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Jharkhand Politics: Champai Soren की बगावत से JMM को कितना हो सकता है सियासी नुकसान, इस इलाकों में है पूर्व सीएम की मजबूत पकड़

Jharkhand: झारखंड की सियासत में पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन के एक कदम से हंगामा खड़ा हो गया है. पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन अपनी पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) से नाराज हैं.उन्होंने अपने सामने 3 विकल्प खुले होने की बात कही है. कोल्हान रीजन में चंपाई की मजबूत पकड़ मानी जाती है. अगले कुछ महीनों में सूबे में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. ऐसे में चंपाई सोरेन का कोई भी कदम सियासी असर डालने वाला होगा.

Former CM Champai Soren (Photo/PTI) Former CM Champai Soren (Photo/PTI)

झारखंड में विधानसभा का कार्यकाल 5 जनवरी 2025 को पूरा हो रहा है. ऐसे में विधानसभा चुनाव के लिए ज्यादा वक्त नहीं रह गया है. इस मोड़ पर सूबे की सियासी में घमासान मचा हुआ है. पूर्व मुख्यमंत्री और जेएमएम के बड़े लीडर चंपाई सोरेन को लेकर सियासी कयासबाजी हो रही है. इस बीच चंपाई सोरेन के ट्वीट ने रांची में सियासत का तापमान बढ़ा दिया है. पूर्व सीएम ने जेएमएम से नाराजगी जताई और खुद के पास तीन विकल्प होने का दावा किया है.

चंपाई सोरेन क्यों हैं नाराज-
झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन के जेएमएम से नाराजगी को लेकर कयास लगाए जा रहे थे. उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर एक पोस्ट शेयर किया और इस नाराजगी पर मुहर लगा दी. चंपाई ने जेएमएम के साथ संघर्ष के दिनों को याद किया. उन्होंने सूबे के 12वें सीएम के तौर पर शपथ लेने का भी जिक्र किया. चंपाई ने बताया कि मुख्यमंत्री रहते उनके कार्यक्रमों को पार्टी की तरफ से रद्द करा दिया गया. उन्होंने पार्टी में अपने अपमान का जिक्र भी इस पोस्ट में किया. इसके साथ ही उन्होंने 3 विकल्प खुले होने की बात कही. उन्होंने कहा कि राजनीति से संन्यास लेना, अलग संगठन खड़ा करना और अगर कोई साथी मिले तो उसके साथ आगे जाने का विकल्प है.

बगावत का क्या होगा असर-
चंपाई सोरेन को लेकर इतनी चर्चा इसलिए है, क्योंकि सूबे के कोल्हान इलाके में उनकी मजबूत पकड़ है. उनको कोल्हान का टाइगर कहा जाता है. इस इलाके की करीब दर्जनभर सीटों पर उनका खासा प्रभाव है. झारखंड में कोल्हान रीजन सरायकेला, पूर्वी सिंहभूम और पश्चिमी सिंहभूम जिलों को मिलाकर बनता है. इस इलाके में विधानसभा की 14 सीटें और लोकसभा की 2 सीटें हैं. सूबे में हेमंत सोरेन की फैमिली के बाद चंपाई सोरेन आदिवासी समुदाय का बड़ा चेहरा हैं. वो कई बार कोल्हान इलाके से विधायक रहे हैं.

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अगर चंपाई सोरेन जेएमएम का साथ छोड़ते हैं तो पार्टी को बड़ा झटका माना जाएगा और इसका नुकसान हेमंत सोरेन को उठाना पड़ सकता है. उनके पार्टी छोड़ने से बीजेपी जेएमएम पर परिवारवाद का आरोप लगाकर हमलावर हो जाएगी.

उनकी नाराजगी से कोल्हान इलाके में जेएमएम का आदिवासी वोट बैंक खिसक सकता है. जिससे पार्टी को बड़ा झटका लग सकता है. चंपाई सोरेन की नाराजगी का बड़ा फायदा बीजेपी को हो सकता है.

कोल्हान इलाके का सियासी समीकरण-
 साल 2019 में विधानसभा चुनाव में कोल्हान में जेएमएम को बड़ी जीत मिली थी. इस इलाके की 14 सीटों में से 11 सीटों पर जेएमएम को जीत मिली थी. जबकि 2 सीटों पर जेएमएम की सहयोगी कांग्रेस को जीत मिली थी. एक सीट निर्दलीय के खाते में गई थी. साल 2019 विधानसभा चुनाव में कोल्हान रीजन में बीजेपी का खाता भी नहीं खुला था.

चंपाई सोरेन कोल्हान इलाके से चौथे मुख्यमंत्री रहे हैं. सूबे के पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा और रघुबर दास भी इसी इलाके से आते हैं. 2 पूर्व मुख्यमंत्री होने के बावजूद बीजेपी का इस इलाके में खाता भी नहीं खुला था. चंपाई सोरेन की सियासी ताकत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है.

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