
तमिल संस्कृति, परंपरा और रीति-रिवाज से जुड़ा जल्लीकट्टू यहां की विरासत का प्रतीक रहा है. खेती-किसानी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले बैलों की अहमियत को यहां दर्शाया जाता है. इस खेल के दौरान बैलों को काबू करने की अनोखी प्रतियोगिता होती है, जिसको 'जल्लीकट्टू' के नाम से जाना गया है
पोंगल के दौरान यह पारंपरिक और ऐतिहासिक खेल आयोजित किया जाता है. जिसको खेलने से पहले किसान अपने-अपने बैलों को नहलाते हैं, उनकी पूजा करते हैं और उनके सींगों को पैना करते हैं. बेशक बैलों का इंसानों संग मुकाबला दिल की धड़कने बढ़ा देता है, लेकिन इसके बावजूद जल्लीकट्टू हर साल यहां बेहद उत्साह के साथ मनाया जाता रहा है.
रोमांच और जोखिम का खेल 'जल्लीकट्टू'
जल्लीकट्टू का इतिहास दशकों पुराना है. जब तमिलनाडु के आयर समुदाय के लोग इसे खेलते थे. दरअसल जल्लीकट्टू में खेती और ग्रामीण जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा बैलों की अहमियत को दर्शाया जाता है. बताया जाता है कि इस खेल में मुख्य रूप से पुलिकुलम और कंगायम नस्ल के बैलों का उपयोग होता है, जिनको इस खेल के लिये प्रशिक्षित कर भीड़ के बीच छोड़ा जाता है.
यहां ये भी बता दें कि 'जल्लीकट्टू' शब्द 'जल्ली' यानि सोने-चांदी के सिक्के और 'कट्टू' यानि पैक्ड या बंधा हुआ से बना है. इस खेल में बैलों के सींगों या पीठ पर सिक्कों की थैली बांधी जाती थी, जिसे प्रतिभागी बैल को काबू करके निकालने की कोशिश करते थे. बैल को काबू करने वाले प्रतिभागी और सबसे ताकतवर बैल को पुरस्कार दिया जाता है.
बैलों की लगती है ऊंची कीमत
विजेता बैल बाजार में ऊंची कीमत पर बिकते हैं और उन्हें प्रजनन के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है. इस खेल में दरअसल बैलों को जानबूझकर उकसाया जाता है, जिससे वे डरकर भागने लगते हैं. हालांकि इस दौरान बैलों और प्रतिभागियों की जांच के साथ-साथ सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए जाते हैं. पारंपरिक तौर पर खेले जाने वाले खेल के रिवाजों में समय और सहूलियत को देखते हुए अब थोड़ा बदलाव भी हुआ है. अब बैल को काबू कर लेने वाले को ही विजेता घोषित कर दिया जाता है.