समान नागरिक संहिता या यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) एक बार फिर से सुर्खियों में है. बीते हफ्ते ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने इसे एक असंवैधानिक और अल्पसंख्यक विरोधी कदम बताया है. मुस्लिम लॉ बोर्ड ने ये टिप्पणी तब की है जब उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने यह कहा था कि उनकी सरकार जल्द ही अपने राज्य में यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करने के लिए इसका ड्राफ्ट तैयार कर रही है. लेकिन इतनी बहस मुबाहिसा के बीच चलिए समझते हैं कि आखिर ये कानून है क्या जिसके पक्ष और विक्ष दोनों तरफ इतने लोग खड़े हैं.
क्या है यूनिफॉर्म सिविल कोड?
दरअसल, यूनिफॉर्म सिविल कोड देश के संविधान के अनुच्छेद 44 के तहत आता है. इसके तहत कहा गया है कि पूरे देश में एक कानून लगना चाहिए. इसमें व्यक्तिगत यानि पर्सनल कानूनों की बात की गई है जैसे शादियां. इसमें कहा गया है कि सभी नागरिकों पर एक समान कानून लागू होना चाहिए फिर चाहे उनका धर्म, लिंग, जाति आदि कुछ भी हो.
अगर यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू होता है तो सभी लोगों के लिए विवाह, तलाक, गोद लेने, उत्तराधिकार जैसे व्यक्तिगत मामलों के लिए एक समान कानून लागू होगा.
मौजूदा समय की बात करें, तो ज्यादातर समुदायों के व्यक्तिगत कानून काफी हद तक उनके धर्म के मुताबिक होते हैं. जैसे हिन्दू कोड बिल, मुस्लिम पर्सनल लॉ आदि.
यूनिफॉर्म सिविल कोड या पर्सनल लॉ?
पर्सनल लॉ वे हैं जो लोगों को उनके धर्म, जाति, आस्था और विश्वास के आधार पर नियंत्रित करते हैं. ये कानून रीति-रिवाजों और धार्मिक ग्रंथों में जो लिखा गया है उनके आधार पर बनाए गए है. इन कानूनों में विवाह, तलाक, भरण-पोषण, गोद लेना, सह-पालन, उत्तराधिकार, पारिवारिक संपत्ति का बंटवारा, वसीयत, डोनेशन आदि से संबंधित नियमों के बारे में बताया गया है.
अभी कौन-कौन से कानून हैं?
हिंदू और मुस्लिम दोनों के पर्सनल लॉ उनके धार्मिक ग्रंथों और धर्मग्रंथों पर आधारित हैं.
हिंदू पर्सनल लॉ की बात करें तो ये प्राचीन ग्रंथों जैसे वेदों, स्मृतियों और उपनिषदों और न्याय, समानता, विवेक आदि की आधुनिक अवधारणाओं पर आधारित हैं. वहीं, मुस्लिम पर्सनल लॉ मुख्य रूप से कुरान और सुन्नत पर आधारित है. ये कानून पैगंबर मोहम्मद की बातों और उनके जीवन के तरीके से संबंधित है. कुरान के अलावा, इज्मा और क़ियास को भी मुस्लिम पर्सनल लॉ के सोर्स के रूप में माना जाता है.
इसी तरह, ईसाई के भी अपना पर्सनल कानून है. इसे क्रिश्चियन पर्सनल लॉ कहा जाता है, ये बाइबल, परंपराओं, तर्क और अनुभव पर आधारित है.
अगर यूसीसी लागू हो जाता है तो क्या होगा?
आपको बता दें, एक बार यूसीसी लागू हो जाता है इन सभी पर्सनल लॉ को रद्द कर दिया जाएगा. इसमें एक ऐसा कानून लाया जाएगा जो सभी नागरिकों के लिए समान होगा. इसके अलावा, व्यक्तिगत कानून अक्सर परस्पर विरोधी और विरोधाभासी होते हैं और सभी अदालतों और क्षेत्रों में समान रूप से लागू नहीं होते हैं. इसी यूसीसी इन समस्याओं को हल करने का भी प्रयास करेगा.
भारत में समान नागरिक संहिता की बातें कब शुरू हुई ?
गौरतलब है कि यूनिफॉर्म सिविल कोड का विचार भारत में ब्रिटिश शासन के समय से ही किसी न किसी रूप में मौजूद है. हालांकि, अंग्रेज क्राइम, कॉन्ट्रैक्ट, एविडेंस आदि से जुड़े अलग-अलग कानूनों के लिए एक कोडीफिकेशन चाहते थे. लेकिन उन्होंने अपनी फूट डालो और राज करो की नीति के तहत हिंदुओं और मुसलमानों के पर्सनल लॉ को अलग ही रखा.
इसका विरोध क्यों हो रहा है?
अक्टूबर 2015 में, सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि देश में एक यूनिफॉर्म सिविल कोड की जरूरत है. SC ने कहा था, "अलग-अलग समुदायों के लिए अलग कानून स्वीकार नहीं किया जा सकता है. नहीं तो हर धर्म के लोग कहेंगे कि उन्हें अपने व्यक्तिगत कानून के मामले में विभिन्न मुद्दों को तय करने का अधिकार है. हम इससे बिल्कुल सहमत नहीं हैं.
हालांकि, 2016 में, एआईएमआईएम नेता असदुद्दीन ओवैसी ने इसका विरोध किया था. उन्होंने कहा था, "यूसीसी केवल एक मुस्लिम मुद्दा नहीं है, यह एक ऐसा मुद्दा है जिसका पूर्वोत्तर, खासकर नागालैंड और मिजोरम में जमकर विरोध किया जाएगा. दरअसल, कई राज्यों में समुदायों के कानून प्रथागत हैं. ऐसे में एक समान कानून का लागू होना उन्हें परेशान कर सकता है.