
जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क का नाम एडवर्ड जेम्स कॉर्बेट के नाम पर रखा गया है. लोग उन्हें प्यार से 'जिम' कॉर्बेट बुलाते थे. भारत में बाघों के संरक्षण के लिए मशहूर कॉर्बेट का जन्म 25 जुलाई, 1875 को भारत में ही हुआ था. वह ब्रिटिश भारतीय सेना में एक कर्नल थे. साथ ही, उन्हें आदमखोर तेंदुओं और बाघों के शिकार के लिए जाने जाता है.
हालांकि, बाद में बाघ उनके दोस्त बन गए और उन्होंने बाघों का संरक्षण शुरू किया. उन्होंने अपने अनुभव पर कई किताबें भी लिखी हैं. आज उनके 77वीं जन्मतिथि के मौके पर जानिए कि कैसे एक आदमखोर शिकारी बना बाघों का दोस्त और फिर रखवाला.
33 आदमखोरों को मारा
कॉर्बेट का जन्म भारत के नैनीताल में क्रिस्टोफर विलियम कॉर्बेट और मैरी जेन के यहां हुआ था. उनके पिता शहर के पोस्टमास्टर थे. 19 साल की उम्र से पहले ही उन्होंने स्कूल छोड़ दिया और बंगाल नॉर्थ-वेस्टर्न रेलवे में नौकरी कर ली. और बाद में ट्रांस-शिपमेंट माल के ठेकेदार के रूप में काम किया. बहुत छोटी उम्र से ही उनका लगाव जंगलों और वन्य जीवन के प्रति विकसित हो गया था.
जंगलों को एक्सप्लोर करने की चाह में वह एक अच्छे ट्रैकर और शिकारी बनते गए. जिम ब्रिटिश भारतीय सेना में कर्नल थे और आदमखोर तेंदुओं और बाघों के शिकार के लिए जाने जाते थे. उन्हें देश के अन्य प्रांतों की सरकारें भी आदमखोर जानवरों के शिकार के लिए बुलाती थीं. बताया जाता है कि उन्होंने 1907 और 1938 के बीच लगभग 33 आदमखोरों को मारा था. जिनमें 19 बाघ और कुख्यात चंपावत टाइगर सहित 14 तेंदुएं शामिल थे.
कैसे बने बाघों के दोस्त
इस बात में कोई दो राय नहीं है कि कॉर्बेट आदमखोरों को मारने के लिए जाने जाते हैं. लेकिन जब भी वह किसी बाघ या तेंदुए का शिाकर करते थे तो उनके शरीर और स्वभाव पर रिसर्च करते थे. एक बार उन्होंने देखा कि एक बाघिन के शरीर पर कई चोटों के निशान हैं. जिससे उन्हें समझ में आया कि पहले इंसान इन जनवरों को परेशान करते हैं और जबाव में बाघ उनपर हमला करते हैं.
यहीं से उनकी बाघ और इंसान के बीच सामंजस्य बिठाने की शुरूआत हुई. और आदमखोरों का शिकार करने वाले कॉर्बेट उनके मसीहा बन गए. उन्होंने लोगों को जंगलों और वन्य जीवों के बारे में जागरूक करना शुरू किया. उनका कहना था कि बाघ एक जेंटलमैन है जो तब तक आपसे कुछ नहीं कहता जब तक आप उसे न छेड़े. कॉर्बेट ये बात अपने निजी अनुभव से कहते थे. इस बात जिक्र उन्होंने अपनी किताब में किया है.
रखी नेशनल पार्क की नींव
कॉर्बेट ने संयुक्त प्रांत (अब उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड) में वन्यजीवों के संरक्षण के लिए अखिल भारतीय सम्मेलन को बढ़ावा दिया. साथ ही, कॉर्बेट ने भारत के पहले राष्ट्रीय उद्यान, लुप्तप्राय बंगाल टाइगर के लिए एक राष्ट्रीय रिजर्व की स्थापना में मदद की. पहले इसका नाम हैली रखा गया और बाद में 1957 में उनके सम्मान में इसका नाम बदलकर जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क कर दिया गया.
कॉर्बेट एक लेखक थे और उन्होंने कुमाऊं के मैन-ईटर्स और जंगल लोर जैसी किताबें लिखीं. जिसमें उन्होंने अपने अनुभवों के बारे में लिखा है. हालाकि, उनकी किताबें उस समय लोकप्रिय नहीं थीं. लेकिन आज जंगली जीवन पर सबसे पहले उनकी किताबों को पढ़ने की सलाह दी जाती है. उनकी सभी किताबें आज सबसे सफल किताबों में शामिल हैं.
केन्या में बीते आखिरी साल
कॉर्बेट अपनी बहन के साथ साल 1947 में केन्या चले गए. इस बाद, नैनीताल में उनका घर एक संग्रहालय में बदल दिया गया. साल 1955 में वह इस दुनिया से चले गए. कॉर्बेट के लिए भारत हमेशा उनका अपना देश रहा. वह भले ही केन्या में रहे लेकिन उनकी रूह का एक हिस्सा आज भी उत्तराखंड के पहाड़ों और जंगलों में बसा हुआ है.
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