हिमाचल प्रदेश में पत्तियों से बने पत्तल और दोनों का उपयोग अब सामाजिक समारोहों के दौरान भोजन परोसने के लिए किया जा रहा है. पहाड़ी राज्य के कुछ क्षेत्रों में पिछले 50 वर्षों से लगभग हर परिवार दोपहर के भोजन के लिए पूरी तरह से पत्तलों पर निर्भर था. लेकिन धीरे-धीरे कागज और प्लास्टिक की प्लेट-कप ने सामाजिक अवसरों पर पत्तलों का स्थान ले लिया.
लेकिन, अब एक बार फिर ये इको-फ्रेंडली पत्तल पॉपुलर हो रहे हैं. और इनके जरिए कई ग्रामीण महिलाओं रोजगार का अवसर भी मिल रहा है. साल 2011 बैच के एक आईएएस अधिकारी ललित जैन ने जिले में महिला स्वयं सहायता संगठनों के लिए पत्तल परियोजना की शुरुआत की. उन्होंने सिरमौर में बतौर उपायुक्त यह योजना शुरू की थी. हालांकि, जो वर्तमान में वह पर्यावरण निदेशक हैं और अब यह योजना पूरे राज्य में लागू कर दी गई है.
आईएएस ने बनवाई खास मशीन
द न्यू इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, स्वयं सहायता महिला समूह के साथ इस प्रोजेक्ट को शुरू करने के पीछे मुख्य प्रेरणा ग्रामीण महिलाओं के लिए रोजगार पैदा करने की थी. जैन ने द न्यू इंडियन एक्सप्रेस से कहा कि जब वह सिरमौर के उपायुक्त के रूप में तैनात थे, तब उन्होंने देखा कि महिलाएं जंगलों से बड़े और मोटे पत्तों को ले जाती हैं और उनसे पत्तल बनाने की कोशिश करती हैं. हालांकि, यह उनके लिए मुश्किल होता है.
तब उन्होंने एक टायर पंचर मशीन देखी जो टायर पर दबाव डालती है तो उन्होंने तय किया कि इन बड़े-बड़े पत्तलों को इस मशीन से दबाकर आकार दिया जा सकता है और यह आइडिया काम कर गया. इसलिए उन्होंने पत्तलों और दोनों को आकार देने के लिए इस टायर पंचर मशीन में सुधार किया.
महिला समुहों को मिला ढाई लाख/माह का फायदा
जैन ने द न्यू इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि अभी तक, इन महिला स्वयं सहायता संगठनों द्वारा 5 रुपये में एक पत्तल और दोना बेचा जाता है, और यह कामचलाऊ मशीन विभिन्न सरकारी पहलों के माध्यम से इन समूहों को सौंपी जाती है क्योंकि इसकी लागत लगभग 75,000 रुपये होती है. इसकी मदद हर एक समूह प्रति महीने 2.50 लाख रुपये का मुनाफा कमा रहा है.
जैन को जब ग्रामीण विकास और पंचायत का निदेशक नियुक्त किया गया तो उन्होंने फिर से पहल की. उन्होंने अनुरोध किया कि संबंधित अधिकारी एक मशीन प्रत्येक गांव में लगाएं, जहां पहल को लागू किया जाएगा. आज राज्य के सभी जिलों में ऐसी लगभग 100 मशीनें हैं. लाहौल और स्पीति जिले में प्रतिदिन लगभग एक लाख पत्तल और दोनों का उत्पादन होता है.
अच्छे काम के लिए मिला है पुरस्कार भी
जैन को ग्रामीण विकास और पंचायत निदेशक के रूप में सेवा करते हुए स्वयं सहायता समूहों के साथ उनके काम के लिए प्रतिष्ठित सिविल सेवा पुरस्कार मिला. उन्होंने परागपुर में एक खंड विकास अधिकारी के रूप में अपना करियर शुरू किया, नालागढ़ में एसडीएम के पद पर आगे बढ़े, धर्मशाला में नगरपालिका आयुक्त, सिरमौर में उपायुक्त, ग्रामीण विकास और पंचायत के निदेशक, और वर्तमान में पर्यावरण निदेशक हैं.