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Success Story: पिता बनाते थे पंचर, मां के साथ बेची चूड़ियां, पैसे उधार लेकर गए पिता के अंतिम संस्कार में... पोलियो के शिकार IAS Ramesh Gholap की कहानी

आईएएस रमेश घोलप झारखंड कैडर में तैनात हैं. उनका बचपन संघर्षों में बीता है. पिता साइकिल की दुकान चलाते थे. भाई और मां के साथ मिलकर रमेश घोलप चूड़ियां बेचते थे, ताकि घर का खर्च चल सके. लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी.

झारखंड कैडर के आईएएस रमेश घोलप बचपन में चूड़ियां बेचते थे (Photo/Twitter) झारखंड कैडर के आईएएस रमेश घोलप बचपन में चूड़ियां बेचते थे (Photo/Twitter)

पिता की साइकिल मरम्मत की दुकान थी, लेकिन शराब पीने की लत ने परिवार की आर्थिक हालत खराब कर दी, घर चलाने के लिए मां के साथ मिलकर चूड़ियां बेचनी पड़ी, बचपन में पोलियो के शिकार हुए... इन तमाम दिक्कतों के बावजूद रमेश घोलप ने हिम्मत नहीं हारी. रमेश ने यूपीएससी परीक्षा की तैयारी की. पहली बार उनको असफलता हाथ लगी. लेकिन बाद में उन्होंने सिविल सेवा परीक्षा पास कर ली. साल 2012 में रमेश ने विकलांग कोटे से तहत 287वीं रैंक हासिल की. आईएएस रमेश घोलप झारखंड कैडर में तैनात हैं.

पिता की पंचर बनाने की दुकान, मां के साथ बेची चूड़ियां-
रमेश घोलप महाराष्ट्र के सोलापुर के रहने वाले हैं. वो बचपन में उनके बाएं पैर में पोलियो हो गया था. उनके पिता साइकिल मरम्मत की दुकान चलाते थे. लेकिन शराब की लत की वजह से उनकी सेहत खराब रहने लगी. इसके बाद घर की आर्थिक हालत खराब हो गई. घर की जरूरतों को पूरा करने के लिए रमेश को अपनी मां और भाई के साथ मिलकर चूड़ियां बेचना पड़ता था.

पिता के अंतिम संस्कार में जाने के लिए नहीं थे पैसे-
परिवार की आर्थिक बदहाली के बावजूद रमेश पढ़ाई करते रहे. वो पढ़ाई में काफी तेज थे. जिसकी वजह से टीचर उनको पसंद करते थे. इस तरह से जीवन में संघर्ष चल रहा था. लेकिन 2005 में उनके परिवार पर बड़ा संकट आया. उनके पिता का निधन हो गया. उस वक्त रमेश बार्शी में  अपने चाचा के घर रहकर पढ़ाई कर रहे थे. जबकि उनका घर महगांव में था. लेकिन पिता के अंतिम संस्कार में जाने के लिए उनके पास 2 रुपए नहीं थे. उन्होंने पड़ोसियों से वो अपने पिता के अंतिम संस्कार में पहुंचे. 

मां-भाई के साथ एक कमरे में रहते थे-
रमेश की चाचा के पास दो कमरे थे. इसमें से एक कमरे में रमेश अपने भाई और मां के साथ रहते थे. रमेश ने 12वीं में 88.50 फीसदी अंक हासिल किए थे. इसके बाद उन्होंने डिप्लोमा किया और रमेश गांव के ही एक स्कूल में पढ़ाते थे. जिससे उनकी कुछ आमदनी हो जाती थी और घर का खर्च चलता था.

IAS बनने का सपना हुआ पूरा-
रमेश की मां को सामूहिक ऋण योजना के तहत 18 हजार रुपए मिले थे. इस लोन के मिलने के बाद रमेश ने टीचर की नौकरी छोड़ दी और पूरा फोकस यूपीएससी की तैयारी में लगाया. साल 2012 में रमेश ने पहली बार यूपीएससी की परीक्षा दी. लेकिन पहली बार में उनको सफलता नहीं मिली. रमेश ने हार नहीं मिली और फिर से कोशिश करने की ठान ली. उन्होंने कड़ी मेहनत की और साल 2012 में फिर से यूपीएससी की परीक्षा दी. इस बार रमेश घोलप ने परीक्षा पास कर ली. विकलांग कोटे के तहत उन्होंने 287वीं रैंक हासिल की. रमेश घोलप को झारखंड कैडर में तैनात मिली. रमेश कोडरमा, सरायकेला और गढ़वा के जिलाधिकारी रहे हैं.

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