

इंडिया टुडे ग्रुप ने हाउ इंडिया लिव्ज (How India Lives) और कैडेंस इंटरनेशनल (Kadence International) के साथ मिलकर देश के सामाजिक व्यवहार और नजरिए को समझने के लिए पहला सकल घरेलू व्यवहार (Gross Domestic Behaviour) सर्वे किया. इस सर्वे में 21 राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश के 98 जिलों से 9,188 लोगों के विचार जाने गए. ये नतीजे काफी चौंकाने वाले थे, खासकर जब बात शादी और खानपान से जुड़ी हो.
खानपान पर पाबंदी: हाउसिंग सोसाइटियों का अधिकार
सर्वे में पूछा गया कि क्या हाउसिंग सोसाइटियों को सार्वजनिक जगहों या अपार्टमेंट में मांस या बीफ जैसे खाद्य पदार्थों पर पाबंदी लगाने का अधिकार होना चाहिए. 41% लोगों ने इसका समर्थन किया, जबकि 54% ने इसका विरोध किया. केरल में 88% लोगों ने इस पाबंदी का विरोध किया, जबकि उत्तराखंड में 75% लोग इसे सही मानते हैं. इससे पता चलता है कि इस मुद्दे पर दक्षिण और उत्तर के विचार एकदम अलग हैं.
धार्मिक और जातीय विवाह पर समाज की राय
सर्वे में यह भी पूछा गया कि अगर पुरुष और महिला अलग-अलग धर्मों से हैं और शादी करना चाहते हैं, तो क्या उन्हें इसकी अनुमति होनी चाहिए. 61% लोगों ने इसका विरोध किया, जबकि 37% ने समर्थन किया. चंडीगढ़ के 90% लोग इंटर रिलिजन मैरिज को गलत मानते हैं, जबकि केरल में 94% लोग इसके पक्ष में हैं. इसी तरह, जब जाति के आधार पर शादी की बात आई, तो 56% लोगों ने इसका विरोध किया. उत्तर प्रदेश में 84% लोग इसके खिलाफ थे, जबकि चंडीगढ़ में 91% लोग इसका समर्थन करते हैं.
नौकरी में धर्म के आधार पर भेदभाव
सर्वे में पूछा गया कि क्या किसी नियोक्ता को धर्म के आधार पर किसी को नौकरी पर न रखने का अधिकार होना चाहिए. 60% लोगों ने इसे गलत बताया, जबकि 39% ने इसे सही माना. केरल में 88% लोगों ने इसे गलत बताया, जबकि उत्तर प्रदेश में 51% लोग इसे सही मानते हैं.
विविधता और भेदभाव के आधार पर टॉप 5 अग्रणी राज्य:
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धार्मिक सह-अस्तित्व
सर्वे में जब पूछा गया कि क्या दूसरे धर्म के लोग आपके गांव या इलाके में आकर रह सकते हैं, तो 70% लोग इसके पक्ष में थे. पश्चिम बंगाल में 91% लोग इसके पक्ष में थे, जबकि उत्तराखंड में 72% लोग इसका विरोध करते थे. यह दर्शाता है कि देश में धार्मिक सह-अस्तित्व को लेकर सोच में बहुत अंतर है.
नतीजे और समाज में बदलाव की दिशा
ये सर्वेक्षण दिखाता है कि भारत में लोग भले ही आधुनिकता की ओर बढ़ रहे हैं, लेकिन समाज में कई विचारधाराएं और पुरानी मान्यताएं अब भी कायम हैं. विवाह, धर्म और जाति के मामलों में बदलाव धीरे-धीरे हो रहा है, लेकिन पूरी तरह से नहीं. हालांकि, कुछ राज्यों में बदलाव की उम्मीद नजर आती है, जिससे यह संकेत मिलता है कि समाज में धीरे-धीरे सुधार हो सकता है.
IIT दिल्ली की प्रोफेसर व समाजशास्त्री प्रो. रविंदर कौर का कहना है कि इस सर्वे का उद्देश्य यह समझना था कि समाज में भेदभाव और विविधता के मामले में लोग किस तरह सोचते हैं. खासकर, अंतर-धार्मिक और अंतर-जातीय विवाहों को लेकर कई जगह पर अब भी पुरानी सोच देखी जाती है. बात जाति और धर्म के बंधन को तोड़ने की आए तो महिलाएं आसानी से आगे नहीं आती हैं. उत्तराखंड और मध्य प्रदेश में पुरुष और महिलाएं सबसे अधिक असहिष्णु हैं. शादी-ब्याह के मामले में रूढ़िवादी सोच ने अभी भी अपनी जड़ें जमा रखी हैं.