आम आदमी पार्टी (आप) के राष्ट्रीय संयोजक अरविन्द केजरीवाल 15 अप्रैल तक ईडी की कस्टडी में रहने वाले हैं. ऐसे में सबके सामने यही सवाल उठ रहा है कि क्या वे जेल के अंदर से सरकार चला पाएंगे? कई कानूनी एक्सपर्ट्स ने उनकी गिरफ्तारी पर जोर देते हुए कहा कि उनके लिए जेल के अंदर से दिल्ली के मुख्यमंत्री बने रहना "व्यावहारिक रूप से असंभव" है. बता दें, फिलहाल अरविन्द केजरीवाल तिहाड़ जेल में बंद हैं.
जेल जाने के बाद सरकार चलाने के कितने विकल्प?
विकल्प 1- अरविन्द केजरीवाल मुख्यमंत्री बने रहें और उन्हें जेल के अंदर एक विशेष व्यवस्था के तहत सरकार चलाने की अनुमति दे दी जाए. लेकिन इस विकल्प की संभावना काफी कम है क्योंकि उपराज्यपाल जेल से सरकार नहीं चलने का आश्वासन दिल्ली वालों को दिया है. जेल के अंदर मीटिंग और फाइल देखने जैसी व्यवस्था जेल मैनुअल में नहीं है और अगर उपराज्यपाल चाहे तभी इसकी अनुमति मिल सकती है.
विकल्प 2- अरविन्द केजरीवाल मुख्यमंत्री बने रहें और अपनी जगह कैबिनेट के किसी एक मंत्री को अपनी अनुपस्थिति में मुख्यमंत्री कार्यालय के कामकाज देखने का जिम्मा दे दें. ऐसा आमतौर पर तब होता है जब मुख्यमंत्री कहीं बाहर होते हैं या किसी तरीके की मेडिकल इमरजेंसी जैसी हालत होती है. केजरीवाल के जेल जाने की स्थिति में ऐसी अनुमति उपराज्यपाल या राष्ट्रपति देंगे यह अभी स्पष्ट नहीं है.
विकल्प 3- अरविन्द केजरीवाल इस्तीफा दे दें और अपनी जगह किसी और को मुख्यमंत्री बना दें. हालांकि आम आदमी पार्टी इस संभावना से फिलहाल इनकार कर रही है लेकिन उप राज्यपाल सचिवालय की सूत्रों की मानें तो सबसे अच्छा विकल्प यही बचता है, जिससे संवैधानिक संकट से भी बचा जा सकता है और साथ ही साथ सुचारू तौर पर सरकार भी चलाई जा सकती है.
विकल्प 4- अगर अरविन्द केजरीवाल जेल से सरकार चलाने की जिद्द पर अड़े रहते हैं तो संवैधानिक संकट का हवाला देकर सरकार को बर्खास्त किया जा सकता है. ऐसा करने के लिए उपराज्यपाल अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति को भेज सकते हैं. दिल्ली की व्यवस्था संविधान की धारा 239AA और 239AB के आधार पर चलती है, जिसमें उपराज्यपाल को ऐसी अनुशंसा का पूरा अधिकार है. लेकिन ऐसा करने से बहुमत वाली सरकार को लोकसभा चुनाव से ठीक पहले बर्खास्त करना एक कानूनी लड़ाई की शक्ल अख्तियार कर सकता है. हालांकि, उसका सियासी नुकसान भी उठाना पड़ सकता है, इसलिए इसकी संभावना फिलहाल नहीं मानी जा रही है.
विकल्प 5- जैसा 21 मार्च की गिरफ्तारी के बाद सरकार चल रही है वैसे ही अगले कुछ महीनों तक जब तक लोकसभा चुनाव की आचार संहिता लागू है तब तक सरकार चलने दी जाए. गौरतलब है कि मुख्यमंत्री के पास कोई विभाग नहीं है. ऐसे में विभाग से जुड़े हुए कामकाज प्रभावित होने की संभावना कम हैं. वैसे भी आचार संहिता शुरू होने के बाद नीति से जुड़े हुए फैसले लेने का अधिकार सरकार के पास कम ही होता है. साथ ही इस वित्तीय साल का बजट पास हो गया है तो किसी तरीके की वित्तीय चुनौती भी सामने नहीं है.
(कुमार कुणाल की रिपोर्ट)