जैसे-जैसे समय बीतता जा रहा है वैसे वैसे अपराध बढ़ते जा रहे हैं, और इन्हीं पर लगाम लगाने के लिए अब जरूरी हो गया है कि एक नेशनल डेटाबेस बनाया जाए जिसमें अपराधियों से जुड़ी सारी अपडेट और उनका रिकॉर्ड रखा जा सके. इसके लिए एक लंबे समय से विचार विमर्श चल रहा है. अब इसमें आगे बढ़ते हुए केंद्र सरकार ने बड़ा कदम उठाया है. सोमवार को लोकसभा में दंड प्रक्रिया पहचान विधेयक, 2022 (Criminal Procedure Identification Bill) पेश किया गया है.
क्या होगा इसका फायदा?
आपको बताते चलें कि अगर ये बिल संसद में पास हो जाता है तो व्यापक पुलिस सुधार की दिशा में ये जरूरी कदम साबित होगा. इसकी मदद से हमारी जांच एजेंसिया बेहतर तरीके से केस सुलझा पाएंगी. इसके अलावा, अदालतों में फैसले भी जल्दी आ सकेंगे. इसकी वजह है कि इसमें अपराधियों का रिकॉर्ड रखने के लिए हाईटेक टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल का प्रावधान है. इसके साथ कई और फायदे भी होंगे जैसे:-
1. किसी मामले में सजा हुए या गिरफ्तार किए गए आरोपी की तस्वीर के साथ शरीर का नाप लिया जा सकेगा
2. इसमें फिंगर प्रिंट, फुट प्रिंट आंखों की पुतली और रेटिना का पहचान शामिल है
3. आरोपी के हस्ताक्षर और हैडराइटिंग का नमूना भी लिया जाएगा
अभी क्या है प्रावधान?
मौजूदा समय की बात करें, तो फिलहाल पुलिस के पास सिर्फ कुछ खास तरह के अपराधियों के फिंगरप्रिंट और फुटप्रिंट रखने का ही अधिकार है. तस्वीर के लिए भी मजिस्ट्रेट का आदेश लेना पड़ता है. लेकिन नए बिल के पास होने पर पुलिस को अपनी पहचान देने से कोई भी आरोपी या सजायाफ्ता इनकार नहीं कर पाएगा. ये नाप और पहचान हेड कांस्टेबल स्तर के उपर का अधिकारी लेगा. बिल के मुताबिक अपराधियों से जुड़ा ये डेटा नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के पास रहेगा. NCRB न सिर्फ इसे संभालेगा बल्कि उसके पास इसे नष्ट करने भी अधिकार होगा. ये रिकॉर्ड 75 साल तक संभाल कर रखा जाएगा. अगर आरोपी ट्रायल के बगैर छूट जाता है, या कोर्ट उसे दोषमुक्त कर देता है तो उसका रिकॉर्ड नष्ट कर दिया जाएगा. .
किस आधार पर पुलिस जांच करेगी?
आपको बता दें, पुलिस किसी मामले में अगर आरोपी को गिरफ्तार करती है तो उसका फिजिकल और बायोलॉजिकल सैंपल ले सकेगी. अगर कोई आरोपी किसी मामले में दोषी करार दिया जाता है, तो पुलिस बिना रोकटोक उसका सैंपल ले सकेगी. इसके अलावा नेशनल सिक्योरिटी एक्ट यानी राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम के तहत हिरासत में लिए गए लोगों को भी अपनी पहचान के लिए नमूने देने होंगे. ये नियम पब्लिक सेफ्टी एक्ट यानी सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम के तहत हिरासत में लिए गए लोगों पर भी लागू होगा.
मना करने की भी होगी अनुमति
हालांकि ऐसे अपराध जिनमें सजा सात साल की कम हो, या फिर महिला और बच्चों के खिलाफ हुए अपराध के अलावा किसी और अपराध के आरोप में गिरफ्तार किए गए गए हैं तो आरोपी चाहे तो बायोलॉजिकल सैंपल के लिए मना कर सकते हैं.
कब से होगा ये लागू?
गौरतलब है कि इस बिल को अभी लोकसभा में पेश किया गया है. यहां से पास होने पर ये बिल राज्यसभा जाएगा. राज्यसभा से भी हरी झंडी मिल गयी तो इसे राष्ट्रपति के पास भेजा जाएगा. राष्ट्रपति की मुहर लगने के बाद ये बिल कानून बन जाएगा. इसके अस्तित्व में आते ही 'द आइडेंटिफिकेशन ऑफ प्रिजनर्स एक्ट 1920' भंग हो जाएगा.
क्यों हो रहा है इसका विरोध?
हालांकि, विपक्ष इसका विरोध भी कर रहा है. उनका कहना है कि किसी भी आरोपी को अपने ही खिलाफ सबूत देने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है. वे आर्टिकल 21 का भी हवाला दे रहे हैं. भारतीय संविधान का ये अनुच्छेद हर नागरिक को जीवन जीने और निजी स्वतंत्रता का अधिकार देता है. अगर कोई दूसरा शख्स या कोई संस्था किसी व्यक्ति के इस अधिकार का उल्लंघन करने की कोशिश करता है. तो उसे सीधे सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने का हक है.