देश की सरहदों को सुरक्षा देने वाला कवच साल दर साल और मजबूत होता जा रहा है. इस सुरक्षा कवच को मजबूती दी है S-400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम की इस तीसरी स्क्वाड्रन ने, जो रूस ने भारत को सौंप दी है. रूस-यूक्रेन जंग के चलते इस बात की आशंका जताई जा रही थी कि S-400 एयर डिफेंस सिस्टम की डिलीवरी में देरी हो सकती है. लेकिन इन आशंकाओं को खारिज करते हुए रूस S-400 की डिलीवरी सही समय पर करने का वादा लगातार निभा रहा है. जिसकी सबसे ताजा मिसाल है हिंदुस्तान को मिली S-400 की तीसरी स्क्वाड्रन, जो भारतीय वायु सेना के बेड़े में शामिल हो गई है.
2018 में हुआ था सौदा
दरअसल, साल 2018 में भारत ने रूस के साथ पांच एयर डिफेंस सिस्टम S-400 खरीदने के लिए 5.43 बिलियन डॉलर यानी करीब 40 हजार करोड़ रुपए में सौदा किया था. जिसके तहत इस एयर डिफेंस सिस्टम की पहली स्क्वाड्रन भारत को दिसंबर 2021 में मिली थी. जबकि दूसरी स्क्वाड्रन अप्रैल 2022 में भारत को सौंपी जा चुकी हैं और अब तीसरी स्क्वाड्रन फरवरी 2023 में मिली है.
पाकिस्तान सीमा पर किया जाएगा तैनात
खबर है कि इस तीसरी स्क्वाड्रन को पंजाब और उत्तरी राजस्थान पर हवाई हमलों से निपटने के लिए पाकिस्तान से लगी सीमा पर तैनात किया जा सकता है. जबकि, इसकी पहली स्क्वाड्रन लद्दाख और हिमाचल की तरफ से आने वाले चीनी अटैक को विफल करेगी. तो वहीं दूसरे स्क्वाड्रन को ईस्टर्न सेक्टर में चीनी रॉकेट फोर्स के किसी भी हमले को हवा में ही नष्ट करने के लिए तैनात किया गया है.
इसी साल के अंत तक आएंगे दो बचे स्क्वाड्रन
खास बात ये है कि S-400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम की बाकी बची दो स्क्वाड्रन भी इसी साल के अंत तक भारत को मिल सकती है. इसके अलावा भी भारत ने चीन और पाकिस्तान की किलर मिसाइलों, फाइटर जेट और विस्फोटकों से लैस ड्रोन के खतरे को नाकाम करने के लिए अपना स्वदेशी बैलिस्टिक मिसाइल डिफेंस तैयार कर लिया है. जिसका पिछले साल ओडिशा तट पर सफल परीक्षण हो चुका है. जो लंबी दूरी तक मिसाइलों और एयरक्राफ्ट को मार गिराने में सक्षम बताया जा रहा है. यानी भारत बहुत जल्द S-400 और इसी स्वदेशी बैलिस्टिक मिसाइल डिफेंस की बदौलत अभेद्य सुरक्षा कवच हासिल कर लेगा. जिसके बाद LoC और LAC पर किसी भी तरह के हवाई हमले को आसानी से विफल किया जा सकेगा. यानी भारत के खिलाफ चीन और पाकिस्तान की कोई भी हवाई साजिश कामयाब नहीं हो पाएगी.
'S-400' में क्या है खास?
इस S-400 की सबसे बड़ी खासियत इसका मोबाइल होना है. यानी, इसे रोड के जरिए कहीं भी लाया ले जाया जा सकता है. वहीं इसमें 92N6E इलेक्ट्रॉनिकली स्टीयर्ड फेज्ड ऐरो रडार लगा हुआ है, जो करीब 600 किलोमीटर की दूरी से ही मल्टीपल टारगेट्स को डिटेक्ट कर सकता है. जबकि ऑर्डर मिलने के महज 5 से 10 मिनट में ही ये ऑपरेशन के लिए तैयार हो जाता है. S-400 की एक यूनिट से एक साथ 160 ऑब्जेक्ट्स को ट्रैक किया जा सकता है. S-400 में 400 इस सिस्टम की रेंज को बताया है. यानी भारत को जो सिस्टम मिल रहा है. उसकी रेंज 400 किलोमीटर है. जिसका मतलब ये हुआ कि ये 400 किलोमीटर दूर से ही अपने टारगेट को डिटेक्ट कर काउंटर अटैक कर सकता है. साथ ही ये 30 किलोमीटर की ऊंचाई पर भी अपने टारगेट जैसे मिसाइल, एयरक्राफ्ट या फिर ड्रोन पर अटैक कर सकता है.
इसलिए भारत ने इसे रूस से खरीदने का फैसला किया. हालांकि, अमेरिका ने इस डील पर कड़ी आपत्ति भी जताई. मगर अमेरिकी आपत्ति को नजरअंदाज करते हुए भारत ने अपने दोस्त रूस पर भरोसा किया और उससे पांच S-400 एयर डिफेंस मिसाइल सिस्टम की डील की. एशिया में शक्ति संतुलन बनाए रखने के लिए ऐसे मिसाइल की ज़रुरत थी, जो अब पूरी हो चुकी है.