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EXCLUSIVE: केदारनाथ में तीर्थयात्रियों का बोझ ढोने वाले बेजुबानों की लड़ाई लड़ रहीं गौरी मौलेखी से खास बातचीत

Kedarnath Mules Death: केदारनाथ में मर रहे खच्चरों को लेकर सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हो रहा है, जिसमें एनिमल एक्टिविस्ट गौरी मौलेखी लोगों से अपील कर रही हैं कि वे इस जगह को पिकनिक स्पॉट समझकर न आएं. गौरी मौलेखी के मुताबिक केदारनाथ यात्रा में लोगों को ले जा रहे खच्चरों के मरने की संख्या बहुत अधिक है. इसके लिए गौरी मौलेखी ने उत्तराखंड हाईकोर्ट में केस भी फाइल कर दिया है. खच्चरों के मरने की संख्या को लेकर हमने उनसे बात की...

Kedarnath Mules Death (Photo: India Today) Kedarnath Mules Death (Photo: India Today)
हाइलाइट्स
  • उत्तराखंड हाईकोर्ट में किया है केस फाइल, कई चीज़ों का है जिक्र 

  • केदारनाथ में आधे से ज्यादा खच्चर रजिस्टर्ड ही नहीं हैं

Kedarnath Mules Death Update: अदम गोंडवी की ये पंक्तियां काफी मशहूर हैं, “तुम्हारी फाइलों में गांव का मौसम गुलाबी है, मगर ये आंकड़े झूठे हैं ये दावा किताबी है" उत्तराखंड के केदारनाथ की हाल ही घटनाओं पर ये पंक्तियां सटीक बैठती हैं. फिर चाहे वो श्रद्धालुओं की मौत हों या फिर जानवरों की. यात्रियों को अपनी पीठ पर बैठकर दर्शन करवाने ले जा रहे खच्चरों और घोड़ों की मौत पर सरकार, पुलिस प्रशासन, जिला प्रशासन द्वारा किए गए दावों के बीच हकीकत कुछ और ही बयां करती है.

दरअसल ऐसा हम नहीं बल्कि एनिमल एक्टिविस्ट गौरी मौलेखी का यह दावा है. पिछले 1 महीने में जहां उत्तराखंड सरकार का दावा मरे हुए खच्चरों की संख्या को लेकर 120 से 130 के करीब है वहीं पीपुल्स फॉर एनिमल्स की ट्रस्टी गौरी मौलेखी का दावा इस संख्या से 10 गुना ज्यादा है. जिसे लेकर मौलेखी ने उत्तराखंड हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. अदालत में दायर इस याच‍िका में खच्चरों की देखरेख को लेकर कई सारी अपील की गई हैं.    

दरअसल, सोशल मीडिया पर एक वीडियो लगातार वायरल हो रहा है जिसमें एनिमल एक्टिविस्ट गौरी मौलेखी लोगों से अपील कर रही हैं कि वे जानवरों पर अत्याचार ना करें. बता दें, गौरी 2017-18 में नारी शक्ति पुरस्कार जीत चुकी हैं. 

केदारनाथ में मर रहे खच्चरों को लेकर GNT डिजिटल ने एनिमल एक्टिविस्ट गौरी मौलेखी से बात की. चलिए पढ़ते हैं बातचीत के मुख्य अंश: 

गौरी मौलेखी बताती हैं कि कई घोड़े और खच्चर रोजाना केदारनाथ की चढ़ाई करते हैं, बोझा होते हैं, वे अपनी क्षमता से ज्यादा काम करते हैं और उसके बाद उन्हें ठीक से खाना और पानी नहीं मिलता है, न उनकी टेस्टिंग होती है जिससे आखिर में वे मर जाते हैं. लेकिन इन बेजुबान जानवरों की फ़िक्र कोई भी नहीं करता है. 

