जम्मू-कश्मीर आज अपना विलय दिवस मना रहा है. जी हां, 26 अक्टूबर 1947 के दिन ही जम्मू-कश्मीर भारतीय संघ का हिस्सा बना था. हम आज आपको जम्मू-कश्मीर के हिंदुस्तान में विलय की पूरी कहानी बता रहे हैं.
कश्मीर एक देशी रियासत बन गया
16 मार्च 1846 को ब्रिटिश के कब्जे में आने के बाद कश्मीर एक देशी रियासत बन गया. इसे जम्मू-कश्मीर के महाराजा गुलाब सिंह ने अंग्रेजों से खरीदा था. जम्मू-कश्मीर अकेली ऐसी रियासत रही, जहां पर अंग्रेजों का राज नहीं चल सका. महाराजा गुलाब सिंह एक कुशल योद्धा और मंजे हुए राजनीतिज्ञ थे. महाराजा हरि सिंह उन्हीं के वंशज थे.
भारत जब आजाद हुआ
भारत जब 15 अगस्त 1947 को आजाद हुआ था तब ब्रिटिश राज ने सभी मौजूदा रियासतों और राजतंत्रों के सामने पेशकश की थी कि वो भौगोलिक स्थितियों के लिहाज से भारत और पाकिस्तान में से किसी एक में अपना विलय कर लें. तब महाराजा हरि सिंह ने कहा था कि 'ना तो हम भारत में जुड़ेंगे और न ही पाकिस्तान में. हरि सिंह यूरोप में स्विटजरलैंड की तर्ज पर एक स्वतंत्र रियासत का भविष्य देख रहे थे.
उस समय जूनागढ़, हैदराबाद और जम्मू-कश्मीर के शासकों ने भारत के साथ विलय नहीं किया. भारत ने जूनागढ़ में जनमत संग्रह करवाया, जिस वजह से वहां की जनता ने पाकिस्तान के बजाय हिंदुस्तान के साथ विलय करने का फैसला लिया. इस तरह से 9 नवंबर 1947 को जूनागढ़ भारत का अहम हिस्सा बना. वहीं सेना की कार्रवाई के बाद 17 सिंतबर, 1948 को हैदराबाद का भारत में विलय हो गया. जम्मू-कश्मीर की तरफ से स्टैंड स्टिल एग्रीमेंट पर साइन किया गया. पाकिस्तान ने उस प्रस्ताव को स्वीकार किया, लेकिन भारत को मंजूर नहीं था.
जिन्ना की थी कश्मीर पर नजर
भारत आजाद हुआ तो पाकिस्तान अलग देश बन गया. पाकिस्तान के संस्थापक मुहम्मद अली जिन्ना की नजर कश्मीर पर थी. उन्हें लगता था कि कश्मीर मुस्लिम बहुल है और इसलिए उस पर पाक का हक होना चाहिए. उन्होंने जम्मू-कश्मीर में कबायलियों का हमला करवाया. 24 अक्टूबर 1947 को तड़के हजारों कबायलियों ने राज्य पर हमला बोल दिया. ऐसे में, महाराजा हरि सिंह ने भारत से मदद मांगी. लेकिन तब तक क्योंकि जम्मू-कश्मीर का भारत संग विलय नहीं हुआ था, ऐसे में गवर्नर-जनरल माउंटबेटन ने साफ कर दिया कि भारतीय सेना कश्मीर की मदद नहीं कर सकती.
महाराजा हरि सिंह ने कानूनी दस्तावेज पर किया साइन
26 अक्टूबर 1947 को तत्कालीन महाराजा हरि सिंह ने स्थितियों को देखते हुए राज्य के भारत में विलय के लिए एक कानूनी दस्तावेज पर साइन किया था. इस दस्तावेज जिसे 'इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन' कहा गया. उन्होंने इस दस्तावेज को भारतीय स्वतंत्रता कानून 1947 के तहत ही साइन किया था. इसे साइन करते ही महाराजा हरि सिंह जम्मू-कश्मीर को भारत के प्रभुत्व वाला राज्य मानने पर सहमत हो गए थे.
इस विलय के साथ ही इंडियन आर्मी ने जम्मू-कश्मीर में मोर्चा संभाल लिया था. 27 अक्टूबर को भारतीय फौजें श्रीनगर पहुंच गईं. उन्होंने कश्मीर को हमलावरों से आजाद करवाया. महाराजा हरि सिंह 25 अक्टूबर की रात दो बजे श्रीनगर से जम्मू के लिए रवाना हुए थे. 26 अक्टूबर को एक कैबिनेट मीटिंग हुई. उस मीटिंग में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने कहा कि कश्मीर के विलय को लोगों को समर्थन भी मिलना चाहिए.
भारत में विलय को स्वीकार कर लिया
27 अक्टूबर को महाराजा हरि सिंह को एक चिट्ठी भेजी गई. इस चिट्ठी में उस समय के गर्वनर-जनरल लॉर्ड माउंटबेटन ने जम्मू-कश्मीर के भारत में विलय को स्वीकार कर लिया था. माउंटबेटन ने लिखा था कि उनकी सरकार चाहती है कि जैसे ही राज्य से घुसपैठियों को हटाया जाए इस विलय को जनता के मत से मान्यता मिले. तब एक जनमत संग्रह पर राजीनामा हुआ जिसमें कश्मीर के भविष्य का फैसला होना था. आज इसी जनमत संग्रह ने भारत और पाकिस्तान के बीच विवाद पैदा कर दिया है. भारत आज भी कहता है कि विलय बिना किसी शर्त पर हुआ था और अंतिम था. वहीं पाक इस विलय को धोखा करार देता है.