जहां चाह वहां राह... इन्हीं पक्तियों को पूरा करती है कल्पना सरोज की कहानी. एक बहुत ही गरीब परिवार से तालुक रखने वाली कल्पना आज करोड़ों की मालकिन हैं लेकिन, ये राह उनके लिए आसान नहीं थी. जिंदगी में कई उतार-चढ़ाव देखे या यूं कह लिजिए उतार ज्यादा तो चढ़ाव बेहद कम ही देखने को मिले लेकिन, कल्पना ने हर लड़ाई पूरे जुनून के साथ लड़ी और आज वह देश की सबसे ज्यादा मांग रखने वाली एंटरप्रेन्योर में से एक हैं.
कल्पना आज छह कंपनियों की मालिक हैं और 112 मिलियन डॉलर के साम्राज्य के शीर्ष पर है लेकिन, सफलता की ओर उनका सफर इतना आसान नहीं था. एक दलित परिवार से आने वाली कल्पना को सफलता की राह में कई बाधाओं का सामना करना पड़ा.
स्कूल में भेदभाव का सामना किया
कल्पना का जन्म महाराष्ट्र में एक दलित परिवार में हुआ था. उनके पिता एक कांस्टेबल थे और उनका परिवार पुलिस क्वार्टर में रहता था. उनकी तीन बहनें और दो भाई है. एक दलित लड़की के रूप में, उन्हें हर जगह बहुत भेदभाव का सामना करना पड़ा. स्कूल में किसी भी एक्स्ट्रा करिकुलम एक्टिविटी में हिस्सा लेने तक की उन्हें अनुमति नहीं थी. किसी भी बच्चे को उनके साथ खेलने नहीं दिया जाता था. हालांकि, कल्पना एक बहुत ही होनहार छात्रा थी और उसे स्कूल जाना पसंद था लेकिन, वह एक दलित लड़की थी इसलिए शिक्षक उसे पसंद नहीं करते थे. यहां तक की उसे और बच्चों से अलग बैठाया जाता था.
बारह साल की उम्र में शादी कर दी गई
उस समय दलित लड़कियों की कम उम्र में शादी करने का रिवाज था. इसलिए उसके माता-पिता ने उसकी शादी तब करने का फैसला किया जब वह महज बारह साल की थी. शादी के बाद वह अपने पति और ससुराल वालों के साथ मुंबई आ गई लेकिन, यहां भी उसकी जिंदगी में कोई सुधार नहीं आया. कल्पना ससुराल में केवल एक नौकर की तरह काम करती थी. शादी के छह महीने बाद जब उसके पिता उससे मिलने गए, तो वह उसे पहचान तक नहीं सके और तुरंत अपने साथ वापस घर ले गए.
शादी के बाद जब घर लौटी तो समाज के लाख ताने सहे. जब भी घर से निकलती लोग उसे घृणा की नजरों से देखते और उसका मजाक बनाते. वह लोगों के तानों से इतना परेशान हो गई कि उसने आत्महत्या करने की कोशिश की लेकिन, जब किस्मत में जिंदगी बदलना लिखा हो तो जिंदगी से जंग कैसे हार जाती.
कल्पना ने जीवन में एक नई शुरुआत की
कल्पना एक बार मौत के मुंह से निकलकर आ चुकी थीं अब उन्हें जिंदगी में किसी चीज का डर नहीं था. उन्होंने अपनी जिंदगी बदलने का फैसला किया और अपने चाचा के साथ ही मुंबई में रहने लगीं. पहले एक कपड़े के कारखाने में दर्जी की नौकरी की. कुछ ही महीनों बाद वह एक बड़ी दर्जी बन गई और एक औद्योगिक सिलाई मशीन के साथ सिलाई की कला में महारत हासिल की. हालात सुधर रहे थे कि अचानक जीवन ने एक बदसूरत मोड़ ले लिया. उसकी छोटी बहन का निधन हो गया क्योंकि वह अपनी बहन के इलाज के लिए पैसे नहीं जु़टा सकी थी.
अपनी बहन की मौत के बाद कल्पना को पैसे के महत्व का एहसास हुआ. उसने एक साधारण नौकरी के लिए समझौता नहीं करने का फैसला किया, बल्कि एक एंटरप्रेन्योर बन गई. उसने रेडियो पर दलितों के लिए सरकारी ऋण योजना के बारे में सुना और तुरंत ही इसके लिए आवेदन किया, जिससे उसे 50,000 रुपये मिले. इससे उसने अपने घर पर ही कुछ सिलाई मशीनें लगवाईं और एक दिन में सोलह घंटे काम करना शुरू कर दिया. जब इससे पैसा आने लगा तो फर्नीचर का काम भी शुरू कर दिया.
जमीन जायदाद का कारोबार में उतरी कल्पना
एक दिन एक व्यक्ति ढाई लाख की कीमत पर जमीन खरीदने का प्रस्ताव लेकर कल्पना के पास पहुंचा. इस जमीन पर कानूनी कार्रवाई चल रही थी और इस व्यक्ति को पैसों की जरूरत के चलते इसे बैचना पड़ रहा था. कल्पना ने इस मौके का फायदा उठाया और उसे एक लाख एडवांस में दे दिया और बाकी रकम चंद महीनों में चुका दी. दो साल तक, उसने कानूनी लड़ाई लड़ी और जमीन को पूरी तरह हासिल कर लिया.
कमानी ट्यूब्स को मुकाम पर पहुंचाया
एक दिन कल्पना को पता चला कि 17 साल से बंद पड़ी 'कमानी ट्यूब्स' को सुप्रीम कोर्ट ने उसके कामगारों से शुरू करने को कहा है. कंपनी के कामगार कल्पना से मिले और कंपनी को फिर से शुरू करने में मदद की अपील की. कंपनी भारी कर्ज में डूबी थी और जल्द से जल्द सारे कर्ज चुकाने थे. कल्पना ने इसके लिए दस लोगों की टीम बनाई. धीरे-धीरे, उनकी मेहनत रंग लाने लगी और कमानी ट्यूब्स ने सभी का कर्ज भी चुकाया और आज कंपनी का कुल टर्नओवर 700 करोड़ रूपये है.
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