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Paddy Conservator: चावल की 650 से ज्यादा किस्मों को सहेज चुका है यह किसान, विकसित किया Polybag Method, पद्मश्री से हुए सम्मानित

केरल के रहने वाले सत्यनारायण बेलेरी पिछले कई सालों से चावल की अलग-अलग किस्मों को सहेज रहे हैं और उन्होंने धान जीन बैंक बनाया है जहां आज 650 से ज्यादा किस्में हैं. इस काम के लिए उन्हें पद्म श्री से नवाजा गया है.

Satyanarayana Beleri, farmer- turned- paddy conservator Satyanarayana Beleri, farmer- turned- paddy conservator
हाइलाइट्स
  • कमाई नहीं सिर्फ संरक्षण है उद्देश्य 

  • विकसित किया अनोखा तरीका

केरल के बीज संरक्षक सत्यनारायण बेलेरी (Sathyanarayana Beleri) को हाल ही में पद्मश्री (Padma Shri) से सम्मानित किया गया है. सत्यनारायण को 650 पारंपरिक चावल किस्मों के संरक्षण में उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए यह सम्मान दिया गया है. उनके उल्लेखनीय प्रयास सिर्फ केरल तक सीमित नहीं हैं. बल्कि उन्होंने तीन राज्यों - कर्नाटक (Karnataka), केरल (Kerala) और तमिलनाडु (Tamil Nadu) में 'राजकायम' (Rajakayame) चावल किस्म के उत्पादन और संरक्षण को बढ़ावा दिया है.

कासरगोड (Kasaragod) के बेलूर गांव के मूल निवासी सत्यनारायण ने साल 2008 में 100 ग्राम बीज की किस्म के साथ अपना मिशन शुरू किया था. लगातार 15 सालों से वह आने वाली पीढ़ियों के लिए पहले केरल से और फिर देश भर से चावल की विभिन्न किस्मों के बीज इकट्ठे करते रहे और उन्होंने चावल की किस्मों का जीन बैंक तैयार किया. 

सत्यनारायण ने पद्मश्री मिलने पर कहा, “पद्म पुरस्कार अप्रत्याशित था. यह पहचान मुझे और अधिक जिम्मेदार बनाती है. मैं अपना मिशन जारी रखूंगा और अपने कलेक्शन में और बीज शामिल करूंगा." उन्होंने जिज्ञासावश धान जीन बैंक संरक्षण शुरू किया और चावल की पहली किस्म जिसपर उन्होंने प्रयोग किया वह राजकायम थी. 

कमाई नहीं सिर्फ संरक्षण है उद्देश्य 
सत्यनारायण चावल की इन किस्मों की खेती नहीं करते हैं बल्कि उनका उद्देश्य ज्यादा से ज्यादा किस्मों को सहेजना है. उन्होंने पॉलीबैग में धान उगाकर संरक्षण का अनोखा तरीका विकसित किया है. वह अपनी इनोवेटिव 'पॉलीबैग विधि' के जरिए न सिर्फ स्वदेशी चावल की किस्मों का संरक्षण करते हैं बल्कि सुपारी, जायफल और काली मिर्च के पारंपरिक बीजों की भी सुरक्षा कर रहे हैं. इसके अलावा, वह एक मधुमक्खी पालन विशेषज्ञ हैं और पौधों की ग्राफ्टिंग/कलिकायन में भी एक्सपर्ट हैं. 

उनका काम सिर्फ भारत तक सीमित नहीं है बल्कि उन्होंने जापान और फिलीपींस जैसे देशों से चावल की विविध किस्मों पर भी काम किया है. उन्होंने अनुसंधान केंद्रों को चावल की 50 किस्में देकर और साथी किसानों को मुफ्त चावल के बीज बांटकर अनुसंधान और संरक्षण को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.

सत्यनारायण का कहना है कि वह फायदे के लिए धान की खेती नहीं कर रहा हूं, बल्कि हमारे देश और यहां तक ​​कि विदेशों में पाई जाने वाली धान की विविध किस्मों को संरक्षित करने के काम कर रहे हैं.  उनका फार्म छात्रों और शोधकर्ताओं के लिए एक केंद्र बन गया है, जो असामान्य और मूल्यवान चावल की किस्मों को देखने के लिए अक्सर वहां आते रहते हैं. 

कैसे करते हैं संरक्षण 
बात उनके संरक्षण करने के तरीके की करें तो सत्यनारायण की मीडिया को दी गई जानकारी के मुताबिक, वह सबसे पहले पेपर कपों में पॉट मिक्स (मिट्टी के साथ खाद आदि मिलाकर) डालते हैं. इन अलग-अलग कपों में हर एक धान की किस्म के 10-20 बीजों को बोया जाता है और हर एक कप पर धान की किस्म का लेबल लगाया जाता है. सभी बीज अंकुरित हो इसके लिए कपों में सही नमी बनाकर रखी जाती है. बीज तीन से चार दिनों में या हफ्ते भर में अंकुरित हो जाते हैं और दसवें दिन तक नए पौधे उगने लगते हैं. 

10 दिनों के बाद, पेपर कपों से इन पौधों को खाद मिश्रण से भरे पॉलीबैग में ट्रांसप्लांट किया जाता है और सूरज की रोशनी में एक खुली जगह में रखा जाता है. पौधों को फूल आने तक, पौधों को पानी दिया जाता है और हर सप्ताह 100 मिलीलीटर 'जीवामृत' दिया जाता है ताकि सही पोषण मिल सके. फूल आने के बाद, हर एक पॉलीबैग को तिरपाल से बने पानी के तालाब में ट्रांसप्लांट कर दिया जाता है और पक्षियों से पौधों को बचाने के लिए इसे नेट से संरक्षित किया जाता है.  

फसलों की रोपाई करते समय, वह और भी कई बातों का ध्यान रखते हैं जैसे कि क्रॉस-पॉलिनेशन न हो. फसल तैयार होने पर कटाई करके विभिन्न किस्मों को अलग-अलग धूप में सुखाया जाता है और फिर बीजों को कागज की थैलियों में स्टोर किया जाता है. हर एक पॉलीबैग से लगभग 150 ग्राम शुद्ध बीज प्राप्त किए जा सकते हैं और अगले बुवाई सीजन के लिए उपयोग किए जा सकते हैं. 

इन किस्मों को किया है संरक्षित
सत्यनारायण के पास किसानों को देने के लिए बड़ी मात्रा में बीज नहीं हैं, लेकिन कोई भी उनसे सैंपल के तौर पर बीज ले सकता है. उनके कलेक्शन में महत्वपूर्ण किस्में हैं- चित्तेनी, अक्तीकाया, नारिकेला, सुग्गी कयामे, वेल्लाट्टुवेन, गंधासले, जीरिगे सन्ना, घंगडाले, कुमकुमासले, कलामे, कोट्टांबरसले, करिगाजविले, राजा मुडी, जुगल, कग्गा, करिजेडु, परम्बु उचान, मैसूरु मल्लिगे आदि. धान की पारंपरिक किस्मों के साथ-साथ वह जायफल, काली मिर्च, जैक और आम की महत्वपूर्ण पारंपरिक किस्मों का भी संरक्षण कर रहे हैं.

सत्यनारायण के संग्रह में विभिन्न भारतीय राज्यों जैसे केरल, कर्नाटक, असम और मणिपुर की चावल की किस्मों के साथ-साथ फिलीपींस और जापान की अंतर्राष्ट्रीय किस्में भी शामिल हैं.