महाराष्ट्र में मराठा आंदोलन हिंसक होता जा रहा है. प्रदर्शनकारियों ने दो विधायकों के घर जला दिए हैं. सरकारी संपत्तियों को नुकसान पहुंचा रहे हैं. आरक्षण को लेकर एक्टिविस्ट मनोज जरांगे 25 अक्टूबर से भूख हड़ताल पर बैठे हैं. ये मामला सियासी तूल पकड़ने लगा है. आखिर मराठा आरक्षण क्या है? इसकी मांग क्यों हो रही है? क्या है इस आंदोलन का इतिहास? चलिए इन तमाम मुद्दों की तह में जाने की कोशिश करते हैं.
कौन हैं मराठा-
मराठा महाराष्ट्र में जातियों का एक समहू है, जिसमें किसान, जमींदार और दूसरे वर्ग के लोग शामिल हैं. महाराष्ट्र की आबादी में इनकी हिस्सेदारी 30 फीसदी से अधिक है. मराठाओं की पहचान योद्धा के तौर पर होती है. भूख हड़ताल पर बैठे मनोज जरांजे का कहना है कि मराठा और कुनबी एक ही हैं. जबकि संभाजी ब्रिगेड के प्रवीण गायकवाड़ ने कहा था कि मराठा कोई जाति नहीं है. राष्ट्रगान में मराठा को भौगोलिक इकाई के तौर पर बताया गया है. जो लोग महाराष्ट्र में रहते हैं, वो मराठा हैं.
आंदोलनकारी मराठाओं को ओबीसी का दर्जा देने की मांग कर रहे हैं. उनका कहना है कि जब तक मराठियों को कुनबी जाति का सर्टिफिकेट नहीं दिया जाता, तब तक आंदोलन जारी रहेगा.
महाराष्ट्र में आरक्षण का गणित-
महाराष्ट्र की आबादी 12 से 13 करोड़ के बीच है. इसमें अनुसूचित जाति के 15 फीसदी लोगों को आरक्षण मिलता है. अनुसूचित जनजाति के 7.5 फीसदी लोगों को भी आरक्षण मिलता है. अन्य पिछड़ा वर्ग के 27 फीसदी लोगों को आरक्षण का लाभ मिलता है. इसके अलावा 2.5 फीसदी आरक्षण दूसरे लोगों को मिलता है.
मराठा आरक्षण में अब तक क्या हुआ-
महाराष्ट्र सरकार ने साल 2018 में 16 फीसदी मराठा आरक्षण पर मुहर लगाई थी. लेकिन साल 2019 में बॉम्बे हाईकोर्ट ने इसे घटाकर सरकारी नौकरियों में 13 फीसदी और शैक्षणिक संस्थानों में 12 फीसदी कर दिया. इसके बाद साल 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने मराठा आरक्षण को रद्द कर दिया. इसको लेकर सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका भी दायर की गई थी. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उसे भी खारिज कर दिया था.
आरक्षण को लेकर 1982 में पहला बड़ा आंदोलन-
महाराष्ट्र में मराठा लंबे समय से आरक्षण की मांग कर रहे हैं. लेकिन साल 1982 में पहली बार बड़ा आंदोलन हुआ था. अन्नासाहेब पाटिल ने आर्थिक स्थिति के आधार पर मराठाओं को आरक्षण की मांग को लेकर आंदोलन किया था. जब सरकार ने उनकी मांगों को नहीं माना तो उन्होंने खुद को गोली मार ली थी. उसके बाद कई बार बड़े आंदोलन हुए. जिसकी बदौलत राज्य सरकार ने आरक्षण का ऐलान किया था. लेकिन इस मामले में कानूनी पेंच फंस गया. अब एक बार फिर आरक्षण को लेकर महाराष्ट्र सुलग रहा है.
महाराष्ट्र में मराठा ताकत-
महाराष्ट्र में मराठाओं की अच्छी-खासी आबादी है. सूबे की सियासत में उनका दबदबा रहा है. मार्च 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि महाराष्ट्र में मराठा सामाजिक और राजनीतिक रूप से काफई सक्षम हैं. महाराष्ट्र में 40 फीसदी से ज्यादा विधायक और सांसद मराठा समुदाय से होते हैं.
एक स्टडी के मुताबिक महाराष्ट्र के विधानसभा चुनावों में मराठाओं को करीब 45 फीसदी सीटें मिलती रही हैं. 1980 का दशक छोड़ दिया जाए तो कभी भी महाराष्ट्र की कैबिनेट में इनकी हिस्सेदारी 52 फीसदी से कम नहीं रही है. महाराष्ट्र राज्य के गठन के बाद से अब तक 20 मुख्यमंत्री हुए हैं. जिसमें से 12 मराठा समुदाय से ही रहे हैं.
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