ओबीसी आरक्षण को सब-कैटेगरी में बांटने की संभावना को लेकर बनाई गई रोहिणी आयोग ने अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को सौंप दी है. साल 2017 में 2 अक्टूबर को दिल्ली हाईकोर्ट की रिटायर्ड चीफ जस्टिस जी. रोहिणी की अगुवाई में 4 सदस्यों वाली कमेटी बनाई गई थी. इस कमेटी के कार्यकाल को 13 बार बढ़ाया गया. आखिरकार कमेटी ने अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति को सौंप दी है. ओबीसी को सब-कैटेगरी में बांटने का मकसद हर ब्लॉक के लिए आरक्षण परसेंटेंज को सीमित करके ओबीसी वर्ग के कमजोर जातियों को मजबूत बनाना है. हालांकि अब तक इसकी रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं किया गया है.
ओबीसी को उपवर्गों में बांटने की कवायद क्यों-
मंडल कमीशन की रिपोर्ट के आधार पर ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण मिला है. इसमें तहत ओबीसी को केंद्रीय एजुकेशनल इंस्टीट्यूशन में एडमिशन और नौकरियों में आरक्षण मिलता है. आपको बता दें कि केंद्र सरकार की ओबीसी लिस्ट में 2600 जातियां हैं. माना जाता है कि इनमें से कुछ जातियां ही ओबीसी आरक्षण का लाभ उठा रही हैं. इसी को देखते हुए ओबीसी आरक्षण को सब-कैटेगरी में बांटने को लेकर बहस होती रहती है, ताकि आरक्षण का लाभ सभी जातियों को बराबर मिल सके.
साल 2020 में सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की संवैधानिक बेंच ने इस मामले में हस्तक्षेप किया और फैसला दिया कि साल 2005 में कोर्ट ने एससी/एसटी आरक्षण को सब-कैटेगरी में बांटने पर रोक लगा था, उसकी भी बड़ी बेंच के जरिए पुनरालोकन किया जाना चाहिए.
कैसे आगे बढ़ी कमीशन की जांच-
रोहिणी कमीशन ने पाया कि विभिन्न समुदायों की जनसंख्या का पर्याप्त डाटा नहीं है, ताकि उनके जॉब और एडमिशन में उनकी मौजूदगी का पता लगाया जा सके. कमिशन ने इसके बारे में 12 दिसंबर 2018 को सरकार को लिखा था और सरकार से ओबीसी के विभिन्न जातियों की जनसंख्या का अनुमान लगाने के लिए देशभर में सर्वे कराने के लिए बजट अलॉट करने की मांग की थी.
लोकसभा चुनाव के ऐलान के ठीक 3 दिन पहले 7 मार्च 2019 को जस्टिस रोहिणी ने सरकार को लिखा कि हमने इस स्टेज पर सर्वे नहीं करने का फैसला किया है. जुलाई 2019 में रोहिणी कमीशन ने सराकर को बताया कि ड्राफ्ट रिपोर्ट तैयार है. इसके बाद कमीशन ने ओबीसी की केंद्रीय लिस्ट के समुदायों की स्टडी करनी शुरू की. बताया जाता है कि कमिशन को सुझाव दिया गया था कि सोश्यो इकोनॉमिक एंड कास्ट सेंसस 2011 के डाटा का इस्तेमाल करना चाहिए. हालांकि इस डाटा को भरोसे लायक नहीं माना गया.
31 अगस्त 2018 को तत्कालीन गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने ऐलान किया था कि जनगणना 2021 में ओबीसी का डाटा भी इकट्ठा किया जाए. लेकिन कोरोना के चलते सेंसस में देरी हुई और सरकार ने ये नहीं बताया कि कब तक जनगणना की जाएगी.
इस बीच, बिहार में ओबीसी ग्रुप और करीब-करीब सभी पॉलिटिकल पार्टियों ने बीजेपी की केंद्र सरकार से कास्ट सेंसस की मांग करने लगे. बिहार विधानसभा ने दो बार कास्ट सेंसस के लिए प्रस्ताव भी पास किया गया.
रोहिणी कमीशन को क्या मिला-
साल 2018 में कमीशन ने पिछले 5 साल में ओबीसी कोटा के अंदर 1.3 लाख जॉब के डाटा का विश्लेषण किया. इसके साथ ही पिछले 3 साल में ओबीसी कोटा के तहत एनआईटी, आईआईएम और एम्स समेत केंद्रीय उच्च शिक्षा में छात्रों के प्रवेश के आंकड़े का भी विश्लेषण किया.
इस विश्लेषण पाया गया कि सभी नौकरियां और एजुकेशन सीटें ओबीसी की 25 फीसदी जातियों के पास गईं. इनमें से 24.95 फीसदी नौकरियां और सीटें सिर्फ 10 ओबीसी समुदायों को मिली हैं. ओबीसी की 37 फीसदी आबादी वाले 983 समुदायों को नौकरी और पढ़ाई में कोई प्रतिनिधित्व नहीं मिला. इसके अलावा 994 ओबीसी उपजातियों को सिर्फ 2.68 फीसदी नौकरी और एजुकेशन में जगह मिली. हालांकि अपडेटेड पॉपुलेशन डेटा नहीं होने की वजह से इस विश्लेषण की अपनी सीमाएं हैं.
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