गृह मंत्री अमित शाह के दौरे के बीच जम्मू-कश्मीर में डीजी जेल हेमंत कुमार लोहिया की हत्या से घाटी एक बार फिर दहल गई है. जानकारी के मुताबिक, हेमंत उदयवाला में दोस्त के घर पर थे. उनका नौकर यासिर भी साथ में मौजूद था. पुलिस के मुताबिक, शुरुआती जांच में पता चला है कि नौकर ने ही इस हत्या को अंजाम दिया है. इसके बाद वह फरार हो गया. यासिर जम्मू कश्मीर के रामबन का रहने वाला है. फिलहाल डीजीपी दिलबाग सिंह ने बताया है कि, नौकर को पकड़ने के लिए तलाशी अभियान शुरू कर दिया गया है. साथ ही उन्होंने कहा कि आरोपी ने हेमंत के लोहिया के शव को जलाने की कोशिश की.
बता दें कि जम्मू के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक, मुकेश सिंह ने लोहिया के घर का दौरा किया. उन्होंने बताया कि लोहिया के शरीर पर जलने के निशान और उनका गला कटा हुआ पाया गया. पुलिस के मुताबिक, शुरुआती जांच से पता चला है कि उनके पैर पर सूजन थी. पहले लोहिया की हत्या की गई. उनका गला काटने के लिए केचप की बोतल का इस्तेमाल किया गया. बाद में शव को आग लगाने की भी कोशिश की गई.
हेमंत कुमार लोहिया कौन थे?
लोहिया 1992 बैच के आईपीएस अधिकारी थे. लोहिया के परिवार में उनकी पत्नी, एक बेटा और बेटी हैं. उनकी बेटी की शादी हो चुकी है और वह लंदन में रहती है. उनका बेटा टेक्नोलॉजी एक्सपर्ट के तौर पर काम काम करता है. लोहिया के बेटे की शादी आने वाले दिसंबर में होनी है. लोहिया को पुलिस महानिदेशक के रूप में पदोन्नत कर अगस्त 2022 में डीजी जेल के रूप में तैनात किया गया था. उन्हें 11 अक्टूबर 1992 को आईपीएस के तौर पर नियुक्ति मिली थी.
आतंकी संगठन टीआरएफ कैसे बना?
कहा जाता है कि जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाने के बाद इस संगठन को खड़ा किया था. माना जाता है कि सीमा पार से लश्कर और अन्य आतंकवादी समूहों के कैडर का उपयोग करके टीआरएफ को तैयार करने की योजना बनाई गई थी. वैसे TRF की शुरुआत की कहानी 14 फरवरी 2019 को पुलवामा हमले के साथ ही शुरू होती है. कहा जाता है कि इस हमले से पहले ही इस आतंकी संगठन ने घाटी के अंदर अपने पैर पसारने शुरू कर दिए थे.
ध्यान देने वाली बात यह है कि 1990 के दशक में जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (JKLF) के बाद पहली बार किसी आतंकवादी संगठन को गैर-धार्मिक नाम दिया गया था. आतंकी संगठन द रेसिस्टेंस फ्रंट अपनी छवि धर्मनिरपेक्ष गढ़ने की कोशिश करता है. इनका मकसद है ज्यादा से ज्यादा लोगों को गुमराह करके अपने ग्रुप में भर्ती कराना. इसी रणनीति के तहत ये संगठन कश्मीर में अपनी पकड़ मजबूत करने में लगा हुआ है.
टीआरएफ का मकसद क्या है?
खास तौर पर टीआरएफ को फाइनेंसिशयल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) की कार्रवाई से बचने के लिए बनाया गया था. इसका मकसद घाटी में फिर से 1990 वाला दौर वापस लाना है. टीआरएफ का मुख्य लक्ष्य लश्कर-ए-तैयबा मामले में पाकिस्तान पर बढ़ते दबाव को कम करना और पाकिस्तानी में स्थानीय आतंकवाद को बढ़ावा देना है.
इसके आका की बात करें तो पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई और लश्कर-ए तैयबा ने मिलककर नए आतंकी संगठन 'द रेजिस्टेंस फ्रंट' की नींव रखने में अहम रोल अदा किया.
टीआरएफ जम्मू-कश्मीर में कई हमलों में शामिल रहा है. 'द रेजिस्टेंस फ्रंट' के द्वारा पहली बार श्रीनगर के लाल चौक इलाके में सीआरपीएफ एक टीम पर ग्रेनेड फेंका गया था. जिसमें सीआरपीएफ के दो जवान और चार नागरिक घायल हो गए थे. जांच में पता चला कि यह मौजूदा लश्कर-ए-तैयबा के द्वारा खड़ा किया गया नया संगठन है और अनुच्छेद 370 के हटाने की प्रतिक्रिया में ये हमला किया गया था. इस तरह से ये आतंकी संगठन घाटी में हुई कई हत्याओं में शामिल रहा है.