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Supreme Court: अब 'न्याय की देवी' की आंखों से हटी पट्टी... हाथ में तलवार की जगह संविधान... लेकिन क्यों... यहां जानिए  

Law is Not Blind: चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की पहल पर सुप्रीम कोर्ट में जजों की लाइब्रेरी में न्याय की देवी की नई प्रतिमा लगाई गई है. इस मूर्ति की आंखें खुली हैं. नई प्रतिमा के दायें हाथ में तराजू और बाएं हाथ में संविधान का प्रति है.

New and Old Statue of Lady Justice New and Old Statue of Lady Justice

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में 'न्याय की देवी' की नई प्रतिमा बुधवार को लगाई गई. यह प्रतिमा पुरानी मूर्ति जैसी नहीं है. इसमें कई बदलाव किए गए हैं. पुरानी प्रतिमा में न्याय की देवी की आंखों पर पट्टी बंधी थी और एक हाथ में तलवार और दूसरे हाथ में तराजू था.

आंखों पर पट्टी बंधे होने के कारण कानून को अंधा कहा जाता था लेकिन नई प्रतिमा में आंखों से पट्टी हटा दी गई है. जिस हाथ में तलवार था उसमें अब संविधान थमा दी गई है.  पहले की तरह जिस हाथ तराजू होता था, वह उसी तरह नई प्रतिमा में है. सुप्रीम कोर्ट में जजों की लाइब्रेरी में  'न्याय की देवी' की नई प्रतिमा लगाई गई है. आइए जानते हैं प्रतिमा में बदलाव करने के मायने क्या हैं?


आंखों पर पट्टी और हाथ में तलवार का क्या है अर्थ 
'न्याय की देवी' की नई मूर्ति चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ (CJI DY Chandrachud) की पहल पर लगाई गई है. पुरानी मूर्ति में कानून की देवी की आंखों में जो पट्टी बंधी थी और हाथ में जो तलवार था उसका एक खास अर्थ था. आंखों पर बंधी पट्टी न्याय व्यवस्था में समानता को दर्शाती है. इसका मतलब है कि चाहे अमीर हों या गरीब, ताकतवर हों या निर्बल कानून की नजर में सब बराबर हैं.

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इसका मतलब है अदालतें अपने सामने आने वाले सभी फरियादियों और वादियों की संपत्ति, शक्ति, जाति-धर्म, लिंगभेद, रंगभेद या किसी अन्य सामाजिक स्थिति के आधार पर फैसला नहीं करती हैं. न्याय की देवी के हाथ में तलवार होने का मतलब था कि दोषियों को दंडित करने की शक्ति भी कानून के पास है.

क्या है नई मूर्ति में खासियत
1. जजों की लाइब्रेरी में जो न्याय की देवी की नई मूर्ति लगी है वो सफेद रंग की है. 

2. नई मूर्ति के कपड़े में भी बदलाव किया गया है. भारतीय परिधान साड़ी पहनी हुई नई मूर्ति है. 

3. मूर्ति के सिर पर एक मुकुट भी है. जिस तरह पौराणिक कथाओं में देवियों के सिर पर मुकुट होने का वर्णन किया जाता है. 

4. नई मूर्ति की माथे पर बिंदी लगी है. आभूषण भी नहीं मूर्ति को पहनाया गया है. 

5. नई मूर्ति के एक हाथ में पहले की तरह तराजू है, लेकिन दूसरे हाथ में तलवार की जगह संविधान है.

6. मूर्ति के एक हाथ में जो तराजू है वह यह दिखाता है कि कोर्ट किसी भी फैसले पर पहुंचने से पहले दोनों पक्षों की बात को ध्यान से सुनता है. तराजू संतुलन का प्रतीक है. 

मूर्ति में क्यों किया गया बदलाव
प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की पहल पर नई प्रतिमा लगाई गई है. CJI मानते हैं कि कानून अंधा नहीं है बल्कि कानून सभी को समान मानता है. इसी कारण आंखों से पट्टी हटाई गई है. प्रधान न्यायाधीश का मानना है कि प्रतिमा के एक हाथ में संविधान होना चाहिए, तलवार नहीं ताकि देश को संदेश जाए कि वह संविधान के हिसाब से न्याय करती है.

तलवार हिंसा का प्रतीक है, लेकिन अदालतें संवैधानिक कानूनों के हिसाब से न्याय करती हैं. इसके अलावा इसे औपनिवेशिक विरासत को पीछे छोड़ने की कोशिश के तौर पर भी देखा जा रहा है. ठीक वैसे ही जैसे भारतीय दंड संहिता जैसे औपनिवेशिक कानूनों की जगह भारतीय न्याय संहिता लाकर किया गया है. लेडी ऑफ जस्टिस की मूर्ति में बदलाव करना भी इसी कड़ी के तहत उठाया कदम माना जा सकता है.

कहां से भारत में आई न्याय की देवी की मूर्ति
यूनान से न्याय की देवी की मूर्ति इंग्लैंड पहुंची थी. एक अंग्रेज अधिकारी वहां से इस मूर्ति को लेकर भारत आए थे. ये अंग्रेज अफसर एक न्यायालय अधिकारी थे. ब्रिटिश काल में 18वीं शताब्दी के दौरान न्याय की देवी की मूर्ति का सार्वजनिक इस्तेमाल किया गया. बाद में जब देश आजाद हुआ, तो हमने भी न्याय की देवी को स्वीकार किया. न्याय की देवी की वास्तव में यूनान की प्राचीन देवी हैं, जिन्हें न्याय का प्रतीक कहा जाता है. इनका नाम जस्टिया है. इनके नाम से जस्टिस शब्द बना था. 

तिलक मार्ग पर जस्टिस क्लॉक
एक और बदलाव किया गया है. सुप्रीम कोर्ट के सामने तिलक मार्ग पर एक बड़ी वीडियो वॉल लग गई है. इसमें हर समय सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस क्लॉक चलती है. इससे सुप्रीम कोर्ट में मुकदमों की रियल टाइम जानकारी जानी जा सकती है. आपको मालूम हो कि जस्टिस क्लॉक को वेबसाइट पर देखा जा सकता था लेकिन आम जनता को सीधे जानकारी पहंचाने और व्यवस्था में पारदर्शिता लाने के लिए जस्टिस क्लॉक का वीडियो वॉल लगाया गया है.