मजदूरों और श्रमिकों की उपलब्धियों का सम्मान करने और उन्हें अपने अधिकारों के प्रति जागरूक करने के लिए दुनियाभर में हर साल 1 मई को अंतर्राष्ट्रीय श्रम दिवस (National Labour Day)मनाया जाता है. लोकप्रिय रूप से 'May Day' के रूप में जाना जाता है. इसकी उत्पत्ति 19 वीं शताब्दी में संयुक्त राज्य अमेरिका में श्रमिक संघ आंदोलन में हुई जोकि विशेष रूप से आठ घंटे का आंदोलन था.
क्या है इतिहास और महत्व
न्यूयॉर्क श्रम दिवस को मान्यता देने वाला बिल पेश करने वाला पहला राज्य था, जबकि ओरेगन 21 फरवरी, 1887 को इस पर एक कानून पारित करने वाला पहला राज्य था. साल 1877 में मजदूरों ने अपने काम के घंटे तय करने की मांग को लेकर एक आंदोलन शुरू किया था. इसके बाद 1886 में पूरे अमेरिका में लाखों मजदूर इस मुद्दे पर एकजुट हो गए और हड़ताल की. इस हड़ताल में लगभग 11 हजार फैक्ट्रियों के 3 लाख 80 हजार मजदूर शामिल हुए.
बाद में 1889 में, मार्क्सवादी अंतर्राष्ट्रीय समाजवादी कांग्रेस ने एक महान अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शन के लिए एक प्रस्ताव अपनाया जिसमें उन्होंने मांग की कि श्रमिकों से दिन में 8 घंटे से अधिक काम नहीं कराया जाना चाहिए. इसके साथ ही यह भी निर्णय लिया गया कि एक मई को अवकाश घोषित किया जाएगा.
भारत में मजदूर दिवस
भारत ने 1 मई, 1923 को चेन्नई में मजदूर दिवस मनाना शुरू किया. इसे 'कामगार दिवस', 'कामगार दिन' और 'अंतरराष्ट्रीय श्रमिक दिवस' के रूप में भी जाना जाता है. इस दिन को पहली बार लेबर किसान पार्टी ऑफ़ हिंदुस्तान द्वारा मनाया गया था, और इसे देश में राष्ट्रीय अवकाश माना जाता है. इस दिन, दुनिया भर के लोग श्रमिकों के अधिकारों को सुनिश्चित करने और उन्हें शोषण से बचाने के लिए मार्च और विरोध प्रदर्शन करके इस दिन को मनाते हैं. जागरूकता फैलाने के लिए कई देशों में इस दिन को सार्वजनिक अवकाश भी घोषित किया जाता है.