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ISRO ने अपने महत्वाकांक्षी मिशन Chandrayaan-3 के लिए चुना फेल्योर बेस्ड डिजाइन, जानिए क्या है इसकी पीछे की वजह 

Chandrayaan-3 Mission: इसरो ने इस बार चंद्रयान-3 को लॉन्च करने को लेकर स्पेसक्राफ्ट की क्षमता को बढ़ाया है. इसके अलावा पावर जनरेशन, मजबूती, दबाव सहने की क्षमता, अतिरिक्त सेंसर आदि पर भी काम किया है. 

Chandrayaan-3 Chandrayaan-3
हाइलाइट्स
  • चंद्रयान-3 को श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर से किया जाएगा लॉन्च

  • चंद्रमा पर सॉफ्ट लैंडिंग का है यह दूसरा प्रयास 

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) अपने महत्वाकांक्षी मिशन चंद्रयान-3 को 14 जुलाई को लॉन्च करने को लेकर तैयार है. श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर से यह लॉन्च किया जाएगा. चंद्रमा पर सॉफ्ट लैंडिंग कराने का यह दूसरा प्रयास है. इस बार कोई चूक न हो, रोवर चंद्रमा पर सफलतापूर्वक उतरे. इसके लिए इसरो ने विशेष इंतजाम किए हैं. इसरो ने इस बार फेल्योर बेस्ड डिजाइन (विफलता पर आधारित डिजाइन)  बनाया है. आइए जानते हैं इस डिजाइन को बनाने की पीछे की वजह क्या है?

14 जुलाई को मिशन पर होगा रवाना
14 जुलाई 2023 को दोपहर 2 बजकर 35 मिनट पर चंद्रयान- 3 अपने मिशन पर रवाना होगा. इससे पहले सितंबर 2019 में चंद्रयान-2 मिशन लॉन्च किया गया था लेकिन कुछ तकनीकी गड़बड़ी के चलते यह चंद्रमा के नजदीक पहुंचकर क्रैश हो गया था. इसरो चीफ एस सोमनाथ ने कहा कि इससे पहले का मिशन आखिरी चरण में फेल हो गया था. इस बार उन सभी वजहों की पहचान करके इसे दूर किया गया है.  

चंद्रयान-2 का है फॉलो-अप मिशन
चंद्रयान-2 का फॉलो-अप मिशन चंद्रयान-3 है. चंद्रयान-2 की सितंबर 2019 में सॉफ्टवेयर में गड़बड़ी के चलते क्रैश लैंडिंग हुई थी. इसरो प्रमुख एस सोमनाथ ने कहा कि चंद्रयान-2 के सफलता आधारित डिजाइन की बजाय चंद्रयान-3 में विफलता आधारित डिजाइन का विकल्प चुना गया है. उन्होंने कहा कि इस बात पर ध्यान केंद्रित किया गया कि क्या विफल हो सकता है और इसकी सुरक्षा कैसे की जाए और सफल लैंडिंग सुनिश्चित की जाए.

क्यों फेल हुआ था इससे पहले मिशन
इसरो प्रमुख एस सोमनाथ ने बताया कि चंद्रयान-2 का विक्रम लैंडर जब चंद्रमा की सतह पर 500x500 मीटर लैंडिंग स्पॉट की ओर बढ़ रहा था, तब क्या गलत हुआ था. सोमनाथ ने बताया कि चंद्रयान-2 के विक्रम लैंडर के लिए हमारे पास पांच इंजन थे, जिनका इस्तेमाल वेलॉसिटी (वेग) को कम करने के लिए किया जाता है, जिसे रिटार्डेशन कहते हैं. इन इंजनों ने अपेक्षा से ज्यादा थ्रस्ट पैदा किया. इसके कारण बहुत सी परेशानियां बढ़ने लगीं. सोमनाथ ने कहा कि ज्यादा फोर्स पैदा होने से कुछ ही अवधि में खामियां पैदा हो गईं.

सभी गलतियां एक साथ हुईं
इसरो प्रमुख ने कहा कि सभी गलतियां एक साथ हो गईं. जो हमारी अपेक्षा से कहीं अधिक थीं. स्पेसशिप को बहुत तेजी से मुड़ना पड़ा. जब यह बहुत तेजी से मुड़ने लगा, तो इसके मुड़ने की क्षमता सॉफ्टवेयर द्वारा सीमित हो गई. हमने कभी ऐसी स्थिति की उम्मीद नहीं की थी. यह मिशन की विफलता का दूसरा कारण था.

लैंडिंग साइट छोटी होना
चंद्रयान-2 के फेल होने का तीसरा कारण अंतरिक्ष यान को उतारने के लिए पहचानी गई 500 मीटर x 500 मीटर की छोटी लैंडिंग साइट थी. उन्होंने कहा कि यान की स्पीड बढ़ाकर वहां पहुंचने की कोशिश की जा रही थी. यह चांद की जमीन के करीब था और स्पीड बढ़ती रही. इसरो अध्यक्ष ने कहा कि इस बार हमने जो किया वह बस इसे और विस्तारित करना था. इस बात पर ध्यान देकर कि ऐसी कौन-कौन सी चीज हैं, जो गलत हो सकती हैं. इसलिए, चंद्रयान-2 के सफलता-आधारित डिजाइन के बजाय, हमने चंद्रयान-3 में विफलता-आधारित डिजाइन को चुना है. 

लैंडिग साइट का बढ़ाया गया आकार
इसरो प्रमुख ने कहा कि हमने लैंडिंग साइट को 500 मीटर x 500 मीटर से बढ़ाकर 2.5 किलोमीटर कर दिया है. यह कहीं भी उतर सकता है, इसलिए यह आपको एक विशिष्ट बिंदु को लक्षित करने के लिए सीमित नहीं करता है. यह केवल नाममात्र स्थितियों में एक विशिष्ट बिंदु को लक्षित करेगा. इसलिए यह उस क्षेत्र के भीतर कहीं भी उतर सकता है.

चंद्रयान-3 में ज्यादा होगा ईंधन
इसरो प्रमुख ने बताया कि चंद्रयान-3 में अधिक ईंधन भी है ताकि इसमें यात्रा करने या फैलाव को संभालने या वैकल्पिक लैंडिंग साइट पर जाने की अधिक क्षमता हो. उन्होंने कहा कि हमने बहुत सी विफलताओं को देखा सेंसर विफलता, इंजन विफलता, एल्गोरिदम विफलता, गणना विफलता. इसलिए, विफलता जो भी हो, हम चाहते हैं कि यह आवश्यक गति और दर पर उतरे. इसलिए अंदर अलग-अलग विफलता परिदृश्यों की गणना और प्रोग्राम किया गया है. इसरो प्रमुख ने कहा कि विक्रम लैंडर के पास अब अन्य सतहों पर अतिरिक्त सौर पैनल हैं ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि यह बिजली उत्पन्न करता रहे, चाहे वह कैसे भी उतरे.