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Karoji Kutz: चक्रवात में बहा सामान, हैजा ने ली मजदूरों की जान... फिर भी ढाई साल में हो गया था तैयार, अंग्रेजों ने इस शख्स को दी थी पंबन ब्रिज बनाने की जिम्मेदारी

पंबन ब्रिज ने 108 साल तक देश की सेवा की, 1964 में रामेश्वरम चक्रवात ने धनुष्कोडी को तबाह कर दिया और एक यात्री ट्रेन को बहा ले गया, लेकिन ये पुल खड़ा रहा, हालांकि, बाद में इसकी मरम्मत करनी पड़ी, समुद्र की नमी और तूफानों के चलते धीरे-धीरे इसकी हालत खराब हुई, और दिसंबर 2022 में इसे बंद कर दिया गया,

Pamban bridge Pamban bridge

रामनवमी के मौके पर प्रधानमंत्री ने रामेश्वरम जाने वाले श्रद्धालुओं को तोहफा दिया है. अब रामेश्वरम आसानी से जा सकेंगे, ये सफर अब 20 मिनट में पूरा हो जाएगा. एशिया का पहला ऑटोमेटेड वर्टिकल लिफ्ट रेलवे ब्रिज पंबन ब्रिज (Pamban Bridge) खुल चुका है. ये ब्रिज पुराने पंबन ब्रिज की जगह पर बना है. लेकिन क्या आपने कभी सोचा कि भारत का पहला समुद्री पुल, पंबन ब्रिज, जिसने 100 साल से ज्यादा वक्त तक देश को जोड़े रखा, आखिर किसके दम पर बना? दरअसल, ये शख्स थे करोजी कुट्ज. करोजी एक गुजराती ठेकेदार थे. 

भारत का पहला समुद्री चमत्कार
तमिलनाडु के मंडपम और रामेश्वरम को जोड़ने वाला पंबन ब्रिज आज भी इंजीनियरिंग का एक नायाब नमूना है, 24 फरवरी, 1914 को जब ये पुल आम लोगों के लिए खुला, तो ये सिर्फ एक ढांचा नहीं था, बल्कि भारत के सपनों को पंख देने वाला एक रास्ता था, लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस 2.065 किलोमीटर लंबे पुल को बनाने में कितनी मुश्किलें आईं? और इन सबके बीच एक गुजराती शख्स, करोजी कुट्ज, ने इसे हकीकत में बदला,

करोजी कुट्ज कौन थे?
करोजी कुट्ज का जन्म गुजरात में हुआ था, लेकिन उनके जीवन के बारे में ज्यादा जानकारी उपलब्ध नहीं है, इतिहासकारों के पास उनके जन्म की तारीख, परिवार या शुरुआती करियर की कोई ठोस जानकारी नहीं है, फिर भी, ये साफ है कि वो अपने समय के बड़े ठेकेदार थे, जिन्हें ब्रिटिश सरकार ने इतने बड़े प्रोजेक्ट की जिम्मेदारी सौंपी. 6 अप्रैल, 2025 को नए पंबन ब्रिज के उद्घाटन के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनका जिक्र किया, पीएम ने कहा, "100 साल पहले पुराना पंबन ब्रिज एक गुजराती ने बनाया था, और आज 100 साल बाद नया पंबन ब्रिज भी एक गुजराती ने उद्घाटन किया." ये बयान करोजी कुट्ज की पहचान को और मजबूत करता है,

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कैसे बना पंबन ब्रिज?
पंबन ब्रिज का विचार सबसे पहले 1870 में आया था, जब ब्रिटिश सरकार ने भारत और श्रीलंका ,तब सीलोन, के बीच व्यापार बढ़ाने के लिए एक रेल मार्ग की योजना बनाई, शुरुआती योजना में मंडपम से धनुष्कोडी और फिर थलाइमन्नार तक रेल लाइन बिछाने की बात थी, जिसका बजट 299 लाख रुपये था, लेकिन पैसों की कमी के चलते ये योजना छोटी कर दी गई, और सिर्फ 70 लाख रुपये में पंबन रेल ब्रिज बनाने का फैसला हुआ, अगस्त 1911 में निर्माण शुरू हुआ, और करोजी कुट्ज को इसकी कमान सौंपी गई. 

इस पुल को बनाने के लिए करीब 2,000 टन स्टील का इस्तेमाल हुआ, जो ब्रिटेन से मंगवाया गया था, 143 खंभों पर खड़ा ये पुल समुद्र की लहरों के बीच बनना आसान नहीं था, करोजी कुट्ज के सामने कई चुनौतियां थीं- एक भयानक चक्रवात ने सामान बहा दिया, ऊंची लहरों ने काम रोक दिया, और हैजा जैसी बीमारी ने कई मजदूरों की जान ले ली, फिर भी, सिर्फ ढाई साल में ये पुल तैयार हो गया. ये करोजी कुट्ज का जुनून ही था, जिससे ये असंभव काम भी संभव हो गया.

इंजीनियरिंग का अनोखा नमूना
पंबन ब्रिज में एक खास फीचर था- इसका डबल-लीफ बेसक्यूल सेक्शन, जिसे जर्मन इंजीनियर शेरजर ने डिजाइन किया था, ये हिस्सा जहाजों को रास्ता देने के लिए खुल सकता था. उस दौर में ये तकनीक अपने आप में एक क्रांति थी, करोजी कुट्ज ने न सिर्फ इसे बनवाया, बल्कि ये भी सुनिश्चित किया कि ये 100 साल से ज्यादा वक्त तक टिका रहे.

108 साल की सेवा और तूफानों का सामना
पंबन ब्रिज ने 108 साल तक देश की सेवा की, 1964 में रामेश्वरम चक्रवात ने धनुष्कोडी को तबाह कर दिया और एक यात्री ट्रेन को बहा ले गया, लेकिन ये पुल खड़ा रहा, हालांकि, बाद में इसकी मरम्मत करनी पड़ी, समुद्र की नमी और तूफानों के चलते धीरे-धीरे इसकी हालत खराब हुई, और दिसंबर 2022 में इसे बंद कर दिया गया, लेकिन करोजी कुट्ज की बनाई नींव इतनी मजबूत थी कि ये इतने सालों तक डटा रहा,

6 अप्रैल, 2025 को जब नया पंबन ब्रिज खुला, तो करोजी कुट्ज का नाम फिर से चर्चा में आया, ये नया पुल आधुनिक तकनीक से बना है और पुराने पुल की जगह लेगा, लेकिन पुराना पंबन ब्रिज, जो करोजी ने बनाया, हमेशा इतिहास में याद किया जाएगा.