गौरी कहती हैं, “साल 2013 की त्रासदी से पहले केदारनाथ मार्ग पर जानवरों के लिए चार स्टॉप और रेस्ट एरिया थे, लेकिन उस त्रासदी के बाद से कोई स्टॉप और रेस्ट एरिया नहीं है. हालांकि, यात्रा शुरू होने से पहले पशुपालन मंत्री सौरभ बहुगुणा ने खच्चरों के संचालकों को उनपर बोझ न डालने की सलाह दी थी, बकायदा इसके लिए गाइडलाइन भी जारी की थी, लेकिन आंकड़े की मानें तो उन सबका धरातल पर कोई फायदा नहीं हुआ है.”

केदारनाथ में आधे से ज्यादा खच्चर रजिस्टर्ड ही नहीं हैं

गौरी कहती हैं, “केदारनाथ का इकोसिस्टम बहुत अलग है, ये कोई पिकनिक स्पॉट नहीं है कि वहां लोग घुड़सवारी के लिए आएं. साल  2013 में जब केदारनाथ में आपदा आई थी तब भी हम इससे सीख ले चुके हैं. उस वक़्त  केदारनाथ में 14 हजार खच्चर मौजूद थे और उनमें से आधे मर गए थे और आधे जो थे उन्हें वहां से निकालने के लिए सरकार कुछ कर भी नहीं पाई थीं क्योंकि हमारी प्रायोरिटी इंसानों को पहले वहां से निकालना था. उस वक़्त हमने कई खच्चरों को वहां से निकाला था. इस बार भी मुझे चिंता हुई कि क्या हमने खच्चरों के लिए कोई सुविधा रखी है. इसी को देखने के लिए मैं खुद वहां गयीं. तब मैंने देखा कि वहां पैदल यात्रियों के चलने की जगह नहीं थी क्योंकि पूरे ट्रैक पर केवल खच्चर ही मौजूद हैं. किसी पर टैग लगा है तो किसी पर नहीं लगा है. आधे से ज्यादा वहां बिना टैग वाले खच्चर हैं, जिनका जीना मरना सरकार के रिकॉर्ड में आता ही नहीं है.”

खच्चरों के लिए जरूरी होता है गर्म पानी 

आपको बता दें, पिछले हफ्ते भारतीय जीव जंतु कल्याण बोर्ड ने चारधाम यात्रा में इस्तेमाल किए जा रहे घोड़े व खच्चरों की मौत का देखते हुए बोर्ड ने मुख्य सचिव को पत्र लिखा था. जिसमें उन्होंने घोड़े और खच्चरों के ग्लैंडर्स का टेस्ट करवाने को कहा था. आपको बताते चलें कि ये एक घातक बीमारी होती है जो जनवरों से इंसानों में भी फैल सकती है. और चूंकि चारधाम यात्रा में जो श्रद्धालु आते हैं वो देश के अलग-अलग हिस्सों से आते हैं इसलिए ये बीमारी ज्यादा लोगों में फैलने का खतरा है.  

इसे लेकर गौरी कहती हैं, “खच्चरों के बारे में एक ख़ास बात होती है कि उन्हें ऊंची जगह जाने पर गर्म पानी की जरूरत होती है. गौरी बताती हैं, “अगर ऊपर के इलाकों में खच्चरों को गर्म पानी नहीं मिलता है तो उन्हें कॉलिक नाम की एक बीमारी हो जाती है, जिसके बाद वे 15 से 20 मिनट में ही मर जाते हैं. हमने खच्चरों के ऊपर जो कपड़े रखे जाते हैं बहुत सारे, उन्हें उठाकर देखा तो पाया कि तो खच्चरों के पस पड़े हुए थे. कोई भी पशुपालन विभाग का डॉक्टर या कोई ट्रीटमेंट के लिए जगह वहां मौजूद नहीं थी.”

1300 से ज्यादा खच्चरों की पिछले 1 महीने में हो चुकी है मौत  

खच्चरों की मौत को लेकर सोमवार को उत्तराखंड के पशुपालन मंत्री सौरभ बहुगुणा ने अपने ट्विटर हैंडल से पिछले 1 महीने में उन पशुओं की संख्या बताई थी जिनकी मौत हो चुकी है. उनके मुताबिक, करीब 110 से 120 पशुओं की मृत्यु हुई है. 

