
भारत चीन सीमा के साथ-साथ हिंद महासागर क्षेत्र में निगरानी बढ़ाने के लिए 3 अरब डॉलर से अधिक के सशस्त्र ड्रोन खरीदने के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ चर्चा के सबसे सफल दौर में है. इस डील के बाद भारत की तीनों सेनाओं को कम से कम 10-10 ड्रोन मिलने की संभावना है. यह डेवलेपमेंट ऐसे समय में आया जब 1990 के दशक में सीमा समझौते, जो सीमा क्षेत्र में बड़े पैमाने पर सैनिकों को लाने पर रोक लगाते हैं पर बात करते हुए विदेश मंत्री एस जयशंकर ने चीन को "अवहेलना" करने के लिए दोषी ठहराया है."
क्या है खास ?
MQ-9B एक हंटर किलर ड्रोन है जो अनिवार्य रूप से पिछले महीने काबुल में अल कायदा प्रमुख अयमान अल-जवाहिरी (Ayman al-Zawahiri)को मारने के लिए इस्तेमाल किए गए MQ-9 रीपर ड्रोन का एक प्रकार है. एक उच्च ऊंचाई वाला लॉन्ग इंड्योरेंस (HALE)ड्रोन, यह 35 घंटे से अधिक समय तक हवा में रह सकता है और चार हेलफायर मिसाइल और लगभग 450 किलोग्राम बम ले जा सकता है.
यह दो प्रकारों में उपलब्ध है - स्काईगार्डियन (Sky Guardian) और सीगार्डियन (Sea Guardian).इसे हाल फिलहाल में भारतीय नौसेना द्वारा उपयोग किया जाता है. सेना ने 2020 में उनमें से दो को एक वर्ष की अवधि के लिए लीज पर लिया था, जिसे बाद में बढ़ा दिया गया था.
भारत को ड्रोन की आवश्यकता क्यों है?
दक्षिण अमेरिका के ब्राजील, पराग्वे और अर्जेंटीना के तीन देशों के दौरे पर गए जयशंकर ने चीन को अलग करते हुए कहा कि भारत को चीन से "उस आपसी सम्मान और आपसी संवेदनशीलता" की जरूरत है. उन्होंने कहा कि "यह कोई रहस्य नहीं है कि हम एक बहुत कठिन दौर से गुजर रहे हैं.”
सभी तीन सशस्त्र बलों को 10-10 ड्रोन दिए जाने से भारतीय रक्षा बलों को अपने मानव रहित सैन्य हथियारों और निगरानी कार्यक्रम को मजबूत करने की अनुमति मिलेगी. इससे विशेष रूप से पूर्वी लद्दाख और हिंद महासागर क्षेत्र में चीनी युद्धपोतों की गतिविधियों पर नजर रखने मदद मिलेगी जोकि नौसेना पहले से ही कुछ महीनों से इन ड्रोनों का इस्तेमाल कर रही है.
सिर्फ एक सौदा नहीं
ड्रोन का अधिग्रहण जब भी होता है यह अमेरिका और भारत के बीच बढ़ते सैन्य सहयोग में एक और कदम होगा. फरवरी 2020 में, भारत ने भारतीय नौसेना के लिए 24 MH-60 रोमियो हेलीकॉप्टरों की खरीद के लिए अमेरिका के साथ 2.6 बिलियन डॉलर का समझौता किया, जिसकी डिलीवरी पहले ही शुरू हो चुकी है.
इससे पहले 2016 में लॉजिस्टिक्स एक्सचेंज मेमोरेंडम ऑफ एग्रीमेंट (LEMOA) पर हस्ताक्षर किए गए थे, जो दोनों के सशस्त्र बलों को आपूर्ति की मरम्मत और पुनःपूर्ति के लिए एक दूसरे के ठिकानों का उपयोग करने की अनुमति देता है.