महाराष्ट्र और कर्नाटक विवाद देश के सबसे पुराने अंतरराज्यीय विवादों में से एक है. महाराष्ट्र और कर्नाटक दोनों ही राज्यों में बीजेपी या बीजेपी समर्थित सरकारें हैं. बेलगावी जिला प्रशासन ने सोमवार को महाराष्ट्र के दोनों मंत्रियों और नेताओं के शहर में प्रवेश पर रोक लगाने का आदेश जारी किया था. उपायुक्त और जिला मजिस्ट्रेट नितेश पाटिल ने सीआरपीसी की धारा 144 के तहत उनके प्रवेश पर रोक लगा दी थी. अब इस विवाद ने उग्र रूप धारण कर लिया है. पुणे से बेंगलुरू जा रहीं महाराष्ट्र की गाड़ियों पर पथराव किया गया. इस बीच महाराष्ट्र के दो मंत्रियों ने अपने बेलगावी दौरे को रद्द कर दिया. इस हिंसक घटना के बाद उप मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कर्नाटक के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई को फोन कर अपनी नाराजगी जाहिर की है.
दोनों राज्यों में है किस बात की लड़ाई?
यह विवाद शुरू हुआ था साल 1956 में जब राज्य पुनर्गठन अधिनियम संसद से पास होकर अस्तित्व में आया. तभी से दोनों राज्य अपनी सीमाओं के कुछ गांव और कस्बों को भाषायी आधार पर अपने राज्य में शामिल किए जाने की मांग करते हैं. दोनों राज्यों में बेलगावी, खानापुर, निप्पानी, नंदगाड और कारवार की सीमा को लेकर विवाद है. इस विवाद में सबसे ज्यादा चर्चा में रहता है बेलगावी. महाराष्ट्र से सटा यह इलाका कर्नाटक की सीमा क्षेत्र में आता है. दोनों राज्यों के बीच यह विवाद कभी भी राजनीतिक रंग ले लेता है. महाराष्ट्र के मंत्री बेलगावी पर अपना दावा ठोकते हैं वहीं दूसरी तरफ कर्नाटक के सीएम बसवराज बोम्मई ने महाराष्ट्र के सोलापुर और अक्कलकोट के कुछ इलाकों पर दावा कर कहा कि ये कर्नाटक का हिस्सा बनना चाहते हैं.
क्या है महाराष्ट्र सरकार का पक्ष
महाराष्ट्र का कहना ये है कि कर्नाटक का उत्तरी पश्चिमी जिला बेलगावी उसका हिस्सा होना चाहिए. इसके लिए महाराष्ट्र एकीकरण समिति का गठन किया गया. जब मामले ने तूल पकड़ा तो केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश मेहर चंद महाजन की अगुवाई में एक आयोग का गठन किया. इस आयोग की सिफारिशें दोनों राज्यों को माननी थी. एक साल बाद 1967 में आयोग ने अपनी रिपोर्ट केंद्र को सौंप दी. आयोग ने निप्पानी, खानापुर और नांदगाड सहित 262 गांव महाराष्ट्र को और कर्नाटक के 264 कस्बों और गांवों को महाराष्ट्र में विलय का सुझाव दिया. हालांकि महाराष्ट्र बेलगावी सहित 814 गांवों की मांग कर रहा था. महाराष्ट्र ने इस रिपोर्ट को भेदभावपूर्ण बताया और 2004 में राज्य पुनर्गठन कानून 1956 के कुछ प्रवाधानों को चुनौती देते हुए भाषायी आधार पर कर्नाटक से 814 गांवों को हस्तांतरित करने की मांग की. यह मामला अभी भी सुप्रीम कोर्ट में लंबित है क्योंकि कर्नाटक मामले की सुनवाई में अनुपस्थित रहता है.
दोनों पक्षों की दलील
कर्नाटक सरकार की दलील रही है कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 3 के तहत राज्यों की सीमाएं तय करने का अधिकार सुप्रीम कोर्ट का नहीं बल्कि संसद को है. महाराष्ट्र सरकार यह दलील देती है कि अनुच्छेद 131 के तहत केंद्र सरकार और राज्य सरकार के बीच के विवादों में सुप्रीम कोर्ट को सुनवाई का अधिकार है.