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क्या है सेना का Next of Kin नियम, जिसमें बदलाव की मांग कर रहे हैं शहीद कैप्टन अंशुमान सिंह के माता-पिता

भारतीय सेना की "नेक्स्ट ऑफ किन" यानी 'आश्रित' से जुड़ी पॉलिसी गाइडलाइंस का एक सेट है. ये निर्धारित करती है कि किसी जवान या अफसर के शहीद होने पर वित्तीय सहायता और दूसरे लाभ किसे मिलेंगे. इन लाभों में वित्तीय सहायता, बीमा, पेंशन और दूसरे लाभ शामिल हैं.

Army's next of kin policy Army's next of kin policy
हाइलाइट्स
  • माता-पिता ने की है नियमों में बदलाव की मांग 

  • NOK का होता है पूरा प्रोसेस 

शहीद कैप्टन अंशुमान सिंह को पिछले दिनों कीर्ति चक्र से सम्‍मानित किया गया. कैप्टन अंशुमान पिछले साल सियाचिन में शहीद हो गए थे. कीर्ति चक्र राष्ट्रपति भवन में आयोजित समारोह में उनकी पत्‍नी स्‍मृति और मां मंजू सिंह को दिया गया. अब शहीद अंशुमान का परिवार फिर से खबरों में है. 

माता और पिता ने बहू पर गंभीर आरोप लगाए हैं. उन्होंने भारतीय सेना की "नेक्स्ट ऑफ किन" (Next of Kin) यानी सैन्य आश्रितों की पॉलिसी में बदलाव की मांग की है. कैप्टन अंशुमान सिंह के माता पिता का मानना है कि अभी जो मानदंड इस पॉलिसी में हैं, वे ठीक नहीं हैं. 

माता-पिता ने की है नियमों में बदलाव की मांग 
दरअसल, कैप्टन अंशुमान सिंह के माता-पिता रवि प्रताप सिंह और मंजू सिंह ने NOK नीति में बदलाव की मांग की है. उनका मानना ​​है कि मौजूदा नियम अनुचित हैं, खासकर ऐसे मामलों में जहां सैनिक का जीवनसाथी परिवार के साथ नहीं रहता है या शादी बहुत कम समय के लिए हुई है. उनके बेटे की शहादत के बाद, ज्यादातर अधिकार उनकी बहू स्मृति सिंह के पास चले गए हैं. 

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बता दें, अंशुमान और स्मृति सिंह की शादी उनकी शहादत से केवल पांच महीने पहले हुई थी. उनके माता-पिता के अनुसार, विवाह का कम समय, NOK के अधिकारों पर विचार करने की एक वजह होनी चाहिए. इसके अलावा, स्मृति सिंह, अंशुमान के माता-पिता के साथ नहीं रहती हैं. इसकी वजह से उन पर भावनात्मक और आर्थिक तनाव आ गया है. उनके मुताबिक, वे अपने बेटे पर निर्भर थे, अब उन्हें कोई सपोर्ट नहीं मिल रहा है. 

भारतीय सेना की नेक्स्ट ऑफ किन पॉलिसी 
बता दें, भारतीय सेना की "नेक्स्ट ऑफ किन" (NOK) पॉलिसी गाइडलाइंस का एक सेट है. ये निर्धारित करती है कि सेना के जवान/अफसर के शहीद होने पर वित्तीय सहायता और दूसरे लाभ किसे मिलेंगे. इन लाभों में वित्तीय सहायता, बीमा, पेंशन और दूसरी सहायता शामिल है. पॉलिसी का लक्ष्य शहीद के परिवार को फाइनेंशियल स्टेबिलिटी देना है. NOK में जिसका भी नाम होता है उसे सैनिक की चोट या शहादत की स्थिति में सबसे पहले जानकारी दी जाती है. साथ ही NOK ही सभी वित्तीय लाभ का हकदार होता है. 

