झारखंड स्वास्थ्य विभाग ने बुधवार को दावा किया है कि राज्य तपेदिक (टीबी) और इससे संबंधित बीमारियों और काम की जगहों पर होने वाली फेफड़ों की बीमारियों पर वर्कप्लेस पॉलिसी बनाने वाला देश का पहला राज्य बन गया है. इस नीति को राज्य के स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता और श्रम मंत्री सत्यानंद भोक्ता ने बुधवार दोपहर रांची में लॉन्च किया.
WHO की 2018 ग्लोबल टीबी रिपोर्ट के अनुसार, यह उपलब्धि भारत के लिए महत्वपूर्ण है, जो टीबी के मामलों में दुनिया में सबसे आगे है. 2017 में 10 मिलियन नए और दोबारा हुए मामलों में से, भारत में सामान्य (संवेदनशील) टीबी के ग्लोबल मामलों का 27 प्रतिशत हिस्सा था. मल्टी-ड्रग प्रतिरोधी तपेदिक (MDR-TB) के मामलों में भी देश सबसे आगे है, जिसके 24 प्रतिशत मामलों के बाद चीन (13 प्रतिशत) और रूस (10 प्रतिशत) आते हैं.
2024 टीबी-मुक्त होने का लक्ष्य
झारखंड के एडिशनल चीफ सेक्रेटरी हेल्थ अरुण कुमार सिंह ने कहा कि टीबी को खत्म करने के लिए टीबी वर्कप्लेस पॉलिसी और कॉरपोरेट एंगेजमेंट शुरू करने वाला झारखंड देश का पहला राज्य बन गया है.
उन्होंने कहा कि झारखंड एक खनिज समृद्ध राज्य है और उद्योगों और खदानों में काम करने वाले लोग विशेष रूप से टीबी सहित ऑक्यूपेशनल बीमारियों की चपेट में हैं. झारखंड देश का पहला राज्य है जहां टीबी पर कार्यस्थल नीति और इसे समाप्त करने के लिए कॉर्पोरेट सहभागिता है. उन्होंने 2024 तक टीबी मुक्त होने का लक्ष्य रखा है (केंद्र ने 2025 तक टीबी खत्म करने का लक्ष्य रखा है. टीबी उन्मूलन के लिए सभी को समन्वय के साथ काम करना चाहिए.
अरुण सिंह ने कहा कि टीबी होने का मुख्य कारण रोग प्रतिरोधक क्षमता का कम होना और अच्छा खान-पान न मिलना है. बैक्टीरिया हवा के माध्यम से फैलता है और फेफड़ों को प्रभावित करता है. हमें टीबी रोग से संबंधित भ्रांतियों, अंधविश्वासों को दूर करना चाहिए और जनभागीदारी से टीबी-मुक्त होने के लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है.
क्या है यह पॉलिसी
इस नीति के तहत, झारखंड में कार्यरत सभी उद्योगों, फर्मों को टीबी और सहित इससे संबंधित अन्य बीमारियों सहित ऑक्यूपेशनल यानी काम की जगह पर होने वाली फेफड़ों की बीमारियों के लिए कर्मचारियों के इलाज की व्यवस्था करनी होगी.
पॉलिसी में यह भी कहा गया है कि नियोक्ता/एम्प्लॉयर को कर्मचारियों के लिए एक सुरक्षित और स्वस्थ कार्य वातावरण सुनिश्चित करना होगा ताकि वे ऐसी बीमारियों से पीड़ित न हों और सभी कर्मचारियों के टीबी और अन्य संबंधित बीमारियों के लिए समय-समय पर टेस्टिंग की व्यवस्था भी करें.
यदि किसी कर्मचारी में टीबी का निदान होता है, तो नियोक्ता को निजी या सरकारी अस्पतालों में उचित ट्रीटमेंट की व्यवस्था करनी होगी. यह पॉलिसी राज्य टीबी नियंत्रण सेल, एड्स नियंत्रण कार्यक्रम, गैर-संचारी रोग (एनसीडी) इकाई, श्रमिक संघ और गैर सरकारी संगठनों की विशेष भूमिकाओं को भी बताती है.
मुफ्त होगा कर्मचारियों का इलाज
इस राष्ट्रीय क्षय रोग नियंत्रण कार्यक्रम के तहत प्रभावित कर्मचारियों का इलाज मुफ्त होगा. WHO की सिफारिश के अनुसार, राज्य डायरेक्ट ऑब्जर्व्ड ट्रीटमेंट शॉर्ट कोर्स (DOTS) केंद्रों के माध्यम से मरीजों को मुफ्त दवाएं देता है. बन्ना गुप्ता ने कहा कि राज्य में अब तक 57,567 टीबी रोगियों की पहचान की गई है और फिलहाल प्रति एक लाख आबादी पर 1022 लोगों की जांच की जाती है.
हालांकि, अब जांच का दायरा और बढ़ाया जाएगा. प्रशासन पंचायतों और ब्लॉकों को टीबी मुक्त बनाने पर काम कर रहे हैं. राज्य सरकार टीबी मुक्त पंचायत कार्यक्रम शुरू कर रही है. पहली दस टीबी मुक्त पंचायतों के प्रतिनिधियों को सरकार स्वर्ण, रजत और कांस्य पदक से सम्मानित करेगी.