
बक्सर के सुदूर इलाकों में स्कूलों का चेहरा भी अजीब है. यहां शिक्षक स्कूलों में रहते थे और स्कूल में ही रहकर छात्रों को पढ़ाते थे. लेकिन स्कूल में उनके निवास से स्थानीय ग्रामीण लोग विरोध करने लगे. जिसके बाद उन्हें कहीं और किराए पर रहने को मजबूर होना पड़ा. ऐसे में सवाल यह उठता है कि आखिर यह कौन सी मजबूरी थी कि शिक्षक स्कूलों में रहकर बच्चों को पढ़ते थे लेकिन अब उन्हें गांव में दूसरी जगह बतौर किराएदार रह कर ड्यूटी करनी पड़ रही है.
सरकार पर उठे सवाल
दरअसल नीतीश कुमार की सरकार के द्वारा बिहार के युवाओं को शिक्षा के माध्यम से रोजगार तो दिया गया. लेकिन इस रोजगार के साथ एक समस्या भी खड़ी हो गई. आज दूसरे राज्य से साथ ही बिहार के युवाओं को नीतीश की सरकार के द्वारा बक्सर में बतौर शिक्षक को नौकरी दी गई है. ऐसे में इन अध्यापकों को अब बक्सर के सुदूर इलाकों के स्कूलों में पोस्टिंग होने के बाद वहां रहना पड़ रहा है.
स्कूल प्रिंसिपल ने की मदद
ऐसे में गगोरा माध्यमिक विद्यालय के प्रिंसिपल द्वारा अपने स्कूल के दूसरे राज्य और दूर के शिक्षकों को स्कूल में ही रहने की व्यवस्था कर दी गई. प्रिंसिपल बताते है कि शिक्षक बहुत दूर से आते थे ऐसे में इनकी मजबूरी को देखते हुए इस प्रकार की व्यवस्था करनी पड़ी.
हालांकि बिहार के दूसरे कोने से आकर शिक्षक बने इन अध्यापकों ने जो बात कही उसे कई मामलों में जानना जरूरी है. दअरसल नीतीश कुमार के द्वारा बिहार से बाहर और बिहार के दूर के जिलों से युवाओं को शिक्षक तो बना दिया गया, पर बक्सर के सुदूर इलाको में रहने और खाने की उचित व्यवस्था नही मिली. इस कारण पढ़ाई भी प्रभावित होती रहती है.
छुट्टी मिली पर किसी काम की नहीं
गगोरा का सोमेश्वर नाथ उच्च विद्यालय जहां पर उत्तर प्रदेश के प्रयागराज से (रीतू कुमारी), उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ से (मेनका मौर्य) बिहार के समस्तीपुर से और बिहार के मसौढी से टीचर बच्चों को शिक्षा देने हेतु हुए ज्वाइन किए हैं. लेकिन इन सब के बीच कठिनाई इस बात की है कि आखिर यह शिक्षक सुदूर ग्रामीण इलाकों में कई अभाव के बीच कैसे रहे. इसका दर्द तब और बढ़ जाता है जब दो दिनों की छुट्टी के बाद भी यह शिक्षक अपने परिवार से नहीं मिल पाते हैं. सरकार के द्वारा दी गई छुट्टी का पूरा समय उनके जाने और आने में ही लग जाता है.
गगोर सोमेश्वर नाथ उच्च विद्यालय के शिक्षक जो मोतिहारी के रहने वाले हैं कभी मजबूरी में उन्हें स्कूल में ही अपना निवास स्थान बनाना पड़ गया था. हालांकि स्कूल में रहने को लेकर कुछ विरोध हुए कई सवाल खड़े हुए तो यह शिक्षक गांव में ही किसी के यहां बतौर किराएदार रहकर शिक्षक की नौकरी करने को मजबूर है. यह कहानी केवल एक शिक्षक की नहीं इस स्कूल के दूसरे शिक्षक की भी है.
-पुष्पेंद्र कुमार पांडेय की रिपोर्ट