उत्तर प्रदेश में 69,000 सहायक शिक्षकों की भर्ती से जुड़े मामले को लेकर सैकड़ों अभ्यर्थी लखनऊ के निशातगंज में विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं. इस बीच राज्य के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य की एक चिट्ठी सामने आई है जो योगी सरकार के लिए पक्ष में काम कर सकती है.
दरअसल यह चिट्ठी उप मुख्यमंत्री मौर्य ने 26 नवंबर 2023 को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नाम लिखी थी. इस चिट्ठी में 69,000 शिक्षकों की बहाली में आरक्षण संबंधित विसंगतियों की ओर इशारा किया गया था. चिट्ठी में राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग और राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग दोनों का जिक्र करते हुए कहा गया था कि भर्ती प्रक्रिया में ओबीसी और दलित अभ्यर्थियों की उपेक्षा की गई है, इसलिए इनके साथ न्याय किया जाए.
क्या हैं इस चिट्ठी के मायने?
अब जबकि हाई कोर्ट की डबल बेंच ने 69,000 शिक्षकों की बहाली की पुरानी लिस्ट रद्द कर नई सूची तैयार करने का आदेश दिया है तो ऐसे में केशव मौर्य की चिट्ठी की चर्चा सियासी गलियारों में भी खूब हो रही है. यह चिट्ठी इस ओर इशारा करती है कि सरकार अंधेरे में रही और सरकार में बैठे अधिकारियों ने मनमानी तरीके से आरक्षण रोस्टर लागू किया.
इसके बाद से न सिर्फ यूपी में लोकसभा चुनाव के दौरान आरक्षण का मुद्दा सरकार के खिलाफ सबसे प्रबल तौर पर उठा बल्कि बीजेपी को इस राज्य में भारी नुकसान भी उठाना पड़ा. इस चिट्ठी ने एक और बात साफ कर दी है कि सरकार में शीर्ष पर बैठे लोगों में शिक्षक बहाली के मुद्दे पर एक राय नहीं थी. उपमुख्यमंत्री केशव मौर्य मजबूती के साथ ओबीसी और दलित अभ्यर्थियों के पक्ष में खड़े थे, जबकि सरकार में मौजूद लोगों ने इस मुद्दे पर किसी की नहीं सुनी.
अब जब उत्तर प्रदेश की हार ने बीजेपी को लोकसभा में बहुमत से भी वंचित कर दिया तो आरक्षण को लेकर यूपी सरकार का रुख भी बदल गया है. हाई कोर्ट के डबल बेंच के फैसले के बाद योगी सरकार ने इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने के बजाय अब उच्च न्यायालय के आदेश पर ही अमल करने का फैसला किया है.
बहरहाल, बीजेपी के लिए केशव मौर्य की यह चिट्ठी इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि पार्टी के कई नेता अब उसका हवाला देकर यह बताने में लगे हैं कि पार्टी पहले से ही ओबीसी और दलित अभ्यर्थियों के पक्ष में खड़ी है. और उनके मुद्दे को पहले भी हल करने की कोशिश कर चुकी है.
बीजेपी में गर्म हुई चर्चा
पार्टी के भीतर लोग कहने लगे हैं कि जो फैसला योगी सरकार ने अदालत के आदेश के बाद किया है, अगर वही लोकसभा चुनाव से पहले कर लेती तो शायद यूपी में सीटों का गणित कुछ और होता. राजनीति के चश्मे से अगर देखा जाए तो आरक्षण के मुद्दे पर बीजेपी अपनी सियासी जमीन गंवा चुकी है और समाजवादी पार्टी पीडीए बनाकर उसका लाभ उठा रही है. शिक्षक बहाली मामले में ओबीसी और दलित आरक्षण घोटाले ने 2024 चुनाव के पहले भाजपा की हवा ऐसी खराब की कि बीजेपी आरक्षण विरोध के मुद्दे की हवा में उड़ गई.
सनद रहे कि संविधान बचाओ और आरक्षण बचाओ का नैरेटिव बीजेपी को अर्श से फर्श पर लाने का कारण बना. 64 सीट जीतने वाली बीजेपी महज 33 सीट पर सिमट कर रह गई. पार्टी और संगठन ने भी माना कि जिस तरीके से आरक्षण के विरोधी के तौर पर बीजेपी को पेश किया गया उसने भाजपा का अच्छा खासा माहौल खराब कर दिया लेकिन बीजेपी और योगी सरकार इस बात को नहीं भांप पाई.
बीजेपी के गले का कांटा रहे अभ्यर्थी
जब उप मुख्यमंत्री की चिट्ठी पर चर्चा शुरू हुई है तो इस बात पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए कि बीजेपी को आरक्षण विरोधी करार देने में 69,000 शिक्षक बहाली के अभ्यर्थियों का बड़ा हाथ है. किसी नेता का कोई चौखट नहीं रहा जहां पांच साल से संघर्ष कर रहे इन अभ्यर्थियों ने शिक्षक बहाली में आरक्षण घोटाले का मुद्दा न उठाया हो.
इन अभ्यर्थियों ने दर्जनों बार केशव मौर्य के सरकारी बंगले के बाहर प्रदर्शन किया, मुख्यमंत्री आवास के बाहर प्रदर्शन किया, बीजेपी दफ्तर के बाहर प्रदर्शन किया और जब कोई नतीजा नहीं निकला तो इन अभ्यर्थियों ने चुनाव में बीजेपी के खिलाफ ही अभियान छेड़ दिया. इन अभ्यर्थियों ने ऐसा माहौल बनाया कि बीजेपी वोट पिछड़ों का लेती है और आरक्षण भी उन्हीं का खाती है.
आरक्षण के मुद्दे पर सरकार और अभ्यर्थियों के बीच रस्साकशी चलती रही. आखिर में अदालत ने इन अभ्यर्थियों के हक में फैसला दिया और सरकार को झुकना पड़ा. हालांकि अभ्यर्थी तब तक प्रदर्शनस्थल छोड़ने को तैयार नहीं जब तक उनके हाथ में नियुक्ति पत्र न मिल जाए. बीजेपी फिलहाल इस बात पर राहत की सांस ले सकती है कि बेशक वह चुनाव हार गई, लेकिन जब यह ओबीसी और दलित अभ्यर्थी लड़ाई लड़ रहे थे तो उनका भी एक नेता उनके साथ खड़ा था.