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राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे की सियासी दुश्मनी की पूरी कहानी जानिए

शिवसेना के संस्थापक बाल ठाकरे के बेटे उद्धव ठाकरे और भतीजे राज ठाकरे की अदावत पुरानी है. साल 1995 में जब उद्धव ठाकरे ने शिवसेना के कामकाज में दखल देना शुरू किया. इसके बाद से ही राज ठाकरे से उनकी अदावत शुरू हो गई थी.

उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे
हाइलाइट्स
  • साल 1995 में उद्धव ठाकरे ने शिवसेना में दखल देना शुरू किया

  • इसके बाद से ही राज ठाकरे से उनकी दूरियां बढ़ने लगी

  • 1996 में रमेश किनी मर्डर में उछला राज का नाम

महाराष्ट्र की सियासत में आजकल महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) और शिवसेना आमने सामने हैं. भले ही दो पार्टियों के बीच बयानबाजी हो रही है. लेकिन असल में ये लड़ाई दो भाइयों की वर्चस्व की जंग है. राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे की सियासी दुश्मनी साल 1995 से  ही शुरू हो गई थी. हालांकि उस वक्त राज ठाकरे शिवसेना में ही थे और चाचा बाल ठाकरे के सबसे करीबी थे. राज में हर वो खूबियां थी, जो शिवसेना की कमान संभाल सके. लेकिन सियासत में कब क्या हो जाए, कोई नहीं जानता. शिवसेना में भी अचानक से सबकुछ बदलने लगा. 

उद्धव की शिवसेना में इंट्री, राज की नाराजगी-
साल 1995 में उद्धव ठाकरे ने शिवसेना के कामकाज में दखल देना शुरू कर दिया. बाल ठाकरे कार्यकर्ताओं को उनके पास भेजने लगे. साल 1997 में बीएमसी चुनाव हुए. इसमें ज्यादातर टिकट उद्धव ठाकरे के इशारे पर दिए गए. इसके बाद राज ठाकरे की नाराजगी भी सामने आई. लेकिन शिवसेना ने बीएमसी चुनाव जीत लिया और उद्धव ठाकरे के फैसलों पर मुहर लग गई. इसके बाद से शिवसेना पर उद्धव ठाकरे की पकड़ मजबूत होती गई और राज ठाकरे किनारे होते गए. इसके बाद से ही राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे में अंदरूनी मनमुटाव बढ़ने लगा. पार्टी में खेमेबाजी शुरू हो गई.

उद्धव ठाकरे को मिली कमान-
साल 2003 में महाबलेश्वर में उद्धव ठाकरे को अध्यक्ष बनाए जाने का प्रस्ताव पेश हुआ. सबको हैरानी उस वक्त हुई, जब राज ठाकरे ने खुद ये प्रस्ताव दिया. इसके बाद सर्वसम्मति से इसपर मुहर लगा गई. उद्धव ठाकरे को कार्यकारी अध्यक्ष बना दिया गया. शिवसेना आधिकारिक तौर पर उद्धव ठाकरे को कप्तान मान चुकी थी. अब राज ठाकरे के लिए शिवसेना में कोई जगह नहीं बची थी. दोनों भाइयों मे दूरियां बढ़ती गई और इसका अंत राज ठाकरे के शिवसेना छोड़ने से हुआ.

राज ठाकरे ने बनाई अलग पार्टी-
वो साल भी आ गया, जब राज ठाकरे ने शिवसेना से अलग हो गए. साल 2006 में राज ठाकरे ने शिवसेना छोड़कर नई पार्टी का गठन किया. 2009 विधानसभा चुनाव में राज ठाकरे की पार्टी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना ने 13 सीटों पर जीत दर्ज की. जबकि 24 सीटों पर दूसरे नंबर पर रही. हालांकि 2009 आम चुनाव में एमएनएस को कोई कामयाबी नहीं मिली. इसके बाद से एमएनएस का प्रदर्शन लगातार खराब होता गया. साल 2014 विधानसभा चुनाव में सिर्फ एक सीट पर जीत मिली.

उद्धव ठाकरे बने सीएम-
साल 2019 विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद शिवसेना ने कांग्रेस और एनसीपी से गठबंधन किया. उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री बने. शपथ ग्रहण समारोह में राज ठाकरे ने भी शिरकत की. लेकिन एक बार फिर राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे की सियासी लड़ाई सड़क पर आ गई है. राज ठाकरे ने बिना नाम लिए उद्धव ठाकरे को भोगी तक कह डाला.

एक मर्डर से तय हो गई थी राज की किस्मत-
साल 1996 में रमेश किनी का मर्डर हुआ था. जिसमें राज ठाकरे का नाम उछला था. कहा जाता है कि शिवसेना के लोग उसका फ्लैट चाहते थे. रमेश को धमकाया गया था. उसकी लाश सिनेमा हॉल में मिली थी. रमेश की पत्नी ने राज ठाकरे पर हत्या का आरोप लगाया था. मामले की तफ्तीश सीबीआई ने की. हालांकि राज ठाकरे को बरी कर दिया गया. कहा जाता है कि इस मर्डर केस में राज का नाम उछलने के बाद से ही शिवसेना में उनकी उल्टी गिनती शुरू हो गई थी. कहा जाता है कि इस मर्डर केस के बाद से ही उद्धव ठाकरे की शिवसेना में सक्रियता बढ़ गई थी.

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