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पति कर रहा था दहेज के लिए परेशान... पत्नी कोर्ट पहुंची, अब भरण-पोषण के लिए 7 हजार और मानसिक प्रताड़ना के लिए मिलेगा 3 लाख रु का मुआवजा 

असमा ने अपनी हिम्मत और दृढ़ संकल्प से जो लड़ाई लड़ी, वह केवल व्यक्तिगत नहीं थी, बल्कि यह एक सामाजिक संदेश भी है कि दहेज और घरेलू हिंसा जैसी बुराइयों के खिलाफ खड़े होने का समय आ गया है. भोपाल कोर्ट का यह फैसला न केवल असमा के जीवन में एक नया अध्याय लिखेगा, बल्कि अन्य महिलाओं को भी अपनी आवाज उठाने की प्रेरणा देगा.

Dowry harassment Case Dowry harassment Case
हाइलाइट्स
  • दहेज की मांग ने तोड़ी शादी

  • कोर्ट में सच्चाई आई सामने

भोपाल में एक ऐसा मामला सामने आया जिसने साबित कर दिया कि घरेलू हिंसा और दहेज प्रताड़ना के खिलाफ आवाज उठाने से न्याय जरूर मिलता है. यह कहानी है 35 वर्षीय असमा की है, जिन्होंने अपने हक और आत्मसम्मान की लड़ाई लड़ते हुए अपने पति जमील अख्तर और उसके परिवार के खिलाफ घरेलू हिंसा का मामला दर्ज कराया. कोर्ट ने न केवल असमा को हर महीने भरण-पोषण और मकान किराए के लिए 7 हजार रुपये दिलाए, बल्कि मानसिक प्रताड़ना के लिए 3 लाख रुपये का मुआवजा भी देने का आदेश दिया.

दहेज की मांग ने तोड़ी शादी
दैनिक भास्कर की रिपोर्ट के मुताबिक, असमा ने अपनी दूसरी शादी जमील अख्तर से की थी, जो यह वादा करके आया था कि वह असमा और उसकी बेटी का ख्याल रखेगा. पहले पति से तलाक के बाद असमा को एक नए जीवन की उम्मीद थी, लेकिन शादी के कुछ ही दिनों बाद जमील, उसकी सास तनवीर, ससुर जफर कलीम शमशेर खान और जमील की चौथी पत्नी सुमइया ने दहेज की मांग के साथ असमा को शारीरिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित करना शुरू कर दिया.

मायके लौटने का फैसला
जब असमा ने इस प्रताड़ना की बात अपने पिता से साझा की, तो वे उसे लेकर ससुराल पहुंचे. लेकिन ससुराल वालों ने स्थिति को सुधारने के बजाय असमा को मायके ले जाने की सलाह दी. असमा ने मायके लौटने के बाद हिम्मत दिखाते हुए महिला थाने में घरेलू हिंसा का मामला दर्ज कराया. यह पहला कदम था जिसने असमा को न्याय की ओर बढ़ाया.

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कोर्ट में सच्चाई आई सामने
अदालत में सुनवाई के दौरान असमा ने जमील के पुराने कारनामों का भी खुलासा किया. उसने बताया कि जमील पहले ही दो और शादियां कर चुका था और अपनी पूर्व पत्नियों को भी दहेज के लिए प्रताड़ित कर चुका था. जमील ने असमा से रिजवाना नाम की एक महिला से अपनी पहली शादी की बात छिपाई थी. इसके अलावा, वह अपनी दूसरी पत्नी साजमा को भी दहेज के लिए मारपीट कर चुका था और उसे तलाक दे दिया था.

कोर्ट ने दिया सख्त आदेश
भोपाल की जिला अदालत ने असमा के पक्ष में फैसला सुनाते हुए कहा कि जमील को हर महीने 4 हजार रुपये भरण-पोषण के लिए और 3 हजार रुपये मकान किराए के लिए देने होंगे. इसके अलावा, मानसिक और शारीरिक प्रताड़ना के लिए 3 लाख रुपये मुआवजे के रूप में देने का भी आदेश दिया गया. यह फैसला असमा के लिए एक बड़ी जीत थी, जिसने उसे आत्मसम्मान और सुरक्षा की एक नई राह दिखाई.

घरेलू हिंसा के खिलाफ असमा बनीं मिसाल
असमा की यह कहानी उन लाखों महिलाओं के लिए प्रेरणा है जो दहेज प्रताड़ना और घरेलू हिंसा का शिकार होती हैं, लेकिन आवाज उठाने से डरती हैं. असमा ने यह साबित कर दिया कि हिम्मत और सही कदम उठाने से न्याय जरूर मिलता है. यह मामला यह भी दर्शाता है कि भारत का कानूनी ढांचा महिलाओं की सुरक्षा के लिए मजबूत है, बशर्ते वे अपने अधिकारों के प्रति जागरूक रहें और सही समय पर कदम उठाएं.

क्या कहता है कानून?
आपको बता दें, भारत में घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 के तहत महिलाओं को अपने उत्पीड़कों के खिलाफ शिकायत दर्ज करने का पूरा अधिकार है. यह अधिनियम महिलाओं को शारीरिक, मानसिक और आर्थिक प्रताड़ना से सुरक्षा प्रदान करता है. इसके तहत महिलाओं को भरण-पोषण और मुआवजा पाने का भी अधिकार है.

असमा ने अपनी हिम्मत और दृढ़ संकल्प से जो लड़ाई लड़ी, वह केवल व्यक्तिगत नहीं थी, बल्कि यह एक सामाजिक संदेश भी है कि दहेज और घरेलू हिंसा जैसी बुराइयों के खिलाफ खड़े होने का समय आ गया है. भोपाल कोर्ट का यह फैसला न केवल असमा के जीवन में एक नया अध्याय लिखेगा, बल्कि अन्य महिलाओं को भी अपनी आवाज उठाने की प्रेरणा देगा.