कई बार आपके दिमाग मे ये सवाल आता होगा कि आखिर चलती ट्रेन अचानक ट्रैक कैसे बदल लेती है. अचानक से तेज गति से आ रही ट्रेन हमारे बिना पता चले ट्रैक कैसे बदल लेती है और एक पटरी से दूसरी पटरी पर पहुंच जाती है. दिन हो या रात बड़ी ही आसानी से ये ट्रैक बदलकर उसी गति से पटरी पर दौड़ती रहती है. असल मे पहले आपको ये समझना होगा कि आखिर पटरी बदलने का काम असल मे रेलवे स्टेशन के पॉवर रूम से ट्रैक बदलने के निर्देश लोको पायलट द्वारा दिये जाते हैं. ट्रेन को कौन से प्लेटफार्म पर जाना है उसको किस पटरी पर रोक कर अगले ट्रैक पर भेजना है ये सारा काम लोको पायलट द्वारा कंट्रोल रूम से किया जाता है.
दो पटरियों के बीच होता है स्विच
असल मे अगर टेक्निकल भाषा में आपको बताएं तो दो पटरियों के बीच एक स्विच होता है जिससे दोनों पटरियां आपस मे जुड़ी रहती हैं. लोको पायलट जब ट्रेन का ट्रैक बदलना चाहता है तो उस समय में कंट्रोल रूम के कंट्रोल पैनल से ऑपरेट करता है. असल मे पटरियों पर लगे ये 2 स्विच ये तय करते है ट्रेन के मूवमेंट को राइट और लेफ्ट की तरफ मोड़ते हैं जिसकी वजह से ट्रैक चेंज होता है.
लाइन चेंज करने पर कंट्रोल रूम को जाता है सिग्नल
ट्रैक को बदलने की स्थिति असल मे रेलवे स्टेशन के पास ही होती है क्योंकि जहां पर ट्रेनों का ज्यादा ट्रैफिक होता है वहीं पर दूसरी ट्रेन को पास देने में या फिर अलग-अलग प्लेटफार्म पर ट्रेन को रोकने के लिये ही ट्रैक चेंज किया जाता है.वहीं लाइन जब चेंज की जाती है उसके बाद कंट्रोल रूम से सिग्नल दिया जाता है और फिर ट्रेन को स्टेशन के अंदर प्रवेश करने की अनुमति मिल पाती है. सिग्नल के बाद ही ट्रेन का ड्राइवर ट्रैक चेंज करने के बाद ये समझ जाता है कि आखिर कौन से प्लेटफॉर्म पर गाड़ी को रोकना है.