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IIT Delhi ने कर दिया कमाल! बना दी दुनिया की सबसे मजबूत बुलेट प्रूफ जैकेट, स्नाइपर गन की 6 गोलियां भी इसका कुछ नहीं बिगाड़ सकती

अभी दुनिया की कोई भी सेना जिन बुलेट प्रूफ जैकेट का इस्तेमाल करती हैं वह सिर्फ तीन स्नाइपर शॉट झेलने की क्षमता रखती है. फिर चाहे वो यूएस आर्मी की बुलेट प्रूफ जैकेट हो या फिर चीन की. इस बुलेट प्रूफ जैकेट को वजन के लिहाज से भी बेहद कारगर बनाया गया है.

 बुलेट प्रूफ जैकेट बुलेट प्रूफ जैकेट
हाइलाइट्स
  • सबसे अलग है ये जैकेट 

  • पिछले 15 साल से कर रहे हैं इस जैकेट पर काम 

दिल्ली आईआईटी ने सेना के जवानों के लिए एक शानदार बुलेट प्रूफ जैकेट तैयार की है. ये जैकेट उन सभी बुलेट प्रूफ जैकेट से बिल्कुल अलग है जो पूरी दुनिया में इस्तेमाल की जाती है. दुनिया भर में इस्तेमाल की जा रही बुलेट प्रूफ जैकेट से यह बुलेट प्रूफ जैकेट कई मायनों में काफी आगे निकलती हुई दिखाई पड़ती है.

ये बुलेट प्रूफ जैकेट एक बार में 6 स्नाइपर शॉट झेलने की क्षमता रखती है. मतलब अगर कोई स्नाइपर गन से इस बुलेट प्रूफ जैकेट पर गोली चलाए तो 6 बुलेट तक इस जैकेट को कोई नुकसान नहीं होगा और ना ही इसे पहनने वाले सैनिक को. 

सबसे अलग है ये जैकेट 

दरअसल, अभी दुनिया की कोई भी सेना जिन बुलेट प्रूफ जैकेट का इस्तेमाल करती हैं वह सिर्फ तीन स्नाइपर शॉट झेलने की क्षमता रखती है. फिर चाहे वो यूएस आर्मी की बुलेट प्रूफ जैकेट हो या फिर चीन की. इस बुलेट प्रूफ जैकेट को वजन के लिहाज से भी बेहद कारगर बनाया गया है. अभी दुनिया भर में जिन बुलेटप्रूफ जैकेट का इस्तेमाल किया जा रहा है इस जैकेट का वजन उनसे ढाई किलो कम है.

पिछले 15 साल से कर रहे हैं इस जैकेट पर काम 

इस जैकेट को दिल्ली आईआईटी के प्रोफेसर नरेश भटनागर ने बनाया है. प्रोफेसर नरेश बताते हैं कि इस प्रोजेक्ट पर वह पिछले 15 साल से काम कर रहे हैं. पहले जब इसे बनाने की शुरुआत की गई थी तब इसे bs5 के मानकों के हिसाब से बनाया जा रहा था. लेकिन जब यह बनकर तैयार हुई तो यह BS-6 के मानकों पर खरी उतरी. प्रोफेसर कहते हैं, “6 स्नाइपर बुलेट का टारगेट हमें आर्मी ने ही दिया था. हमसे कहा गया था कि इस तरह की जैकेट तैयार की जाए. हालांकि टेस्टिंग के दौरान हमने पाया कि अगर हम इस बुलेट प्रूफ जैकेट पर स्नाइपर गन से 8 गोलियां भी चलाते हैं तो भी बुलेट प्रूफ जैकेट पूरी तरह से सुरक्षित रहती है.” 

प्रोफेसर नरेश भटनागर का कहना है कि टेक्नोलॉजी पूरी तरह से बनकर तैयार है. जल्द ही इसे बनाने के लिए एप्लीकेशन ओपन की जाएंगी. उम्मीद की जा रही है कि आने वाले एक डेढ़ साल में ये जवानों तक पहुंच जाएगी.