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Independence Day Special: जानिए कैसे एक दलित वीरांगना ने छुड़ा दिए थे अंग्रेजों के छक्के, कहानी ऊदा देवी पासी की

Independence Day Special में आज हम आपको बता रहे हैं भारतीय स्वतंत्रता सेनानी, ऊदा देवी पासी की कहानी. जानिए कैसे भारत मां की इस बेटी ने देश की आजादी के लिए दी थी कुर्बानी.

Uda Devi Pasi Uda Devi Pasi
हाइलाइट्स
  • दलित परिवार में जन्मी ऊदा देवी

  • सिकंदर बाग के हमले की नायिका

भारत की आजादी की जब भी चर्चा होती है तो कुछ गिने-चुने नाम जहन में आते हैं. हालांकि, इन चंद नामों के अलावा भी कई नाम हैं जो भारत मां पर कुर्बान हो गए. इन्हीं वीरों में एक कहानी है ऊदा देवी पासी की. उत्तर प्रदेश के लखनऊ में जन्मी भारत मां की इस बेटी को 'दलित वीरांगना' कहा जाता है क्योंकि ऊदा देवी ने आजादी की लड़ाई में अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए थे. 
 
हालांकि, उनके बलिदान को बहुत साल बाद सम्मान मिला जब यूपी सरकार ने 20 मार्च 2021 को उनके नाम पर प्रांतीय सशस्त्र कांस्टेबुलरी (पीएसी) महिला बटालियन की स्थापना की घोषणा की. आज #IndependenceDaySpecial में हम आपको बता रहे हैं इस महान स्वतंत्रता सेनानी की कहानी. 

दलित परिवार में जन्मी 
ऊदा देवी का जन्म अवध क्षेत्र के एक गांव में एक दलित परिवार में हुआ था और उनका विवाह अवध सेना के एक सैनिक, मक्का पासी से हुआ था. वह बेगम हजरत महल की सहयोगी बन गईं और अवध की बेगम की मदद से उनकी कमान के तहत एक महिला बटालियन का गठन किया. उनके पति चिनहट की लड़ाई में शहीद हो गए जिससे ऊदा देवी क्रोधित हो गईं और उन्होंने उनकी मौत का बदला लेने की कसम खाई.

सिकंदर बाग के हमले की नायिका
भारत की पहली लड़ाई के दौरान 1857 में, उन्होंने लखनऊ के सिकंदर बाग के भयानक हमले का नेतृत्व किया. भारतीय जनता में ब्रिटिश सत्ता के प्रति असंतोष बढ़ रहा था, तभी ऊदा देवी ने वहां की रानी, बेगम हज़रत महल से मांग की कि युद्ध की घोषणा की जाए. बेगम ने एक महिला बटालियन के तहत उनकी सहायता की.

सिकंदरबाग की लड़ाई मे ऊदा ने खुद कमान संभाली. उन्होंने अपने सैनिकों को निर्देशित किया आगे बढ़ रही ब्रिटिश सेना पर तीरों से हमला किया जाए. वह एक पुरुष सैनिक की पोशाक पहनकर पिस्तौल लेकर एक पेड़ पर चढ़ गईं. उनके दोनों हाथों में पर्याप्त गोला-बारूद भी था. 

देश के लिए दिया बलिदान
नवंबर 1857 में हुई इस लड़ाई में ऊदा देवी ने अकेले 36 अंग्रेजी सैनिकों को ढेर किया. उन्होंने आगे बढ़ती ब्रिटिश सेना पर गोलीबारी शुरू कर दी और अपनी बटालियन को आदेश देती रहीं. काफी समय तक ब्रिटिश अधिकारी नहीं समझ पाए कि उनके सैनिकों पर कौन गालियां चला रहा है. उन्हें संदेह हुआ कि जरूर कोई स्नाइपर छिपकर वार कर रहा है. 

हालांकि, अंग्रेजों को समझ आ गया कि गोलियां एक पेड़ से चलाई जा रही हैं. उन्होंने तुरंत सैनिकों को पेड़ पर गोलियां चलाने का आदेश दिया. अंग्रेजों की गोली ऊदा देवी को लगी और वह नीचे गिरकर शहीद हो गईं. पहले अंग्रेजों को लगा कि यह स्नाइपर कोई पुरुष था लेकिन जब उन्होंने करीब से देखा तो पाया कि यह तो एक महिला थी. अग्रेंज यह देखकर दंग रह गए कि एक आम महिला ने उनकी बटालियन को इतनी देर तक रोके रखा. 

ऊदा देवी पासी आज भी महिलाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं. हर साल 16 नवंबर को पासी गांव के सदस्य उनकी मृत्यु के स्थान पर इकट्ठा होकर उन्हें श्रद्धांजलि देते हैं.