थी. लगातार तीन चुनाव जीतने के बाद आप को करारी हार का सामना करना पड़ा. अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal), मनीष सिसोदिया, सत्येन्द्र जैन और सौरभ भारद्वाज जैसे आप के महारथी भी परास्त हो गए.
दिल्ली में हमेशा मुख्यमंत्री और उप राज्यपाल के बीच काफी टकराव देखने को मिलता रहा है. मुख्यमंत्री एलजी पर सरकार न चला देने के आरोप लगाते रहे हैं. आखिर दिल्ली के मुख्यमंत्री के पास कौन-सी पावर होती हैं? आइए इस बारे में जानते हैं.
दिल्ली बना UT
दिल्ली एक केन्द्रशासित प्रदेश (Delhi UT) है. हालांकि, हमेशा से ऐसा नहीं था. आजादी के बाद दिल्ली को एक राज्य बनाया गया. 1952 में दिल्ली को पहला मुख्यमंत्री मिला. ब्रह्म प्रकाश चौधरी दिल्ली के पहले मुख्यमंत्री बने. 1956 तक ब्रह्म प्रकाश दिल्ली के सीएम रहे. 1956 में दिल्ली यूटी बन गया.
दिल्ली को कई दशकों तक विधानसभा नहीं मिली. उस समय दिल्ली का शासन उप राज्यपाल चलाते थे. उस दौरान महानगर परिषद हुआ करती थी. 1991 में संसद में संशोधन किया गया. तब दिल्ली का नाम बदलकर नेशनल कैपिटल टैरिटरी कर दिया.
उसके बाद दिल्ली को भी विधानसभा मिल गई. मंत्रिपरिषद विधानसभा में बने कानूनों पर एलजी को सलाह देंगे. मुख्यमंत्री और उपराज्यपाल के बीच विवाद होने पर राष्ट्रपति के पास मामला जाएगा.
कितने मुख्यमंत्री?
इस नए स्ट्रक्चर के तहत 1993 में दिल्ली में भाजपा की सरकार बनी. भाजपा के पांच साल के कार्यकाल में तीन मुख्यमंत्री मदन लाल खुराना, साहिब सिंह वर्मा और सुषमा स्वराज रहीं. 1998 में कांग्रेस की सरकार आई. शीला दीक्षित दिल्ली की मुख्यमंत्री रहीं.
2013 तक कांग्रेस की सरकार रही. शीला दीक्षित 15 साल तक दिल्ली की सीएम रहीं. 2013 में आप और कांग्रेस ने मिलकर सरकार बनाई. अरविंद केजरीवाल पहली बार दिल्ली के मुख्यमंत्री बने. 49 दिन के बाद केजरीवाल ने इस्तीफा दे दिया.
राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू हो गया. 2015 में दोबारा चुनाव हुए. इस बार अरविंद केजरीवाल पूर्ण बहुमत के साथ दिल्ली की कुर्सी पर बैठे. 2020 के चुनाव में भी कुछ ऐसा ही हाल रहा. अब 2025 में बीजेपी की 27 साल बाद वापसी हुई है.
दिल्ली CM की पॉवर्स
दिल्ली में जनता मुख्यमंत्री का चुनाव करती है लेकिन असली पावर एलजी के पास होती है. बिना उपराज्यपाल की अनुमति के दिल्ली के मुख्यमंत्री कोई निर्णय नहीं ले सकते. दिल्ली सरकार सभी विषयों पर कानून नहीं बना सकती है.
दूसरों राज्यों के मुकाबले दिल्ली विधानसभा के पास बेहद कम शक्तियां हैं. दिल्ली सरकार पुलिस, सार्वजनिक व्यस्था और भूमि के मामलों पर कानून नहीं बना सकते. इन सभी विषयों पर केन्द्र सरकार का अधिकार है. दिल्ली के सीएम के पास लेजिस्लेटिव और एग्जीक्यूटिव पावर होती हैं.
एलजी VS सीएम
दिल्ली के सीएम विभिन्न प्रशासनिक कार्यों की देखभाल करते हैं. 2021 में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र अधिनियम में संशोधन किया गया. इसके बाद दिल्ली की सरकार को सभी फैसलों पर उप राज्यपाल की राय लेनी होगी. कुल मिलाकर उपराज्यपाल दिल्ली के प्रशासक हैं. वहीं दिल्ली के मुख्यमंत्री एडमिनिस्ट्रेशन को देखते हैं.
दिल्ली का मुख्यमंत्री दिल्ली का मुखिया होता है. दिल्ली में लागू सभी नीतियों के लिए मुख्यमंत्री ही जिम्मेदार माना जाता है. दिल्ली में शासन के रोज के काम पर मुख्यमंत्री की ही नजर रखती है. दिल्ली में नियम और कानून लागू करने के लिए सीएम को एलजी की जरूरत होती है. उपराज्यपाल मंत्रिपरिषद की सलाह पर काम करते हैं. हालांकि, एलजी को केन्द्र सरकार नियुक्त करती है तो ऐसे में टकराव पैदा होने की संभावना रहती है.