इंडिया टुडे कॉन्क्लेव 2023 के दूसरे दिन शनिवार को केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने समलैंगिक विवाह और जजों की नियुक्ति को लेकर अपने विचार व्यक्त किए. समलैंगिक विवाह के मुद्दे पर रिजिजू ने कहा कि इस मुद्दे को देश के लोगों की विवेक पर छोड़ देना चाहिए.
संसद में एक बार बहस जरूर होनी चाहिए
यह पूछे जाने पर कि क्या समलैंगिक विवाह मुद्दा ऐसा है जिस पर सुप्रीम कोर्ट को फैसला करना चाहिए या इसे संसद पर छोड़ देना चाहिए. कानून मंत्री ने इसपर कहा कि एक बार संसद में इस मुद्दे को लेकर बहस जरूर होनी चाहिए. मंत्री ने कहा कि संसद में बैठे लोग देश के सभी हिस्सों को कवर करते हैं.
सर्वोच्च न्यायालय के पास विकल्प है
कानून मंत्री ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का अपना अधिकार है. हमें इसके क्षेत्र का अतिक्रमण नहीं करना चाहिए, लेकिन समलैंगिक विवाह के मामले पर संसद में बहस होनी चाहिए और यदि संसद द्वारा पारित कोई कानून संविधान की भावना के अनुरूप नहीं है, तो सर्वोच्च न्यायालय के पास उसे बदलने का विकल्प है. सुप्रीम कोर्ट चाहे तो कोई अन्य फैसला सुन सकता है या इसे संसद को वापस भेज सकता है.
अंतिम बहस 18 अप्रैल को
किरेन रिजिजू ने कहा कि अनुच्छेद 142 के तहत, सुप्रीम कोर्ट कुछ भी संदर्भित कर सकता है और निर्णय पारित कर सकता है. 13 मार्च को भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली एक पीठ ने देश में समलैंगिक विवाहों को कानूनी मान्यता देने वाली कई याचिकाओं को सर्वोच्च न्यायालय के पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ के पास भेजा है. शीर्ष अदालत ने 6 जनवरी को विभिन्न उच्च न्यायालयों के समक्ष लंबित लगभग 15 याचिकाओं को क्लब कर अपने पास स्थानांतरित कर लिया था. अदालत ने मामले को अंतिम बहस के लिए 18 अप्रैल को सूचीबद्ध किया. सुनवाई जनहित में लाइव-स्ट्रीम की जाएगी.
न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रक्रिया न्यायिक कार्य नहीं है
कानून मंत्री ने न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रक्रिया पर भी बात की और कहा कि "यह न्यायिक कार्य नहीं है बल्कि पूरी तरह प्रशासनिक काम है. यदि न्यायाधीशों के रूप में नियुक्ति के लिए उच्च न्यायालय के कॉलेजियम के नाम सर्वोच्च न्यायालय द्वारा भेजे गए हैं, तो यह सरकार का कर्तव्य है कि वह उचित परिश्रम करे, अन्यथा मैं वहां एक पोस्टमास्टर के रूप में बैठा रहूंगा."
किरण रिजिजू ने आगे कहा कि सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के जजों की नियुक्ति की जो प्रोसेस है उसमें मेरी असहमति है. हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट कोई सरकार नहीं हैं. उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट, हाई कोर्ट, निचली अदालत से जजों को लेकर कई तरह की शिकायतें मेरे पास आती हैं. हालांकि हम उनका नाम सार्वजनिक नहीं कर सकते. जजों की छुट्टियों को जायज ठहराते हुए रिजिजू ने कहा कि जजों को भी छुट्टियां मनानी चाहिए.
"Actions will be taken as per law. Nobody will escape. Those who work against the country will have to pay for that," says Union law minister @KirenRijiju.
— IndiaToday (@IndiaToday) March 18, 2023
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मोदी सरकार ने कभी भी न्यायपालिका के कार्यों में दखल नहीं दिया
सुप्रीम कोर्ट और सरकार के बीच टकराव के बारे में पूछे जाने पर, केंद्रीय कानून और न्याय मंत्रीकिरेन रिजिजू ने कहा कि दोनों के बीच कोई टकराव नहीं था. रिजिजू ने कहा कि राय में अंतर था लेकिन टकराव नहीं. मोदी सरकार ने कभी भी न्यायपालिका के कार्यों में दखल नहीं दिया, बल्कि सरकार न्यायिक स्वतंत्रता को बनाए रखने की वकालत करती है.