NOK का पूरा प्रोसेस 
बता दें, NOK में निकटतम परिजन वह व्यक्ति होता है जिसे किसी सैनिक के शहीद होने या गंभीर रूप से घायल होने पर सभी लाभ, सूचनाएं और अधिकार मिलते हैं. इसके लिए पूरा प्रोसेस होता है. इसके लिए भारतीय सेना में शामिल होने पर सैनिकों को नेक्स्ट ऑफ किन (NOK) फॉर्म भरना होता है. इस फॉर्म में सैनिक को तत्काल परिवार के सदस्यों, जैसे पति/पत्नी, बच्चों, माता-पिता या भाई-बहनों की डिटेल्स देनी होती है. सैनिक इस जानकारी को समय-समय पर या जब भी पारिवारिक स्थिति में कोई बदलाव हो, जैसे शादी या बच्चे का जन्म, अपडेट कर सकता है.

एक सैनिक की मृत्यु के बाद क्या होता है?
शादी से पहले सैनिक की मां का नाम नेक्स्ट ऑफ किन में लिखा जाता है. लेकिन, अगर मां नहीं है तो पिता उसके हकदार होंगे. हालांकि, शादी के बाद बीवी का नाम नेक्स्ट ऑफ किन के रूप में दर्ज होता है. अगर सैनिक की मौत हो जाती है तो सारे लाभों की हकदार बीवी या जिसका नाम NOK में लिखा गया है, वह होता है. बीवी का नाम केवल तभी तक NOK रहेगा जबतक उसकी दूसरी शादी नहीं हुई है. अगर मां, पिता या बीवी में से कोई भी नहीं है तो सैनिक ये भी निर्धारित सकता है कि वह NOK में बेटी या बेटा किसका नाम लिखवाना चाहता है. बेटा केवल 25 साल तक की उम्र तक ही NOK रह सकता है. वहीं बेटी शादी से पहले तक ही NOK रह सकती है. 

बता दें, भारतीय सेना में परिजनों को उनके बेटे या पति के शहीद होने की सूचना देने की एक पूरी प्रक्रिया है. परिवार को व्यक्तिगत रूप से सूचित करने के लिए एक कैजुअल्टी नोटिफिकेशन टीम (CNO) भेजी जाती है. इस टीम में आमतौर पर इमोशनल सपोर्ट देने के लिए सीनियर ऑफिसर, एक मेडिकल प्रोफेशनल और एक धार्मिक या आध्यात्मिक सलाहकार शामिल होते हैं.

सूचना के बाद, सेना यह सुनिश्चित करती है कि सभी जरूरी डाक्यूमेंट्स का वेरिफिकेशन और प्रोसेस आसानी से किया जाए. इन डाक्यूमेंट्स में डेथ सर्टिफिकेट, सर्विस रिकॉर्ड और सैनिक का NOK फॉर्म शामिल होता है.

क्या-क्या लाभ शामिल हैं?
NOK को कई लाभ मिलते हैं- 

-एक्स-ग्रेशिया पेमेंट: परिवार को तत्काल राहत के रूप में दी गई राशि.

-बीमा: सैनिक को आम तौर पर अलग-अलग इंश्योरेंस स्कीम के तहत कवर किया जाता है. NOK को बीमा राशि मिलती है.    

-पेंशन: परिवार को एक फैमिली पेंशन भी मिलती है. जो मृत सैनिक की आखिरी सैलरी का कुछ प्रतिशत हिस्सा होता है. 

-दूसरी वित्तीय सहायता: अलग-अलग राज्य और केंद्र सरकार की योजनाएं मृत सैनिकों के परिवारों को अलग से भी आर्थिक सहायता देती हैं.

-शैक्षिक सहायता: मृत सैनिक के बच्चे एजुकेशनल स्कॉलरशिप के हकदार होते हैं.

-रोजगार: कुछ मामलों में, NOK को डिफेंस या दूसरे सरकारी क्षेत्रों में रिजर्वेशन मिलता है.

बता दें, शहीद हुए सैनिक को औपचारिक सैन्य सम्मान दिया जाता है. इसमें एक औपचारिक गार्ड, लास्ट पोस्ट बजाना और बंदूक की सलामी शामिल होती है.