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India vs Bharat Row: इंडिया की जगह भारत का इस्तेमाल गैर-कानूनी है? क्या है एक्सपर्ट्स की राय

राष्ट्रपति भवन के एक निमंत्रण पत्र में 'प्रेसिडेंड ऑफ भारत' लिखने पर सियासी बखेड़ा खड़ा हो गया है. इसको लेकर सियासी दल मोदी सरकार पर देश का नाम बदलने की कोशिश का आरोप लगा रहे हैं. जबकि संविधान विशेषज्ञों का मानना है कि इंडिया या भारत दोनों में से किसी का भी इस्तेमाल किया जा सकता है.

राष्ट्रपति भवन के लेटर में भारत का इस्तेमाल गैरकानूनी है? जानें एक्सपर्ट्स की राय राष्ट्रपति भवन के लेटर में भारत का इस्तेमाल गैरकानूनी है? जानें एक्सपर्ट्स की राय

राष्ट्रपति भवन के एक निमंत्रण पत्र में 'प्रेसिडेंड ऑफ भारत' लिखा था. जिसके बाद इसको लेकर सियासत गर्मा गई है. विपक्ष का आरोप है कि मोदी सरकार देश का नाम बदलना चाहती है. लेकिन सवाल ये उठता है कि क्या राष्ट्रपति भवन के लेटर में इंडिया की जगह भारत का इस्तेमाल गैरकानूनी है? इसको लेकर संवैधानिक एक्सपर्ट्स का क्या कहना है? चलिए आपको बताते हैं.

इंडिया की जगह भारत का इस्तेमाल गलत नहीं-
कानूनी और संवैधानिक विशेषज्ञों का कहना है कि किसी भी ऑफिशियल कम्युनिकेशन में इंडिया की जगह भारत के इस्तेमाल में कुछ भी गैरकानूनी नहीं है. क्योंकि यह संविधान का हिस्सा है. जिसमें लिखा है कि इंडिया, डैट इज भारत.
इसके साथ ही विशेषज्ञ इस बात को लेकर भी सहमत हैं कि अगर संविधान के प्रस्तावना में इंडिया की जगह भारत करना हो तो इसके लिए संसद के दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत से पारित कराना होगा. इसके साथ ही आधे से अधिक राज्यों से इसका अनुमोदन कराना होगा.
फिलहाल सरकार के देश के नाम के तौर पर इंडिया का इस्तेमाल करती है. लेकिन सरकारी आदेश में भारत लिखा जा सकता है. इसके लिए संसद से अनुमोदन की जरूरत नहीं है.

विशेषज्ञों का क्या है तर्क-
टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक वरिष्ठ वकील राकेश द्विवेदी का कहना है कि संविधान निर्माताओं का इरादा भी 'भारत' नाम इस्तेमाल करने का था. इसलिए इंडिया पर भारत को तरजीह देना गलत नहीं है. हालांकि उनका ये भी कहना है कि अगर इंडिया शब्द को हटाना है तो इसके लिए अनुच्छेद 368 के तहत संविधान में संशोधन करना होगा.
रिपोर्ट के मुताबिक पूर्व कानून सचिव पीके मल्होत्रा ने भी वरिष्ठ वकील से सहमति जताई. उनका कहना है कि राष्ट्रपति के निमंत्रण में इंडिया की जगह भारत के इस्तेमाल पर बेवजह ही विवाद खड़ा किया जा रहा है. संविधान के अनुच्छेद 1 में संघ के नाम और क्षेत्र को निर्धारित किया गया है. इसमें कहा गया है कि इंडिया, जो कि भारत है, राज्यों का एक संघ होगा. उनका कहना है कि व्यवहार में हम इंडिया का इस्तेमाल कर सकते हैं, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं है, जो देश का जिक्र करते समय भारत के इस्तेमाल से रोकता है.
मल्होत्रा का कहना है कि दोनों में कोई विरोधाभास नहीं है. उनका कहना है कि ये पसंद का मामला है और भारत का इस्तेमाल करना हमारी पसंद होनी चाहिए. भारत के इस्तेमाल के लिए कुछ भी करने की जरूरत नहीं है. उनका कहना है कि सरकार सभी आधिकारिक दस्तावेजों में भारत का इस्तेमाल अनिवार्य बनाने के लिए एक आदेश या रेज्यूलेशन जारी कर सकती है.

इंडिया शब्द हटाने के लिए संशोधन की जरूरत-
वरिष्ठ वकील निधेश गुप्ता का कहना है कि इंडिया भारत का पर्याय है. इसलिए इसका इस्तेमाल किया जा सकता है. उनका कहना है कि संविधान से इंडिया को पूरी तरह से हटाना है तो संविधान में संशोधन की जरूरत होगी. 
साल 2016 में सुप्रीम कोर्ट एक जनहित याचिका को खारिज कर दिया था, जिसमें इंडिया का नाम बदलकर भारत करने की मांग की गई थी. तत्कालीन चीफ जस्टिस टीएस ठाकुर और जस्टिस यूयू ललित की पीठ ने कहा कि अगर आप भारत कहना चाहते हैं तो कह सकते हैं. लेकिन दूसरे इसे इंडिया कहना चाहते हैं तो उनको इंडिया कहने दो.

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