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Kargil Vijay Diwas: गरीब बच्चों को पढ़ाना था कारगिल योद्धा कैप्टन सुमित रॉय का सपना, बेटे के सपने को पूरा कर रही हैं शहीद की मां

18 गढ़वाल राइफल्स के जवान सुमित रॉय कारगिल युद्ध के समय द्रास में थे. विस्फोटक की चपेट में आकर 21 साल की उम्र में 3 जुलाई 1999 को शहीद हो गए थे. सुमित का सपना था कि वो गरीब और बेसहारा लोगों को पढ़ाए. आज उनकी मां एक एनजीओ के साथ काम करके उनके इसी सपने को पूरा कर रही हैं.

Captain Sumit Roy and his mother Captain Sumit Roy and his mother

कारगिल युद्ध को 24 साल हो चुके हैं. इस युद्ध में हमारे कई वीर सपूतों की जान गई. उन्हीं में से एक थे शहीद कैप्टन सुमित रॉय. 18 गढ़वाल राइफल रेजिमेंट में तैनात कैप्टन सुमित रॉय को कारगिल युद्ध 1999 में देश के लिए सर्वोच्च बलिदान देने पर भारतीय सेना की ओर से वीर चक्र से सम्मानित किया गया था. सुमित 21 साल की उम्र में बम विस्फोट की चपेट में आकर शहीद हो गए थे. अब उनकी मां स्वपना रॉय शहीद बेटे के सपने को पूरा करने में लगी हुई हैं.

गरीब बच्चों को पढ़ा रही हैं
दरअसल सुमित की इच्छा थी कि वो जरूरतमंद बच्चों को पढ़ाए. स्वपना बेटे की इस अधूरी इच्छा को ही पूरा करने में लगी हुई हैं. वह साल 2000 से सक्षम भारती नाम के एनजीओ से जुड़ी हुई हैं और अब तक आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) वर्ग के सैकड़ों बच्चों को पढ़ाई और नौकरी के लिए प्रशिक्षण दे रही हैं.

सुमित 12 दिसंबर, 1998 को भारतीय सेना में शामिल हुए थे. 3 जुलाई 1999 को वह शहीद हो गए. एक इंटर्व्यू में उनकी मां ने बताया, ''शहीद होने से ठीक दस दिन पहले सुमित छुट्टी पर घर आया था. 2 मई को मैं और मेरे पति दिल्ली के एक रेस्त्रां में गए थे क्योंकि हमारी शादी की सालगिरह थी. 10 मई को वो वापस चला गया था. बेटे की मौत के बाद मुझे उसका एक पत्र मिला जिसमें उसने गरीब बच्चों को पढ़ाने की इच्छा जाहिर की थी. मैं उसी की इच्छा को पूरा कर रही हूं. स्वपना पेशे से पीजीटी की टीचर हैं. उनके पढ़ाए हुए बच्चे अब सीए और वकील बन चुके हैं.

पिता सहन नहीं कर पाए दर्द
स्वपना ने बताया, ''मेरे दोनों बेटे फौज में हैं. दोनों ने इंफेंट्री डिविजन को चुना. बच्चे जब फौज में चले गए हैं तो हम कैसे सोच सकते हैं कि वो पीछे देखेंगे. मैं भी जॉब में थी. करगिल के पांच साल बाद मेरे पति की मौत हो गई थी. वो डिप्रेशन में चले गए थे. सुमित बहुत छोटा था. कई बार कहते थे कि बहुत छोटा है. सुमित एनडीए के माध्यम से सेना में गया था. मैं हर बार उन्हें तसल्ली देती थी. लेकिन उसकी मौत के बाद पति इस दर्द को नहीं सहन कर पाए और डिप्रेशन में चले गए. मैं भूल नहीं सकती. मैंने अपने आप को व्यस्त कर लिया है. मैं समाज के लिए काम करती हूं, बच्चों के लिए काम करती हूं. अपने लिए सोचने का वक्त नहीं मिलता है. सोच के सिर्फ सेहत खराब होता है, किसी की अच्छाई के लिए काम करेंगे तो खुशी मिलती है.''

अदम्य साहस का दिया परिचय
10 सितंबर, 1977 को हिमाचल प्रदेश के कसौली में एसके रॉय के घर जन्मे सुमीत ने जवाहर नवोदय विद्यालय, फरीदकोट से सीनियर सेकेंडरी पास की और फिर प्रतिष्ठित राष्ट्रीय रक्षा अकादमी, खडकवासला (पुणे) में शामिल हो गए थे. 12 दिसंबर 1998 को, सुमीत को गढ़वाल राइफल्स की 18वीं बटालियन में नियुक्त किया गया था. इस बटालियन को कारगिल युद्ध में अपने जवानों के सराहनीय प्रदर्शन के लिए चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ यूनिट प्रशस्ति पत्र से सम्मानित किया गया था. केवल छह महीने के अंदर वो शहीद हो गए, सुमित न केवल हिमाचलियों बल्कि सभी भारतीयों के दिल में रहते हैं. उन्होंने द्रास के प्वाइंट 4700 पर कब्जा किया. उसके बाद विस्फोटक की चपेट में आकर 21 साल की उम्र में 3 जुलाई 1999 को शहीद हुए. मरणोपरांत उन्हें वीर चक्र से सम्मानित किया गया.