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रद्दी में मिलने वाली अनमोल किताबों को सहेजकर घर में ही बना दी लाइब्रेरी, लोगों को शिक्षा का महत्व समझा रहा है यह अनपढ़ कबाड़ी

कर्नाटक में एक कबाड़ व्यापारी ने लोगों के लिए बहुत ही प्रेरणादायी मिसाल कायम की है. खुद अनपढ़ होते हुए भी उन्होंने शिक्षा के महत्व को समझते हुए अपने घर में लाइब्रेरी सेट-अप की है.

Representational Image (Photo: Unsplash) Representational Image (Photo: Unsplash)
हाइलाइट्स
  • शिक्षकों और छात्रों को मुफ्त में दे देते हैं किताबें 

  • दुकान पर आए ग्राहक ने दिया लाइब्रेरी का आइडिया

शिक्षा के मूल्य को समझने के लिए कोई विद्वान होने की जरूरत नहीं है. मंगलुरु शहर से करीब 28 किलोमीटर दूर हुहकुवाकल्लू गांव के एक अनपढ़ कबाड़ व्यापारी ने इसे साबित कर दिया है. 

50 वर्षीय इस्माइल कनाथूर ने बालेपुनी गांव के नवग्राम में अपने घर पर एक छोटी-सी लाइब्ररी बनाया है. पिछले 15 सालों से वह उन सभी किताबों को सहेज रहे हैं जो उन्हें स्क्रैप क रूप में मिली हैं. हर दिन, वह अपनी भरी हुई दुकान में कागज के कचरे के ढेर से उन किताबों को अलग करते हैं जो उन्हें लगता है कि अमूल्य हैं. 

शिक्षकों और छात्रों को मुफ्त में दे देते हैं किताबें 
उनके द्वारा संरक्षित कई पुस्तकें शिक्षण संस्थानों के पुस्तकालयों में पहुंच गई हैं, जबकि कुछ शिक्षकों और छात्रों को भी उन्होंने किताबें दी हैं. द न्यू इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए इस्माइल ने बताया, “मैं इसके लिए एक पैसा भी नहीं लेता. मेरे पास शिक्षा का कोई साधन नहीं था. कम से कम दूसरों को इसका फायदा मिलना चाहिए. शिक्षा के प्रति अपने काम के लिए इस्माइल, 'गांधी' के रूप में जाने जाते हैं. 

उनसे किताबें उधार लेना या मुफ्त में लेना कई सालों से हो रहा था. कुछ हफ्ते पहले, किसी ने उन्हें अपनी लाइब्रेरी स्थापित करने का आइडिया दिया. 

दुकान पर आए ग्राहक ने दिया आइडिया
इस्माइल का कहना है कि एक सज्जन उनकी दुकान पर आए और एक किताब को द्खकर कहा कि बाजार में इसकी कीमत 2,000 रुपये है. इस्माइल ने उनसे कहा कि वह किताबें नहीं बेचते. साथ ही, उस सज्जन को कहा कि अगर यह किताब उनके लिए उपयोगी है तो ऐसे ही ले जाएं. 

लेकिन उस आदमी ले इसे मुफ्त में लेने से इनकार कर दिया और जबरन कुछ नोट इस्माइल की जेब में डाल दिए. दुकान से निकलते समय उन्होंने इस्माइल को अपने घर पर एक पुस्तकालय स्थापित करने का सुझाव दिया. क्योंकि उनकी दुकान में किताबों के लिए पर्याप्त जगह नहीं है.  

घर में बना दी लाइब्रेरी
इस्माइल ने तुरंत इस पर काम किया और जनशिक्षा ट्रस्ट की मदद से किताबों को बालेपुनी गांव में अपने घर ले गए. किताबों को एक लकड़ी के शेल्फ पर व्यवस्थित किया. कोई भी ग्रामीण यहां से किताबें ले सकता है. उन्होंने किताबों को पढ़ने के लिए एक कुछ कुर्सियों की भी व्यवस्था की है. 

इस्माइल का कहना है कि उनकी लाइब्रेरी में कम से कम 2,000 किताबें हैं. इसके अलावा, इस्माइल हमेशा लोगों की मदद करते हैं. वह क्राउड फंडिंग करके गरीब परिवारों की बेटियों की शादी भी कराते हैं.