भारतीय संविधान में कई ऐसे कानून हैं जिनके बारे में लोगों को अक्सर पता नहीं होता है. ऐसा ही एक कानून है गुजारा भत्ता का. यूं तो हमें पता है कि तलाक के बाद महिलाएं अपने गुजारे के लिए पति से भत्ता मांग सकती हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि ये अधिकार पति के पास भी है. अगर आपका तलाक हुआ है और आय का कोई साधन नहीं है तो आप कोर्ट में जाकर पत्नी से अपना गुजारा भत्ता मांग सकते हैं. हाल ही में बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक फैसले के दौरान इस बात जानकारी दी है.
क्या है पूरा मामला?
दरअसल, मामले में शामिल महिला और पुरुष की शादी 17 अप्रैल 1992 में हुई थी. पत्नी ने बाद में मारपीट की शिकायत करते हुए तलाक ले लिया था. जिसके बाद पति ने निचली अदालत में पत्नी से 15,000 रुपये प्रतिमाह स्थायी गुजारा भत्ता की मांग करते हुए याचिका दायर की थी. जिसमें पति ने तर्क दिया कि उसके पास आय का कोई स्रोत नहीं है, जबकि पत्नी ने एमए, बीएड है और एक स्कूल में काम कर रही है.
पति ने अपनी याचिका में लिखा कि जब उनकी पत्नी अपनी डिग्री की तैयारी कर रही थी और काम पर जाती थी तब वे घर संभालते थे और जो भी इल्जाम उनकी पत्नी ने लगाए हैं वो सब झूठ हैं.
पति ने कहा कि वह बेरोजगार है, उसके पास कोई चल-अचल संपत्ति नहीं है और उसके पास आय का कोई साधन नहीं है. स्वास्थ्य ख़राब रहता तो इसलिए वह अपनी आजीविका के लिए कोई नौकरी भी नहीं कर सकता है.
पत्नी ने याचिका का विरोध करते हुए अदालत को बताया है कि उसका पति एक किराने की दुकान चलाता है और अपना ऑटो-रिक्शा किराए पर देकर भी कमाई करता है.
आपको बता दें, साल 2015 में नांदेड़ अदालत ने उनके इस तलाक को मंजूरी दे दी थी. कोर्ट ने अगस्त 2017 से भरण-पोषण न देने के कारण स्कूल की प्रिंसिपल को महिला की तनख्वाह से 5000 रुपये काटने का आदेश दिया था.
हालांकि पत्नी ने इसपर दलील दी कि चूंकि उनकी शादी को 23 साल हो गए हैं गए हैं, और शादी 2015 में तलाक की डिक्री के बाद समाप्त हो गई थी इसलिए पति अब मासिक भरण-पोषण की मांग नहीं कर सकता है. इसपर जस्टिस भारती डांगरे ने पत्नी की इस दलील को खारिज कर दिया. जिसके बाद जस्टिस भारती डांगरे ने पत्नी की इस दलील को खारिज कर दिया है और पत्नी को कहा है कि वो पति को गुजारा भत्ता दे.
क्या कहता है भारतीय संविधान?
आपको बता दें, संविधान के 1955 अधिनियम की धारा 25 में कहा गया है कि गुजारा भत्ता के दायरे को पति और पत्नी के बीच हुए तलाक की एक डिक्री पर लागू न करके सीमित नहीं किया जा सकता है. जरूरतमंद पति या पत्नी दोनों अपने भरण-पोषण के लिए स्थायी गुजारा भत्ता की मांग कर सकते हैं.