भारतीय वायुसेना लगातार अपनी ताकत में इजाफा कर रही है. अब इसी कड़ी में मेक इन इंडिया पहल के तहत देश की पहली स्वदेशी एंटी रेडिएशन मिसाइल रुद्रम को वायु सेना में लाने के लिए बड़े कदम उठाए जा रहे हैं. इसीलिए वायु सेना ने सरकार को 1,400 करोड़ रुपये से अधिक का प्रस्ताव दिया है. बताते चलें कि रुद्रम देश की पहली स्वदेशी एंटी रेडिएशन मिसाइल है.
क्या है इसकी खासियत?
रुद्रम-1 का 9 अक्टूबर 2020 को पहली बार एंटी-रेडिएशन मोड में टेस्ट किया गया था. इसे ओडिशा के तट से दूर व्हीलर द्वीप पर एक टारगेट के खिलाफ सुखोई-30 फाइटर जेट से दागा गया था. इसे सुखोई-30 और मिराज-2000 जैसे लड़ाकू विमानों से दागा जा सकता है. इसे इसकी सटीकता के लिए भी जाना जाता है. इतना ही नहीं बल्कि भारत में बनाई गई ये अपने तरह भी पहली मिसाइल है. इसे किसी भी ऊंचाई से दागा जा सकता है. मिसाइल का सिग्नल और रेडिएशन सिस्टम भी बड़ा स्ट्रॉन्ग है.
नेविगेशन सिस्टम है बहुत मजबूत
दरअसल, शब्दिक मतलब तो जाएं तो रुद्रम का अर्थ है दुखों का निवारण. रुद्रम जैसे एआरएम को दुश्मन के रेडियो फ्रीक्वेंसी सोर्स का पता लगाने, ट्रैक करने और बेअसर करने के लिए डिजाइन किया गया है जो इसकी रक्षा प्रणालियों का एक हिस्सा है. इनमें रडार, कम्युनिकेशन एसेट और अन्य रेडियो फ्रीक्वेंसी सोर्सेज शामिल हैं. ये मिसाइल एक नेविगेशन सिस्टम पर निर्भर करती हैं जिसमें सैटेलाइट आधारित ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (जीपीएस) और एक इनर्शियल नेविगेशन सिस्टम शामिल है.
टारगेट पर सटीक वार करती है ये मिसाइल
रुद्रम एक ऐसा सिस्टम इस्तेमाल करता है जिससे रेडियो फ्रीक्वेंसी सोर्स को आसानी से डिटेक्ट और क्लसिफाई कर सकता है. इस सिस्टम को "पैसिव होमिंग हेड" कहा जाता है. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, रुद्रम मिसाइल एक बार टारगेट पर लॉक हो जाए तो बीच में रेडिएशन सोर्स बंद होने पर भी सटीक वार कर सकती है.
हवाई युद्ध में ऐसी मिसाइलें कितनी जरूरी हैं?
रुद्रम को भारतीय वायु सेना की जरूरतों के हिसाब से ही बनाया गया है. दुश्मन के शुरुआती चेतावनी वाले राडार, कमांड और कंट्रोल सिस्टम, सर्विलांस सिस्टम जो रेडियो फ्रीक्वेंसी का उपयोग करती हैं और विमान-रोधी हथियारों के लिए इनपुट देती हैं, के संचालन को निष्क्रिय या बाधित करना बहुत महत्वपूर्ण हो सकता है. एक्सपर्ट्स के मुताबिक, आधुनिक युद्ध अधिक से अधिक नेटवर्क-केंद्रित है, जिसका अर्थ है कि इसमें विस्तृत पहचान, निगरानी और संचार प्रणालियां शामिल हैं जो हथियार प्रणालियों के साथ एकीकृत हैं.