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15वीं शताब्दी में कश्मीर पहुंची थी ये कला, एक कानी शॉल बनाने में लगते हैं एक हफ्ते से लेकर सालों

कानी शॉल की बुनाई बहुत हद तक कालीन की बुनाई की तरह होती है. कानी बुनाई करने वाले कारीगरों में जबरदस्त कौशल और धैर्य होता है. वे दिन में पांच से सात घंटे काम करते हैं

कानी शॉल कानी शॉल
हाइलाइट्स
  • कानी शॉल बुनाई की कला पहली बार 15 वीं शताब्दी में फारसी और तुर्की बुनकरों ने कश्मीर में लाई थी.

  • एक कानी शॉल को पूरा करने में हफ्तों से एक साल तक का समय लगता है.

सर्दियों के मौसम में शॉल का इस्तेमाल सिर्फ ठंड भगाने के लिए ही नहीं, बल्कि स्टाइल दिखाने के लिए भी किया जाता है. लंबा-चौड़ा ये शॉल ना सिर्फ लड़के और लड़कियों दोनों को पसंद आता है, बल्कि उसमें कई स्टाइल और वेराइटी भी मौजूद हैं. इन्हीं में से एक है कश्मीर का कानी शॉल (Kani Shawl). ये शॉल दुनियाभर में मशहूर है. एक कानी शॉल को बनाने में 3 महीने से 2 साल तक लगते हैं. 

ईरान से कश्मीर आयी ये कला सदियों से देश-दुनिया के राजाओं की पोशाक का एक हिस्सा रहा है. यहां तक की आपने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कंधे पर भी इसे देखा होगा. कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के वार्डरोब में भी कानी शॉल मौजूद है. कानी शॉल बुनाई की कला पहली बार 15 वीं शताब्दी में फारसी और तुर्की बुनकरों ने कश्मीर में लाई थी, जिन्होंने इस रहस्यमय कला को कश्मीर के आठवें सुल्तान गयास-उद-दीन ज़ैन-उल-अबिदीन से परिचित कराया था. तब से कला का यह रूप कश्मीर में फला-फूला और अब दुनिया भर के कई लोगों के दिलों पर कब्जा कर रहा है. यह नाजुक और सुंदर कानी शॉल एक जमाने में मुगल राजाओं, सिख महाराजाओं और ब्रिटिश अभिजात वर्ग की शोभा बढ़ाता था.

कानी बुनाई के लिए लकड़ी की छोटी सुइयों का इस्तेमाल होता है 

कनिहामा श्रीनगर-गुलमर्ग राजमार्ग पर कुछ सौ घरों वाला एक छोटा सा गांव है. कनिहामा पहले कानी  शॉल बनाने वाला एकमात्र क्षेत्र था, बाद में दूसरे गांवों के कारीगरों ने भी इस कला को सीखा. कानी शब्द गांव के नाम से ही बना है जिसका अर्थ कश्मीरी भाषा में लकड़ी की छड़ें होता है. कानी बुनाई के शिल्प में लकड़ी की छोटी सुइयों का उपयोग किया जाता है जिन्हें 'कनिस' कहा जाता है. शॉल के ऊपर जादुई पैटर्न बनाने के लिए कनिस के चारों ओर रंगीन धागे घुमाए जाते हैं. कनिस 'पूस तुल' नाम की जंगली लकड़ी से बने होते हैं.

एक शॉल को पूरा करने में हफ्तों से एक साल तक का समय लगता है

कानी शॉल की बुनाई बहुत हद तक कालीन की बुनाई की तरह होती है. कानी बुनाई के लिए डिजाइन शॉल पर एक कोडित भाषा में लिखा जाता है, जिसे 'तालिम' कहा जाता है. एक ग्राफ पेपर पर मास्टर बुनकर तालीमगुरु कोडित पैटर्न तैयार करते हैं. कानी बुनाई करने वाले कारीगरों में जबरदस्त कौशल और धैर्य होता है. वे दिन में पांच से सात घंटे काम करते हैं, लेकिन बुने जाने वाले डिजाइन की जटिलता के कारण, वे प्रति दिन केवल कुछ सेंटीमीटर ही बुनाई कर सकते हैं. एक कारीगर को उसके डिजाइन और बुनाई के आधार पर एक कानी शॉल को पूरा करने में हफ्तों से एक साल तक का समय लगता है. ज्यादा बड़ी और घनी डिजाइन वाले शॉल को तैयार होने में कुछ साल भी लग सकते हैं. हालांकि, ज्यादातर कानी शॉल के ज्यादा चर्चे होते हैं, लेकिन इस बुनाई कला का इस्तेमाल स्टोल, पगड़ी, कमरबंद, सूट और कोट बनाने के लिए भी किया जाता है. 

(रिपोर्ट- अशरफ वानी)