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पति ने पत्नी को फोन पर ही तीन बार तलाक, तलाक, तलाक कह दिया... क्या ये माना जाएगा? भारत का कानून क्या कहता है? बीवी के क्या अधिकार हैं? 

अगर किसी महिला को तुरंत तीन तलाक दिया जाता है तो उसे पुलिस में शिकायत दर्ज करवानी चाहिए. साथ ही मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) अधिनियम 2019 के तहत कार्रवाई की मांग करनी चाहिए. गुजारा भत्ता और बच्चों की कस्टडी के लिए वे कोर्ट में अर्जी दाखिल कर सकती हैं.

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केरल के कासरगोड में रहने वाली 21 साल की युवती उस समय स्तब्ध रह गई जब उसके पति ने उसके पिता को व्हाट्सएप पर "तलाक, तलाक, तलाक" लिखकर भेज दिया. पीड़िता के पति अब्दुल रज्जाक ने यह मैसेज 21 फरवरी को भेजा, जिसमें तीन बार तलाक लिखा गया था, जिससे यह साफ हो गया कि वह शादी तोड़ चुका है. रज्जाक कासरगोड का ही रहने वाला है और फिलहाल यूएई में काम करता है. दोनों की शादी अगस्त 2022 में हुई थी, जब लड़की की उम्र 18 साल थी.

पीड़िता का आरोप है कि शादी के बाद से ही रज्जाक उस पर बार-बार पैसे भेजने का दबाव बना रहा था और एक बार उसे यूएई भी लेकर गया था. पीड़िता के पिता ने भी बताया कि रज्जाक की मांग पूरी करने के लिए उन्होंने उसे पैसे भेजे थे और इसका पूरा दस्तावेजी सबूत उनके पास है.

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क्या सच में इस तरह काम करता है 'तीन तलाक'?
मुस्लिम पर्सनल लॉ के अनुसार, तलाक देने के तीन तरीके होते हैं. तलाक-ए-अहसन, तलाक-ए-हसन, तलाक-ए-बिद्दत (तत्काल तलाक). 

1. तलाक-ए-अहसन (सबसे उचित तरीका): पति अपनी पत्नी को एक बार तलाक बोलता है.इसके बाद तीन महीने (इद्दत) की अवधि तक इंतजार किया जाता है.यदि इस दौरान पति-पत्नी फिर से एकसाथ रहना चाहें, तो वे बिना किसी निकाह के फिर से साथ आ सकते हैं. अगर तीन महीने पूरे होने के बाद भी वे साथ नहीं आते, तो तलाक हो जाता है.

2. तलाक-ए-हसन (दूसरा सबसे उचित तरीका): इसमें पति तीन बार अलग-अलग समय पर तलाक बोलता है.हर बार एक महीने का अंतराल रखा जाता है.यदि तीसरी बार तलाक बोलने तक पति-पत्नी साथ नहीं आते, तो तलाक पक्का हो जाता है.

3. तलाक-ए-बिद्दत (तीन तलाक या तत्काल तलाक): पति एक ही बार में तीन बार ‘तलाक’ बोलता है और तुरंत शादी खत्म हो जाती है.इसमें इद्दत की अवधि का पालन नहीं किया जाता. यह सबसे ज्यादा विवादास्पद तरीका था, जिसे कई इस्लामी विद्वान भी गलत मानते थे.

हालांकि, कुरान में तीन तलाक का स्पष्ट समर्थन नहीं मिलता है. इस्लामिक विद्वानों का मानना है कि तलाक को एक अंतिम उपाय के रूप में इस्तेमाल करना चाहिए.

पहले तीन तलाक कैसे दिया जाता था?
बता दें, पहले पति मौखिक रूप से, फोन पर, पत्र के माध्यम से, एसएमएस या व्हाट्सएप पर तीन बार 'तलाक' बोलकर तलाक दे सकता था. पत्नी को बिना किसी अधिकार या सहमति के तुरंत शादी से बाहर कर दिया जाता था. कई बार इसका इस्तेमाल प्रताड़ना और अनुचित लाभ उठाने के लिए किया जाता था.

लेकिन 2017 में सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले ने सबकुछ बदलकर रख दिया. शायरा बानो केस में सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक को असंवैधानिक घोषित कर दिया था. कोर्ट ने कहा था कि यह प्रथा महिलाओं के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करती है और इसे खत्म किया जाना चाहिए. इसमें 5 जजों की बेंच में 3-2 से फैसला आया था.

2019 का कानून क्या कहता है?
भारत सरकार ने मुस्लिम महिलाओं को तत्काल तलाक से बचाने के लिए ‘मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) अधिनियम, 2019’ बनाया है. इस कानून के तहत:

  • तत्काल तीन तलाक (तलाक-ए-बिद्दत) गैरकानूनी और दंडनीय अपराध बन गया है.
  • ऐसा करने वाले पति को तीन साल तक की सजा हो सकती है.
  • पीड़िता को अपने और अपने बच्चों के लिए गुजारा भत्ता (maintenance) पाने का हक है.
  • तीन तलाक अब संज्ञेय अपराध (cognizable offence) बन गया है, जिसका मतलब है कि पुलिस बिना वारंट के आरोपी को गिरफ्तार कर सकती है.

व्हाट्सएप पर तलाक क्या मान्य है?
शरिया कानून के अनुसार, कोई भी तलाक तभी वैध माना जाता है जब वह सही तरीके से दिया जाए और उसमें पत्नी को सोचने-समझने का मौका मिले. व्हाट्सएप, एसएमएस या फोन कॉल पर दिए गए तीन तलाक को इस्लामी सिद्धांतों के अनुसार भी अवैध माना जाता है.

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) के अनुसार, डिजिटल माध्यम से दिया गया तलाक शरई तौर पर मान्य नहीं होता, क्योंकि इसमें पत्नी के सहमति और सोचने का अवसर नहीं होता. शरीयत में तलाक की प्रक्रिया सोच-समझकर, गवाहों की मौजूदगी में और न्यायसंगत तरीके से पूरी होनी चाहिए.  

मुस्लिम देशों में तीन तलाक का क्या स्टेटस है?
कई इस्लामी देशों में भी तीन तलाक पर प्रतिबंध लगा दिया गया है. मिस्र (1929), पाकिस्तान (1961), बांग्लादेश (1961), तुर्की और ट्यूनीशिया में भी तीन तलाक अवैध है.

ऐसे में अगर किसी महिला को तीन तलाक दिया जाता है तो उसे तुरंत पुलिस में शिकायत दर्ज करवानी चाहिए. साथ ही मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) अधिनियम 2019 के तहत कार्रवाई की मांग करनी चाहिए. गुजारा भत्ता और बच्चों की कस्टडी के लिए वे कोर्ट में अर्जी दाखिल कर सकती हैं.