अम्बाला जिला के अंतिम स्वतंत्रता सेनानी केहर सिंह ने रविवार को अंतिम सांस ली. केहर सिंह नेताजी सुभाष चंद बोस की सेना में भूखे प्यासे रहकर आजादी के लिए लड़ने वाले स्वतंत्रता सेनानी थे. सोमवार सुबह उन्हें राजकीय सम्मान के साथ अंतिम विदाई दी गई. केहर सिंह की अंतिम यात्रा में प्रशासनिक अधिकारी शामिल रहे. अधिकारियों ने उन्हें पुष्पचक्र अर्पित कर श्रद्धांजलि दी. हरियाणा पुलिस ने गार्ड ऑफ ऑनर दिया. केहर सिंह के पोते मोहित ने उन्हें मुखाग्नि दी.डीएसपी अनिल कुमार की सलाह पर केहर सिंह का अंतिम संस्कार लखनौरा में घर से कुछ दूर उनके खेत में किया गया. ताकि आने वाली पीढ़ियां हमेशा उनको याद रखें. अब खेत में ही उनकी समाधि बनाई जाएगी.
दूसरे विश्व युद्ध के दौरान आजाद हिंद फौज में शामिल हुए थे केहर सिंह
1922 में गांव ककड़ माजरा में जन्में केहर सिंह 19 साल की उम्र में फौज में भर्ती हुए थे. जहां उनकी पोस्टिंग सिंगापुर में थी. वहां दूसरे विश्व युद्ध के दौरान जापानियों ने उन्हें घेर लिया. इसी दौरान उन्होंने नेताजी का भाषण सुना और तय कर लिया कि देश के लिए नेताजी सुभाष चंद्र स की आजाद हिंद फौज में शामिल होंगे. वह सिंगापुर से बर्मा और रंगून चले गए थे.
1947 में पंजाब की बनत कौर से हुई थी शादी
केहर सिंह दूसरे विश्व युद्ध खत्म हो जाने के बाद 1946 में घर वापस पहुंचे.1947 में दप्पर (पंजाब) की बनत कौर से केहर सिंह का विवाह हुआ। उनके सात बेटे और बेटियां हैं. जिनमें हरनेक सिंह, दीप सिंह, करनैल सिंह, अमरजीत सिंह, गुरमीत सिंह, अजैब कौर व दीप कौर हैं. केहर सिंह के 13 पोते-पोतियां हैं.
नेताजी सुभाष चंद बोस से प्ररित थे केहर सिंह
उनके भतीजे, जरनैल सिंह ने कहा कि केहर सिंह 20 साल की उम्र में सिंगापुर में आईएनए में शामिल हो गए और उनके शिविरों पर ब्रिटिश और सहयोगी बलों ने कई बार कब्जा कर लिया और दोनों सेनाओं के बीच समझौते के बाद आजाद करा दिया गया. जरनैल ने आगे कहा कि “उन्होंने नेताजी से प्रेरित होकर स्वतंत्रता आंदोलन के लिए लड़ने के लिए इतनी कम उम्र में अपना बोर्डिंग स्कूल छोड़ दिया. आजादी मिलने तक आईएनए में सेवा देने के बाद, वह एक सहकारी समिति में शामिल हो गए जहां उन्होंने सेवानिवृत्ति होने तक काम किया.