हालांकि, गौरी और उनकी टीम ने जो आंकड़ें डॉक्यूमेंट किये हैं उनके मुताबिक ये आंकड़ा 10 गुना ज्यादा है. गौरी कहती हैं, “वहां पर जब हमने लोगों से बात की और खुद देखा तो पता चला कि दिन में 30-35 खच्चर पूरी यात्रा के दौरान मर रहे हैं. मिनिस्टर केवल वही बताते हैं जो उनका विभाग उन्हें सूचित करता है. और विभाग वही सूचित करता है जो रजिस्टर्ड होते हैं. लेकिन उन आधे से ज्यादा खच्चरों का क्या जो रजिस्टर हुए ही नहीं हैं. अगर मंत्री जी 110 या 120 का आंकड़ा दे रहे हैं तो हम 1300 आसानी से मान सकते हैं. बल्कि ये आंकड़ा इससे ज्यादा हो होगा. अगर कोई भी वहां पर जाकर देखेगा तो समझ आएगा कि इतना कम नंबर नहीं हो सकता. इतनी लाशें तो हमने 1 दिन में देखी हैं.”

सरकार के दावे किताबी हैं …. 

गौरी कहती हैं, “देखिये, बहुत जरूरी है कि खच्चरों को कॉन्वॉय सिस्टम में मूव करवाना चाहिए. यही काम तिब्बतन पुलिस भी करती है जब वो जानवरों को मूव करती हैं. टाइट सिक्योरिटी रहे और पता रहे कि कौन रुका है कौन चल रहा है. इसमें 10 या 15 खच्चरों का ग्रुप होना चाहिए. हर ग्रुप के साथ एक पशु चिकित्सक होना चाहिए जो ये गारंटी ले कि ये सब स्वस्थ हैं. वहां इतनी भीड़ है कि किसी एक भी खच्चर को रोकेंगे तो वहां ट्रैफिक लग जायेगा. तो रोकना, उन्हें आराम देना सब कागजी बाते हैं. ये बातें बस लिखने-पढ़ने में अच्छी लगती हैं. असलियत से इनका नाता नहीं है. वहां रुकने की भी व्यवस्था नहीं है. बस पॉलीथीन लगाकर कुछ शेड्स बना दिए हैं. पॉलीथिन में इतनी ठंड में जब बरसात होती है तो उस जानवर की मौत होनी ही है.”

14000 से ज्यादा जानवरों पर हम कर रहे हैं अत्याचार 

गौरी आगे कहती हैं, “मैदानी इलाके जैसे बिजनौर, नजीबाबाद आदि से 60 या 70 हजार में एक खच्चर आता है. आठ या दस हजार घोड़े वाला एक चक्कर के चार्ज करता है. तो 6 या 7 चक्कर में उसके पैसे वसूल हो जाते हैं. ये खच्चर कुछ चक्कर लगाते हैं और मर जाते हैं. उसके बाद वो खच्चर जीए या मरे उसे फर्क नहीं पड़ता है. हालांकि, मरे तो और बेहतर है क्योंकि तब पशुपालन विभाग तब इंश्योरेंस के पैसे भी दे देता है. 10 हजार से तो ज्यादा ही हैं, मेरे अनुमान के हिसाब से आज की तारीख में केवल केदारनाथ ट्रैक पर 14,000 जानवरों पर अत्याचार कर रहे हैं, जिनका किसी तरह का कोई टेस्ट नहीं हो रहा है.”

कौन है इसके लिए जिम्मेदार?

गौरतलब है कि पशुओं के लिए पशु क्रूरता अधिनियम बनाया गया है. जिसके तहत जिले की एक अथॉरिटी होती है जिसका नाम सोसाइटी फॉर प्रिवेंशन ऑफ़ क्रुएल्टी तो एनिमल्स (Society for Prevention of Cruelty to Animals या जिसे हम SPCA भी कहते हैं. इनकी जिम्मेदारी जानवरों की  देखरेख की होती है. 

