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ग्रेटा थनबर्ग के बारे में तो सबने सुना है…. क्या आपने स्वालिहा के बारे में सुना है? 10 साल की उम्र में ही इस लड़की पर बन गया चैप्टर, आज सब पढ़ रहे हैं CBSE की किताबों में

स्वालिहा को उनकी पर्यावरण संबंधी गतिविधियों के लिए 2020 में राज्य सरकार द्वारा उज्ज्वला बालयम पुरस्कार से सम्मानित किया गया जा चुका है. साथ ही स्वालिहा ने मुख्यमंत्री आपदा राहत कोष में 25,000 रुपये भी दान किए ताकि जरूरतमंद लोगों को इससे मदद मिल सके.

कयाकिंग (प्रतीकात्मक तस्वीर) कयाकिंग (प्रतीकात्मक तस्वीर)
हाइलाइट्स
  • बचपन से ही लगाने शुरू कर दिए थे पेड़-पौधे

  • अभी तक मिल चुके हैं कई सम्मान

जरा याद करिये  10 साल की उम्र में आप क्या कर रहे थे? जिस उम्र में हम किताबों में दूसरे लोगों के बारे पढ़ते हैं, इस उम्र में स्वालिहा खुद एक पाठ बन गई थीं  जिनके बारे में  सीबीएसई की किताबों में पढ़ाया जा रहा है. 5 जून, 2017 को कन्नूर शहर से 30 किमी दूर, 10 किमी कयाकिंग करने का कारनामा उन्होंने तब कर दिखाया था जब वह सिर्फ 10 साल की थीं. 

न्यू इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, मदायी के पास पुथियांगडी की रहने वाली स्वालिहा, अब 14 साल की हैं. इतने  छोटे उम्र के बच्चों में शायद ही किसी ने पर्यावरण को लेकर इतनी जागरूकता देखी हो. अब, उन्होंने पर्यावरण संरक्षण का संदेश फैलाने के लिए स्वालिहा ने एक नांव (Kayak) में 35 किमी की यात्रा पूरी की है. ये यात्रा स्वालिहा ने 8 जनवरी को की है. बता दें, स्वालिहा अपने पिता को अपना आदर्श मानती हैं. उनके पिता विकलांग हैं और 2013 में गल्फ से वापिस भारत अपने परिवार के पास लौट आये थे. 

नहर, समुद्र और फिर नदी की पार 

वाडी हुडा एचएसएस, पझायंगडी में कक्षा 9 में पढ़ने वाली स्वालिहा सबसे पहले सुल्तान नहर से अपनी नांव लेकर रवाना हुई और अकेले अझीक्कल मुहाना में समुद्र को क्रॉस करने के बाद पझायंगडी नदी में प्रवेश किया. हालांकि, दूसरी नांव  में रफीक और उनके स्विमिंग इंस्ट्रक्टर अनिल फ्रांसिस भी थे. साथ ही, कन्नूर के दो लाइफगार्ड और एक स्पीड बोट में कुछ मछुआरे भी साथ थे.

लोगों को देना चाहती थीं जागरूकता संदेश 

रफीक बताते हैं कि इस एडवेंचर के लिए अप्रूवल लेना काफी मुश्किल था. वे कहते हैं, “अधिकारियों से इस एडवेंचर के लिए अनुमति मांगना काफी मुश्किल था उन्हें डर था. वे 14 साल की बच्ची को अकेले समुद्र में नहीं भेजना चाहते थे. लेकिन यह सब अच्छे से हो गया.”

वहीं, स्वालिहा कहती हैं, “मैं इस यात्रा पर जनता को जागरूकता संदेश भेजने के लिए गई थी कि हमारे पर्यावरण में जो कुछ भी बचा है उसे बचाएं, बर्बाद न करें.  हमारे आसपास की नदियों, नहरों, तालाबों में लोग अंधाधुंध कचरा फेंकते हैं. इसे रोका जाना चाहिए क्योंकि हमें अपने इनकी रक्षा करनी है.”

बचपन से ही लगाने शुरू कर दिए थे पेड़-पौधे 

पिता रफीक एक घटना को याद करते हुए बताते हैं कि जब उन्होंने शारजाह से लौटने की बात स्वालिहा को बताई तब उन्होंने पूछा कि वे ऐसा क्यों कर रहे हैं? तो उन्होंने कहा कि बिना पेड़ों और नदियों के वहां बहुत गर्मी है. कुछ दिनों बाद जब उन्होंने अपनी पत्नी जैस्मीन को फोन किया, तो उन्होंने बताया कि उनकी बेटी ने घर के चारों ओर पौधे लगाना शुरू कर दिया है. 

अभी तक मिल चुके हैं कई सम्मान 

स्वालिहा को उनकी पर्यावरण संबंधी गतिविधियों के लिए 2020 में राज्य सरकार द्वारा उज्ज्वला बालयम पुरस्कार से सम्मानित किया गया जा चुका है. साथ ही स्वालिहा ने मुख्यमंत्री आपदा राहत कोष में 25,000 रुपये भी दान किए ताकि जरूरतमंद लोगों को इससे मदद मिल सके. 2017 में  स्वालिहा को 10 किमी कयाकिंग के लिए सम्मानित किया गया था. बता दें, उन्होंने पांच साल की उम्र में कयाकिंग सीखना शुरू कर दिया था.