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Justice Bela Trivedi: बिलकिस बानो केस की सुनवाई से खुद को अलग करने वाली जस्टिस बेला त्रिवेदी के सफर पर एक नजर

सुप्रीम कोर्ट की जज न्यायामूर्ति बेला एम त्रिवेदी ने दुष्कर्म और हत्या मामले के 11 दोषियों की समय से पहले रिहाई के फैसले को चुनौती देने वाली गुजरात दंगों की पीड़िता बिलकिस बानो की याचिका पर सुनवाई से खुद को अलग कर लिया है.

जस्टिस बेला त्रिवेदी जस्टिस बेला त्रिवेदी
हाइलाइट्स
  • ट्रायल कोर्ट से सुप्रीम कोर्ट आने वाली एकमात्र जज

  • गुजरात सरकार पर कर चुकी हैं कड़ी टिप्पणी

सुप्रीम कोर्ट की जज बेला त्रिवेदी ने बिलकिस बानो रेप केस से खुद को अलग कर लिया है. इस मामले में आज सुनवाई होनी थी, लेकिन जस्टिस बेला त्रिवेदी ने खुद को उसे पहले ही इस मामले से अलग कर लिया है. फिलहाल इस मामले को स्थगित कर दिया गया है. गौरतलब है कि जस्टिस त्रिवेदी सुप्रीम कोर्ट की बेंच का हिस्सा थी. तो चलिए अब आपको जस्टिस बेला त्रिवेदी के सफर के बारे में बताते हैं.

गुजरात सरकार पर कर चुकी हैं कड़ी टिप्पणी
न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी 31 अगस्त, 2021 को भारत के सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में शपथ ली थी. जस्टिस त्रिवेदी की एक टिप्पणी काफी ज्यादा प्रसिद्ध है, "लोकतंत्र के नाम पर हम सभी सीमाओं को पार करते हैं, सब कुछ माफ कर दिया जाता है." जस्टिस त्रिवेदी ने ये टिप्पणी तब की थी जब महाधिवक्ता कमल त्रिवेदी ने एक सुनवाई के दौरान भारत में COVID स्थिति की तुलना चीन से करने का प्रयास किया था और कहा था कि एक कम्युनिस्ट देश होने के नाते, चीन स्थिति से कैसे निपट रहा है, जबकि भारत एक लोकतांत्रिक देश होने के नाते ऐसा नहीं कर सका.

ट्रायल कोर्ट से सुप्रीम कोर्ट आने वाली एकमात्र जज
जस्टिस त्रिवेदी सुप्रीम कोर्ट में पदोन्नत होने वाली गुजरात उच्च न्यायालय की पहली महिला न्यायाधीश हैं. उन्होंने गुजरात राज्य सरकार को एक कड़ा संदेश भेजने के प्रयास में COVID पर स्वत: संज्ञान जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए टिप्पणी की थी कि राज्य सरकार COVID स्थिति से निपटने में कठिनाई के प्रमुख कारण के रूप में 'लोकतंत्र' का हवाला देते हुए अपनी जिम्मेदारियों से दूर नहीं भाग सकती. जस्टिस बेला त्रिवेदी वर्तमान में ट्रायल कोर्ट से आने वाली सुप्रीम कोर्ट की एकमात्र जज हैं.

उन्हें 17 फरवरी, 2011 को एक एडिशनल जज के रूप में हाई कोर्ट में पदोन्नत किया गया था. जून 2011 में, उन्हें राजस्थान हाई कोर्ट के एडिशनल जज के रूप में स्थानांतरित कर दिया गया था. फरवरी 2016 में उसे वापस गुजरात हाई कोर्ट में स्थानांतरित कर दिया गया था. 2003 से 2006 की अवधि के दौरान, उन्होंने गुजरात सरकार की विधि सचिव के रूप में काम किया. 

व्यक्तिगत अधिकारों पर जनहित
इसके अलावा जस्टिस त्रिवेदी ने सरकार को अपने कर्तव्यों की याद दिलाते हुए आम जनता के साथ नरमी नहीं बरती, क्योंकि उनके नेतृत्व वाली पीठ ने COVID मामलों में उछाल के दौरान सार्वजनिक रूप से मास्क नहीं पहनने के लिए जुर्माना 1000 रुपए से घटाकर 500 रुपए करने से इनकार कर दिया था.