गौरी का मानना है कि एसपीसीए को इसमें दखलंदाजी करने की जरूरत है. वे इसके लिए जिम्मेदार हैं. वे कहती हैं, “इसमें सबसे पहले डीएम को इसके लिए कदम उठाने चाहिए. और राज्य सरकार को ये देखना चाहिए कि उस जगह की कैरिंग कैपेसिटी (Carrying Capacity) क्या है? अगर हम एक ट्रैक को सिर्फ ये कहकर खोल दें कि जितने लोग आना चाहें उतने आ जाएं तो ये ठीक नहीं है. ऐसा अमरनाथ में भी है. ऐसा ही एनजीटी ने वैष्णो देवी के लिए भी किया है. और कैलाश मानसरोवर के लिए भी किया गया है. केदारनाथ के लिए भी हमने एक ऐसा ही आंकड़ा निकालना होगा कि कितने लोग वहां आ सकते हैं, वहां  कितने खच्चर आ सकते हैं. वहां कितनों के लिए व्यवस्था है. इसके अलावा, खच्चरों की टेस्टिंग, उनका एंड्योरिंग टेस्ट करें, उन्हें 10-15 दिन वहां रखकर देखीं कि वो उस परिस्थिति में रहने लायक हैं या नहीं.” 

उत्तराखंड हाईकोर्ट में किया है केस फाइल, इन चीज़ों का है जिक्र 
 
गौरी कहती हैं कि ये काफी दुखद है की हमने इन बेजुबान जानवरों को मैदानी इलाकों से उठाकर सीधे इतने ऊपर और ठंडे इलाके में भेज दिया. न हमने ये देखा कि उनका शरीर उस वातावरण के लिए अनुकूल है या नहीं, न हमने ये देखा कि क्या उनका दिल इतने ठंडे इलाके में इतना बोझ उठा सकता है या नहीं. यही वजह है कि इतनी मात्रा में वहां खच्चर लुढ़कते हैं जिसमें यात्रियों की भी जान जाती है. जो खच्चर वहां मरते हैं उन्हें नदियों में फेंक दिया जाता है. अब इसी को देखते हुए हमने ये केस उत्तराखंड हाई कोर्ट में फाइल कर दिया है.   

हाई कोर्ट में फाइल किये इस केस का जिक्र करते हुए गौरी कहती हैं, “हमने अपने केस में 3 मुद्दे रखे हैं. सबसे पहला, कैरिंग कैपेसिटी डिसाइड की जाए. ये इंसानों के लिए खतरनाक है. अगर हम वहां पर घोड़े दौड़ाते हैं और पैदल यात्री भी उसी ट्रैक को इस्तेमाल करते हैं. वहां बारिश  आती है फिसलन होती है. इसके साथ दूसरा, जानवरों के लिए पानी की, मेडिकल की, खाने की सुविधा. इसके अलावा, एक सिस्टम में उन्हें चलाया जाए. और उन्ही घोड़ों को इजाजत दी जाए जिनका ग्लैंडर्स टेस्ट हो चुका हो, जिनका वैक्सीनेशन हो चुका हो. राज्य सरकार जब तक केवल गाइडलाइन देते रहेंगे तब तक कोई इन्हे नहीं मानेगा, इसके लिए एक पॉलिसी बनाने की जरूरत है. भारवाहक पशु क्रूरता निवारण नियम, 1965 के प्रावधानों में अब समय के हिसाब से कुछ बदलाव लाने की जरूरत है.”

केदारनाथ कोई पिकनिक स्पॉट नहीं है 

आखिर में गौरी ने सबसे अपील करते हुए कहा कि वे अपनी यात्रा के दौरान इन बेजुबान जानवरों पर अत्याचार न करें. उन्होंने कहा, “मेरी एक अपील उन सभी उत्तराखंड निवासियों और यात्रियों के लिए है जो बद्रीनाथ, केदारनाथ या मानसरोवर जैसी तीर्थ जगहों पर जाते हैं, वो कृपया करके जानवरों का शोषण न करें. वो दूसरे तरीकों से जाएं. इसके अलावा ये समझकर जाएं कि ये पिकनिक स्पॉट नहीं है, यहां हॉर्स राइडिंग के लिए न आएं. अगर हम किसी को दुःख देकर तीर्थयात्रा करने के लिए जाते हैं तो ये सभी के साथ गलत होगा.”