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Justice Yashwant Varma: क्या किसी सिटिंग जज पर FIR दर्ज हो सकती है? जानिए इन हाउस प्रक्रिया और किसी भी जज को हटाने की पूरी प्रक्रिया

अगर किसी जज के खिलाफ भ्रष्टाचार, पक्षपात या दूसरे नैतिक आचरण से जुड़े आरोप लगते हैं, तो उनके खिलाफ सीधे FIR दर्ज नहीं होती, बल्कि सुप्रीम कोर्ट की 'इन-हाउस प्रक्रिया' लागू होती है. इस प्रक्रिया में सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ जज जांच करते हैं.

जज पर एफआईआर के नियम जज पर एफआईआर के नियम

भारत में जब कोई आम नागरिक कानून तोड़ता है, तो उसके खिलाफ FIR दर्ज होती है, जांच होती है और फिर कोर्ट में सुनवाई के बाद सजा तय होती है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि अगर कोई मौजूदा (Sitting Judge) जज कानून तोड़े तो क्या उसके खिलाफ भी FIR दर्ज हो सकती है? यह सवाल जितना दिलचस्प है, इसका जवाब भी उतना ही चौंकाने वाला है.

कानून क्या कहता है?
भारत का संविधान न्यायपालिका को एक विशेष सुरक्षा देता है. इसके तहत किसी भी सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट के सिटिंग जज के खिलाफ सीधे FIR दर्ज नहीं की जा सकती. इसका मतलब यह हुआ कि अगर किसी व्यक्ति को लगता है कि किसी जज ने कोई अपराध किया है, तो भी पुलिस सीधे FIR दर्ज नहीं कर सकती.

लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि जज कानून से ऊपर हैं! ऐसे मामलों में 'इन-हाउस प्रक्रिया' (In-House Procedure) लागू होती है, जो जजों की जवाबदेही तय करने के लिए बनाई गई एक विशेष व्यवस्था है.

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जज के खिलाफ FIR दर्ज करने के लिए क्या प्रक्रिया है?
सुप्रीम कोर्ट ने Veeraswami बनाम भारत सरकार (1991) मामले में एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया था, जिसमें कहा गया था कि अगर किसी हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट के जज पर भ्रष्टाचार या अन्य गंभीर आरोप लगते हैं, तो पुलिस तब तक उनके खिलाफ FIR दर्ज नहीं कर सकती जब तक कि CJI (मुख्य न्यायाधीश) की सहमति न हो.

क्या किसी जज को आसानी से हटाया जा सकता है?
भारत में किसी भी जज को हटाना आसान नहीं है. इसके लिए संविधान के अनुच्छेद 124(4) और 217 के तहत 'इंपीचमेंट' (Impeachment) की प्रक्रिया अपनाई जाती है.

किसी जज को हटाने की पूरी प्रक्रिया:

1. संसद में प्रस्ताव:

  • जज के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव (Impeachment Motion) संसद में पेश किया जाता है.
  • लोकसभा में कम से कम 100 सांसदों और राज्यसभा में कम से कम 50 सांसदों का समर्थन जरूरी होता है.

2. जांच समिति का गठन:

  • प्रस्ताव पास होने के बाद, तीन सदस्यीय समिति बनाई जाती है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट के एक जज, हाई कोर्ट के एक जज और एक वरिष्ठ वकील होते हैं.
  • यह समिति जांच करती है कि क्या जज ने संविधान या कानून का उल्लंघन किया है?

3. दोनों सदनों में वोटिंग:

  • अगर समिति जज को दोषी मानती है, तो प्रस्ताव लोकसभा और राज्यसभा में पेश किया जाता है.
  • दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत से प्रस्ताव पास होना जरूरी होता है.

4. राष्ट्रपति की मंजूरी:

  • संसद में प्रस्ताव पास होने के बाद राष्ट्रपति इसपर अंतिम मुहर लगाते हैं, जिसके बाद जज को हटा दिया जाता है.

अब तक कितने जजों को हटाया गया है?
भारत के इतिहास में अब तक किसी भी सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट के जज को महाभियोग के जरिए हटाया नहीं गया है. हालांकि, दो मौकों पर संसद में यह प्रक्रिया शुरू हुई थी:

1. जस्टिस वी. रामास्वामी (1993): उन पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे थे, लेकिन लोकसभा में कांग्रेस ने वोटिंग से वॉकआउट कर दिया, जिससे प्रस्ताव पास नहीं हो सका.

2. जस्टिस सौमित्र सेन (2011): उन पर वित्तीय अनियमितताओं का आरोप था और राज्यसभा में महाभियोग प्रस्ताव पास भी हो गया था, लेकिन लोकसभा में वोटिंग से पहले ही उन्होंने इस्तीफा दे दिया.

जजों पर लगने वाले विवादित आरोप और इन-हाउस जांच प्रक्रिया
अगर किसी जज के खिलाफ भ्रष्टाचार, पक्षपात या दूसरे नैतिक आचरण से जुड़े आरोप लगते हैं, तो उनके खिलाफ सीधे FIR दर्ज नहीं होती, बल्कि सुप्रीम कोर्ट की 'इन-हाउस प्रक्रिया' लागू होती है. इस प्रक्रिया में सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ जज जांच करते हैं. अगर आरोप सही पाए जाते हैं, तो CJI राष्ट्रपति को रिपोर्ट भेज सकते हैं और जज से इस्तीफा देने को कहा जाता है. अगर जज इस्तीफा नहीं देते, तो महाभियोग की प्रक्रिया शुरू की जा सकती है.

क्या जज कानून से ऊपर हैं?
नहीं! भारत का संविधान न्यायपालिका को विशेष अधिकार जरूर देता है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि जजों को मनमानी करने की छूट है. जजों पर भी कड़ा अनुशासन लागू होता है और उनके खिलाफ कार्रवाई करने की पूरी व्यवस्था बनी हुई है.

संक्षेप में, सीधे FIR दर्ज नहीं हो सकती, लेकिन CJI की अनुमति से जांच हो सकती है. अगर कोई जज भ्रष्टाचार या किसी अन्य गंभीर अपराध में लिप्त पाया जाता है, तो उनके खिलाफ इन-हाउस जांच, महाभियोग और राष्ट्रपति की मंजूरी के जरिए कार्रवाई हो सकती है.