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Leila Seth: 5 अगस्त को ही हाईकोर्ट की पहली महिला चीफ जस्टिस बनीं थीं लीला सेठ, लंदन बार एग्जाम में किया था टॉप, ऐसे मिला 'मदर ऑफ लॉ' का खिताब

लीला सेठ हाईकोर्ट की पहली महिला चीफ जस्टिस थीं. उनका जन्म 1930 में उत्तर प्रदेश के लखनऊ शहर में हुआ था. लीला बचपन से पढ़ाई में होनहार थीं. उन्होंने लंदन बार की परीक्षा में टॉप किया था. 

पहली महिला मुख्य न्यायाधीश लीला सेठ का जन्म लखनऊ में हुआ था (फाइल फोटो) पहली महिला मुख्य न्यायाधीश लीला सेठ का जन्म लखनऊ में हुआ था (फाइल फोटो)
हाइलाइट्स
  • लीला सेठ हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट की बनीं थीं चीफ जस्टिस 

  • दिल्ली हाईकोर्ट की पहली महिला न्यायाधीश बनने का रिकॉर्ड भी उनके नाम

आज महिलाएं हर क्षेत्र में पुरुषों से कंधा से कंधा मिलाकर चल रहीं हैं लेकिन क्या आप जानते हैं इस बराबरी तक पहुंचने के लिए उन्हें कितनी जद्दोजहद करनी पड़ी. न्यायपालिका में उन्हें अहम पदों तक पहुंचने के लिए कई साल लग गए. 1991 में वह पांच अगस्त का ही दिन था जब जस्टिस लीला सेठ को हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट का चीफ जस्टिस बनाया गया. यह ओहदा हासिल करने वाली वह पहली महिला बनीं. दिल्ली हाईकोर्ट की पहली महिला न्यायाधीश होने का श्रेय भी उन्हीं को जाता है. लीला सेठ को देशभर में 'मदर ऑफ लॉ 'कहा जाता है. चलिए आज लीला सेठ के बारे में जानते हैं.

11 साल की उम्र में पिता को खो दिया था
20 अक्टूबर 1930 में लीला का जन्म उत्तर प्रदेश के लखनऊ शहर में हुआ था. उनके पिता इम्पीरियल रेलवे सर्विस में काम करते थे. लीला ने 11 साल की उम्र में अपने पिता को खो दिया. पिता के जाने के बाद भी लीला की मां ने उनकी पढ़ाई में कोई कमी नहीं छोड़ी. पैसों की कमी के बावजूद लीला को दार्जिलिंग के लॉरेटो कान्वेंट स्कूल में पढ़ाया.लीला ने स्टेनोग्राफर के रूप में अपने करियर की शुरुआत की. काम के दौरान लीला प्रेम सेठ से मिली, जिनसे आगे चलकर उन्होंने शादी की. शादी के बाद ये कपल लंदन चला गया. यहां रहते हुए लीला ने एक बार फिर अपनी पढ़ाई शुरू की. 

लंदन से लौटने के बाद पटना में शुरू की प्रैक्टिस
लीला ने 27 साल की उम्र में एक बच्चे की मां होते हुए लंदन बार की परीक्षा में टॉप किया. इस सफलता पर एक लोकल न्यूजपेपर ने उन्हें 'मदर इन लॉ' की संज्ञा दी. एक बार फिर भारत वापसी के बाद उन्होंने पटना में प्रैक्टिस शुरू कर दी. उन्होंने 10 सालों तक पटना हाइकोर्ट में काम किया. शुरू में उन्हें हाइकोर्ट में ज्यादा काम नहीं मिलता और ज्यादातर पुरुष उन्हें देखकर आश्चर्यचकित रह जाते थे. लीला को महिला होने के कारण अक्सर लोगों को ये समझाने में दिक्कत होती थी कि वह उनका केस अच्छे से लड़ लेंगी.

वरिष्ठ वकील की मिली थी उपाधि 
पटना में वकालत करने के बाद, उन्होंने 1972 में दिल्ली हाइकोर्ट में काम करने का फैसला किया. दिल्ली हाइकोर्ट में काम करने के साथ-साथ उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में याचिकाओं और आपराधिक मामलों को संभालना शुरू कर दिया था. कुछ ही सालों में उन्होंने अपनी एक पहचान बना ली थी. उन्होंने मुख्यधारा में कानूनी क्षेत्रों में बनी महिलाओं के प्रति कई धारणाओं को तोड़ा. 10 जनवरी, 1977 को उन्हें सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ वकील की उपाधि मिली थी. लीली को 1978 में दिल्ली हाइकोर्ट की पहली महिला न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया था. 5 अगस्त 1991 को जस्टिस लीला सेठ हाइकोर्ट की मुख्य न्यायधीश के रूप में नियुक्त होने वाली पहली महिला बनी थीं. उन्हें हिमाचल प्रदेश के हाइकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के रूप में चुना गया था.

पिता की संपत्ति में बेटियों को दिलाया हक 
लीला सेठ 1997 से 2000 तक भारत के 15वें लॉ कॉमिशन का हिस्सा थीं और उन्हें हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 में बदलाव के लिए जाना जाता है. उन्होंने इस कानून में बदलाव कर पिता की संपत्ति में बेटियों को भी हक दिलाया था. वह जस्टिस वर्मा समिति की सदस्य भी थी, जिसे साल 2012 में दिल्ली में हुए गैंगरेप मामले के बाद भारत में रेप के कानून को देखने के लिए गठित किया गया था. 

न्यायमूर्ति लीला सेठ ने यह भी सिफारिश की थी कि रेप के कानून को लिंग के आधार पर न बनाया जाए. महिलाओं के साथ ही समलैंगिकों के अधिकारों के लिए भी आवाज उठाईं. जस्टिस लीला सेठ ने चार किताबें लिखी हैं, जिनमें से एक उनकी आत्मकथा ऑन बैलेंस है, जो उनके संघर्षों की कहानी है. उनकी किताब हम भारत के बच्चे में उन्होंने देश के संविधान में निहित समानता, स्वतंत्रता और भाईचारा के मूल्यों को बताया है. 5 मई 2017 को लीला सेठ का 86 साल की उम्र में दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया था.