15 अगस्त 1947 में भारत को आजादी मिलने के बाद अंग्रेज सरकार देश की 565 रियासतों को स्वतंत्र छोड़ गई थी. सन् 1948 तक ज्यादातर रियासतें या तो भारत या पाकिस्तान में शामिल हो गई थीं, सिवाय दो के. कश्मीर और हैदराबाद. हैदराबाद के तत्कालीन निज़ाम मीर उस्मान अली खान हैदराबाद को आजाद रखना चाहते थे.
वह शायद हैदराबाद को एक स्वायत्त रियासत के तौर पर बरकरार रख भी सकते थे, लेकिन नाजुक हालात में उनके खराब प्रबंधन ने पंडित जवाहरलाल नेहरू को हैदराबाद में भारतीय सेना भेजने के लिए मजबूर किया. नतीजतन, हैदराबाद 'ऑपरेशन पोलो' के बाद 17 सितंबर 1948 को भारत का हिस्सा बन गया था. तो वे कौनसी परिस्थितियां थीं जिनकी वजह से ऑपरेशन पोलो हुआ और हैदराबाद भारत का हिस्सा बन गया?
जब हाथ से निकलने लगे रज़ाकार
हैदराबाद में रज़ाकार नाम की नागरिक सेना का गठन 1938 में बहादुर यार जंग ने किया था. 1940 के दशक में यह संगठन कासिम रज़वी की अगुवाई में ताकतवर होता चला गया. एक समय ऐसा आ गया कि रज़ाकारों ने निज़ाम से खास ताकतें मांगीं और निज़ाम को उन्हें ये ताकतें देनी पड़ीं.
रज़ाकारों को ताकतवर बनाने से जुड़ी सबसे बड़ी समस्या ये थी कि वे हैदराबाद में हर तरह के विरोध को दबाने पर आमादा थे. इसके लिए वे राज्य के बेगुनाह हिन्दू नागरिकों से लेकर कांग्रेस नेताओं तक, हर किसी को निशाना बना रहे थे. इन हमलों की वजह से लोगों को हैदराबाद छोड़कर आसपास की रियासतों, यहां तक कि जंगलों तक में शरण लेनी पड़ी थी.
भारत एक ओर बैठकर ये सब देखता नहीं रह सकता था. सात सितंबर 1948 को पंडित नेहरू ने निज़ाम को रज़ाकार संगठन को बैन करने का अल्टिमेटम दिया. भारत के लिए हैदराबाद में सेना भेजना का यह दूसरा कारण था. पहला कारण था संयुक्त राष्ट्र के सुरक्षा परिषद को लिखा गया निज़ाम का एक पत्र.
निज़ाम ने 21 अगस्त 1948 को लिखे गए इस पत्र में संयुक्त राष्ट्र से हस्तक्षेप की मांग करते हुए कहा कि वह हैदराबाद को एक स्वतंत्र देश बनाना चाहते हैं.
फिर शुरू हुआ ऑपरेशन पोलो
जैसे ही यह सूचना भारत सरकार को मिली, भारत के तत्कालीन गृह मंत्री सरदार पटेल ने स्वतंत्र हैदराबाद के विचार को "भारत के दिल पर एक नासूर" बताया जिसे 'सर्जरी' से निकालने की जरूरत थी. पटेल ने मेजर जनरल जेएन चौधरी की अगुवाई में 'ऑपरेशन पोलो' के लिए सेना और पुलिस को हैदराबाद भेजा.
ऑपरेशन पोलो का मकसद हैदराबाद को एक स्वतंत्र देश बनने से रोकना और इसे भारत में शामिल करना था. रज़ाकारों और भारतीय बलों के बीच लड़ाई हुई. इस लड़ाई में 1373 रज़ाकार मारे गए, जबकि हैदराबाद स्टेट के 807 सैनिकों की भी मौत हुई. भारतीय सेना ने भी 66 जवान गंवाए जबकि 96 जवान जख्मी हुए. निजाम ने 17 सितंबर को हथियार डालने का ऐलान किया और 17 सितंबर 1948 को हैदराबाद आधिकारिक तौर पर भारत का हिस्सा बन गया.
ऑपरेशन पोलो पर उठे सवाल भी
ऑपरेशन पोलो उर्फ पुलिस एक्शन हैदराबाद को 'आजाद' करने में तो सफल रहा लेकिन दक्कन को इसकी एक भारी कीमत भी चुकानी पड़ी. इस कार्रवाई के दौरान जब सांप्रदायिक हिंसा की खबरें आने लगीं तो पंडित नेहरू ने पंडित सुंदरलाल, काज़ी अब्दुल गफ्फार और मौलाना अब्दुल मिसरी की सदस्यता वाली कमिटी को मामले की जांच करने हैदराबाद भेजा.
इस कमिटी की रिपोर्ट में जो खुलासे हुए उनसे तत्कालीन गृह मंत्री सरदार पटेल सहमत नहीं थे. पटेल ने रिपोर्ट को नकारते हुए कहा कि वह ऑपरेशन के दौरान और बाद की घटनाओं पर ही चर्चा करती है. यह रिपोर्ट 2013 तक दबी रही, जिसके बाद कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के इतिहासकार सुनील पुरुषोत्तम ने अदालत में याचिका डालकर इसकी एक कॉपी हासिल की.
रिपोर्ट सार्वजनिक होने पर मालूम हुआ कि भारतीय सैनिक पूरे हैदराबाद राज्य में लूटपाट, बलात्कार और हत्या में शामिल थे. रिपोर्ट में कहा गया, "कर्तव्य हमें यह बताने के लिए भी मजबूर करता है कि हमारे पास इस बात के बिल्कुल स्पष्ट सबूत थे कि भारतीय सेना और स्थानीय पुलिस के लोगों ने लूटपाट और यहां तक कि अन्य अपराधों में भाग लिया था. अपने दौरे के दौरान हम कुछ स्थानों पर एकत्र हुए जहां सैनिकों ने कुछ मामलों में हिंदू भीड़ को मुस्लिम दुकानों और घरों को लूटने के लिए प्रोत्साहित किया, समझाया और मजबूर भी किया."