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120 Bahadur: जब 120 जवानों ने चीन के 1300 सैनिकों के उड़ा दिए थे होश, कब हुआ था रेजांगला युद्ध, जानिए इस इंडो-चाइना वॉर की कहानी

Rezang La War 1962: रेजांगला वॉर (Rezang La War 1962) दुनिया की 10 सबसे बड़ी लड़ाइयों में से एक है. 18 हजार की फीट पर हुई इस लड़ाई में सिर्फ 120 भारतीय सैनिकों (Indian Army) ने हजारों चीनी सैनिकों के छक्के उड़ा दिए थे.

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हाइलाइट्स
  • 120 बहादुर मूवी रेजांगला बैटल पर बेस्ड है

  • रेजांगला की लड़ाई भारत और चीनी सैनिकों के बीच हुई थी

  • 120 भारतीय फौजियों ने हजारों चीन सैनिकों का मार गिराया था

Rezang La War 1962: हांड़ कंपा देने वाली सर्दी थी. चीनी सैनिक ताबडतोड़ गोलियां चला रहे थे. चीनी सैनिक हजारों में थे और भारतीय सैनिक सिर्फ 120. सैनिकों को पीछे हटने का आदेश भी मिल चुका था. तब एक सैनिक ने कहा-

''जो जान बचाता है वो चला जाए और जो मरना चाहता है वो मेरे साथ खड़ा रहे''. 

इसके बाद उन 120 सैनिकों ने चीन की नाक में दम करके रख दिया. 120 बहादुरों का साहस देखकर चीनी सैनिकों के होश उड़ गए. कुछ ऐसी ही है रेजांग ला वॉर (Rezang La War 1962) की कहानी.

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रेजांग ला को दुनिया के 10 सबसे बड़े संघर्ष में से एक माना जाता है. इस समय रेजांग ला युद्ध की इसलिए चर्चा हो रही है क्योंकि फरहान अख्तर (Farhan Akhtar) ने 120 बहादुर मूवी (120 Bahadur Movie) का ऐलान किया है. 

120 बहादुर मूवी रेजांग ला युद्ध पर बेस्ड है. इस मूवी में फरहान अख्तर शैतान सिंह (Major Shaitan Singh) के रोल में दिखाई देंगे. आइए जानते हैं रेजांग ला की पूरी कहानी. 

क्यों हुआ 1962 युद्ध?
साल 1959 से पहले भारत और चीन के रिश्ते बहुत खराब नहीं थे. उस समय हिंदी-चीन भाई-भाई का नारा दिया जाता था. चीन के तिब्बत के हमले के बाद साल 1959 में भारत ने दलाई लामा (Dalai Lama Inian 1959) समेत हजारों तिब्बती लोगों को देश में शरण दी.

इसके बाद भारत और चीन के रिश्ते बिगड़ गिए. चीन ने भारत के खिलाफ युद्ध की घोषणा कर दी. उस समय की सरकार को इस बात का भरोसा था कि चीन भारत पर हमला नहीं करेगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ.

इंडो-चाइना वॉर
भारत चीन के साथ इस युद्ध (India China War 1962) के लिए बिल्कुल तैयार नहीं था. 20 अक्तूबर 1962 को चीन ने लद्दाख, चुशूल और अरुणाचाल प्रदेश के इलाकों में जंग शुरू कर दी. रेजांग ला युद्ध इंडो-चीन वॉर का हिस्सा है.

रेजांग ला वॉर इंडो-चाइना युद्ध की सबसे बड़ी लड़ाई है. लद्दाख के चुशूल में 13 कुमाऊं की बटालियन तैनात थी. 13 कुमाऊं बटालियन की 120 जवानों की चार्ली कंपनी रेजांगला पर मुस्तैद थी. इस कंपनी का अगुवाई मेजर शैतान सिंह कर रहे थे.

रेजांग ला वॉर
लद्दाख का चुशूल बर्फ से ढंका हुआ था. 18 नवंबर 1962 को दीपावली थी. पूरा देश दीवाली का पर्व मना रहा था. उसी दिन चीन के हजारों सैनिकों ने रेजांगला पोस्ट पर हमला कर दिया.

मेजर शैतान सिंह को पता था कि उनकी 120 सैनिकों की कंपनी चीन के हजारों सैनिकों को नहीं हरा पाएंगे. उनकी हार तय है. शैतान सिंह की कंपनी को अपनी पोजीशन से हटने का ऑर्डर मिल गया था.

मेजर शैतान सिंह को पता था कि अगर पीछे हटे तो चीनी सेना यहां नहीं रूकेगी. मेजर शैतान सिंह ने चीन के हजारों सैनिकों का सामना करने का रास्ता चुना और उनका साथ दिया 120 बहादुरों ने.

जूतों से किया हमला
लद्दाख में 18 हजार फीट की पहाड़ी पर भारतीय सैनिकों ने बहादुरी से चीनी सैनिकों का सामना किया. सिर्फ 120 सैनिकों ने चीन के 1300 सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया.

भारतीय सैनिक संख्या में काफी कम थे लेकिन साहस में चीनी सेना से बहुत आगे थे. भारत के एक सैनिक ने कई चीनी सैनिकों को मारा. कुछ सैनिकों की गोली खत्म हो गईं तो उन्होंने दुश्मनों को अपने जूतों से मारना शुरू कर दिया.

भारतीय सैनिक लड़ते हुए शहीद हो गए लेकिन चीन के सामने सरेंडर नहीं किया. रेजांग ला वॉर में भारत के 114 सैनिक शहीद हो गए और 6 सैनिकों को चीन ने पकड़ लिया. बाद में ये 6 सैनिक चीन के चंगुल से भाग निकले.

बाद में चीन ने एकतरफा युद्ध विराम कर दिया. इंडो-चीन वॉर में भारत के हजारों सैनिक शहीद हुए. 1963 में जब बर्फ पिघली तो भारतीय सैनिकों की लाश मिलीं. इस दौरान शैतान सिंह की उंगली बंदूक के ट्रिगर पर ही थी.

रेजांग ला मेमोरियल
रेजांग ला में आखिरी गोली, आखिरी जवान और आखिरी सांस तक लड़ी गई जंग है. बाद में इस बटालियन को पांच वीर चक्र और चार सेना पदक से सम्मानित किया गया था. मेजर शैतान सिंह को मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था.

भारतीय सेना के इतिहास में एक बटालियन को एक साथ इतने मेडल कभी नहीं मिले. हर साल 18 नवंबर को रेजांगला शौर्य दिवस मनाया जाता है. इस कंपनी में ज्यादातर लोग हरियाणा के अहीरवाल से थे. उन सैनिकों की याद में लद्दाख के चुशूल में अहीर धाम मेमोरियल है.